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Hapur Famous Shiv Mandir: रहस्य की वजह बन चुकी हैं हापुड़ में मौजूद इस शिव मंदिर की सीढ़ियां, जहां से आती हैं आवाजें
Garh Mukteshwar Ganga Mandir Ke Bare Mein: उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में स्थित गढ़मुक्तेश्वर गंगा मंदिर से जुड़े कई रोचक किस्सों के चलते ये श्रद्धालुओं के साथ वैज्ञानिकों के लिए भी एक गूढ़ मुद्दा बना हुआ है।
Garh Mukteshwar Ganga Temple: रहस्यों से भरी हुई इस दुनिया में नित नए अजूबे देखने को और सुनने को मिल जाते हैं। इसी कड़ी में भारत में मौजूद एक प्राचीन मंदिर भी अपने रहस्यों के चलते लोगों के बीच कुतुहल का विषय बना हुआ है। वैसे तो इस देश में मौजूद प्राचीन काल से मौजूद हर मंदिर के पीछे कई अनसुलझे रहस्य छिपे हैं। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले (Hapur) में स्थित गढ़मुक्तेश्वर गंगा मंदिर (Garh Mukteshwar Ganga Mandir) का भी नाम आता है। इस मंदिर से जुड़े कई रोचक किस्सों के चलते ये श्रद्धालुओं के साथ वैज्ञानिकों के लिए भी एक गूढ़ मुद्दा बना हुआ है। आइए जानते हैं हापुड़ स्थित गढ़मुक्तेश्वर मंदिर से जुड़े रहस्य (Garh Mukteshwar Ganga Mandir Ka Rahasya) के बारे में।
यहां अभिशप्त शिवगणों को मिली थी पिशाच योनि से मुक्ति
शिव समर्पित गढ़मुक्तेश्वर मंदिर (Garh Mukteshwar Ganga Mandir) को शिव वल्लभ (Shiv Vallabh) के नाम से भी जाना जाता है। यह पौराणिक मंदिर पवित्र नदी गंगा किनारे बसा हुआ है। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता बेहद लोकप्रिय है, जिसके अनुसार यहां दर्शन करने के बाद अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी। जिसके बाद इसका नाम गढ़मुक्तेश्वर (Garh Mukteshwar) पड़ा। यहां दर्शन कर लेने मात्र से ही सभी मनोकामना पूरी होने के साथ पापों से मुक्ति मिलती है।
पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा यह मंदिर
वहीं, पर्यटन की दृष्टि से भी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले (Hapur) में स्थित पौराणिक तीर्थस्थल गढ़मुक्तेश्वर (Garh Mukteshwar) पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा है। दिल्ली-एनसीआर के अलावा हरियाणा और राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जनपदों से श्रद्धालु यहां भारी संख्या में आ रहे हैं। गढ़़मुक्तेश्वर में आने वाले श्रद्धालुओं को न सिर्फ यहां प्राचीन मंदिरों में भगवान के दर्शन होते हैं, बल्कि गंगा स्नान के साथ-साथ नाव में बैठकर गंगा के घाटों का विहंगम दृश्य भी पर्यटकों को खूब रोमांचित करता है। यहां वाराणसी की तर्ज पर मां गंगा की सुबह-शाम आरती की जाती है। ढोल-नगाड़े और शंख आदि की ध्वनि से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। पुजारियों के दीपकों से आरती करते हुए का विहंगम दृश्य इस स्थल को बेहद दिव्यता प्रदान करता है।
मंदिर को लेकर हैं कई पौराणिक मान्यताएं
इस मंदिर में शिवलिंग के साथ माता गंगा और ब्रह्मा जी की सफेद रंग की मूर्ति बनी है। इस मंदिर को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां हवन-पूजन किया था। वहीं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने परशुराम जी से यहां शिव मंदिर की स्थापना करवाई थी। ऐसे ही कई तरह के मत इस मंदिर के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के बीच आस्था का केंद्र बने हुए हैं।
मंदिर की आंतरिक संरचना
इस पौराणिक मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना बताया जा रहा है। जिसका अंदाजा इस तरह से लगाया जा सकता है कि हापुड़ स्थित इस मंदिर के नवीन स्वरूप को बने हुए ही करीब 600 साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में इस मंदिर के अस्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह मंदिर लगभग 80 फिट टीले पर बना हुआ है। कहा जाता है कि किसी जमाने में इस मंदिर में करीब एक सौ सीढ़ियां हुआ करती थीं। जबकि इस स्थान के आस पास विकास होने से अब यहां सड़क ऊंची हो गई हैं। जिसके बाद अब इस मंदिर की ओर जाने वाली सीढ़ियां सिमटकर 84 के करीब रह गई हैं।
वहीं, मंदिर की इन सीढ़ियों में एक विशेष चमत्कार भी काफी लोकप्रिय है। जब भी कोई इस मंदिर की सीढ़ियों पर पत्थर मारता है तो पानी में पत्थर मारने जैसी स्पष्ट आवाज सुनाई देती है। जैसे इन सीढ़ियों में जल बह रहा हो। आजतक बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर में एक प्राचीन कुआं भी मौजूद है। मान्यता है कि इस कुएं का रास्ता गंगा नदी से मिला हुआ है। ऐसे में पहले यह कुआं गंगा के पानी से भर जाता था।
हर साल इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। खासकर, कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन यहां भारी संख्या में श्रद्धालु आकर गंगा में डुबकी लगाते हैं। इस दौरान यहां करीब 10 दिनों तक मेला भी चलता है। बहुत लोग यहां मुंडन संस्कार और पिंड दान जैसे धार्मिक कर्म-कांड भी करने आते हैं। गढ़मुक्तेश्वर मंदिर दिल्ली से करीब 119.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से महज 2 या 3 घंटे में इस स्थल पर पहुंच सकते हैं।