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Garhwa Fort of Prayagraj: गहरा इतिहास समेटे है प्रयागराज का गढ़वा किला, यहां देखने के लिए है बहुत कुछ
Garhwa Fort of Prayagraj: प्रयागराज के धार्मिक महत्व के बारे में तो सभी लोग जानते हैं। लेकिन यहां इतिहास से जुड़े कुछ ऐसे स्थान भी मौजूद है जो अपने अंदर गहरे राज समेटे हुए हैं।
Garhwa Fort of Prayagraj : प्रयागराज एक ऐसी जगह है जिससे धार्मिक नगरी के नाम से पहचाना जाता है। इस जगह का इतिहास अभी गहरा नाता रहा है। यहां के बारा तहसील के शंकरगढ़ स्थित गढ़वा का किला ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व रखता है और पर्यटन की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस किले का जन्म उधर जब से किया गया है तब से यहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। साल भर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहताहै। यहां पर आपको प्राचीन मूर्तियां बावड़ी और विशाल शिवालय देखने को मिलेगा।
कहां है गढ़वा
किला (Where is Garhwa Fort)यह किला शंकरगढ़ में शिवराजपुर प्रतापपुर मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर पश्चिम में मौजूद है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक प्रस्तर निर्मित यह किला पंचकोणीय है। इसके चारों कोनों पर बुर्ज बने हुए हैं और इसकी स्थापना गुप्त और मध्यकाल के दौरान हुई थी। गढ़वा का प्राचीन नाम भट्ट प्राय था और यहां से कुछ दूरी पर भटनागर नामक गांव था जो वर्तमान में बरगढ़ के नाम से पहचाना जाता है।
बघेल राजा ने करवाया था निर्माण (Baghel Raja Had Got the Construction Done)
इसके लिए के द्वार पर पुरातत्व विभाग की ओर से एक लेख प्रदर्शित किया गया है जिसमें बताया गया है कि गढ़वा का किला पंचकोणीय शीलखंडों में निर्मित परकोटा है। इसके भीतर कुछ प्राचीन मंदिर के अवशेष मौजूद है। इसमें यह भी बताया गया है कि इसका निर्माण बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा सन 1750 में करवाया गया था। यहां से जो अवशेष प्राप्त हुए हैं वह गुप्तकालीन है। यहां से गुप्त काल के राजा कुमार गुप्त चंद्रगुप्त स्कंद गुप्त के कल के साथ अभिलेख भी मिले हैं।
संग्रहालय में मूर्तियां (Sculptures in Museum)
इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर देवी देवताओं की जीर्ण शीर्ण मूर्तियां और प्रस्तर रखे हुए हैं। इसके अलावा यहां पर दो बावड़िया हैं जिनमें हमेशा पानी भरा रहता है। इनकी मरम्मत करने के बाद इन्हें दर्शनीय बना दिया गया है। यहां एक विशाल शिवालय भी है जिसका गर्भगृह खाली है। मंदिर के शिखर पर कलश दल और गणेश जी की खंडित प्रतिमा यहां पर मिली थी जिसे सुरक्षित कर दिया गया है।
यहां पर शिव मंदिर के स्तंभ अलंकृत है और इन पर संस्कृत में लिखा हुआ है। इस मंदिर के समीप भगवान विष्णु की पद्मासन मुद्रा में बैठी मूर्ति मौजूद है इसके अलावा दशावतार की विशाल प्रतिमा भी यहां पर है जब तकरीबन 8 फीट ऊंची है। यहां मत्स्य अवतार, कच्छपावतार, नरसिंह, वराह अवतार के साथ राम अवतार और परशुराम अवतार की पत्थरों से बनी मूर्तियां भी हैं।
यहां पर भगवान बुद्ध के विशाल प्रतिमा है और बताया जाता है की कसौटी खानदान के कंधार देव के 12वीं वंशज हुकुम सिंह ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया था। बाद में उनके पुत्र शंकर सिंह ने भी इसका रख रखाव किया।