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Hinglaj Mata Mandir Bhopal: भोपाल में भी है बलूचिस्तान वाली हिंगलाज माता का मंदिर, चमत्कार देख बेगम कुदसिया हो गई थीं नतमस्तक

Hinglaj Mata Mandir Bhopal: 500 सालों से अनवरत जल रही घी और तेल की दो जोत (ज्योति) इस पीठ की महिमा को चारों ओर फैला रही हैं। ये ज्योति बलूचिस्तान स्थित हिंगलाज मंदिर से लाई गई थी। हिंगलाज मां के चमत्कार के आगे भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया भी नतमस्तक हो गई थीं और बदले में जागीर दे दी थी।

Vipin Tiwari (Bhopal)
Published on: 28 Sep 2022 5:32 AM GMT
hinglaj devi temple bhopal
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मां हिंगलाज मंदिर मध्य प्रदेश (फोटो- सोशल मीडिया)

Hinglaj Mata Mandir Bhopal: देश भर में नवरात्रि की धूम है। भक्त देवी की आरती पूजा अर्चना कर रहें हैं। ऐसे में 52 शक्तिपीठों में हिंगलाज माता भी शामिल हैं। हिंगलाज मंदिर यूं तो बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में है, पर अगर आप अपने देश में भी मां हिंगलाज का दर्शन करना चाहते हैं, तो मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के बाड़ी नगर में आ सकते हैं। यहां हिंगलाज शक्तिपीठ की उपशक्तिपीठ है।

500 सालों से अनवरत जल रही घी और तेल की दो जोत (ज्योति) इस पीठ की महिमा को चारों ओर फैला रही हैं। ये ज्योति बलूचिस्तान स्थित हिंगलाज मंदिर से लाई गई थी। हिंगलाज मां के चमत्कार के आगे भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया भी नतमस्तक हो गई थीं और बदले में जागीर दे दी थी।

बाड़ी का इतिहास 500 साल पुराना

मंदिर ट्रस्ट की ओर से पूजा-पाठ करने वाले आचार्य देवनारायण त्रिपाठी ने बताया कि मां हिंगलाज मंदिर, बाड़ी का इतिहास 500 साल पुराना है। 16वीं सदी में खाकी अखाड़ा की महंत परंपरा के चौथी पीढ़ी के महंत भगवानदास महाराज मां हिंगलाज को अग्नि स्वरूप में लेकर आए थे। इस यात्रा की रोचक कहानी सोरोजी के पण्डा प्रेमनारायण के द्वारा लिखित रचना 'पण्डावही' में मिलती है।

दरअसल, खाकी अखाड़े के महंत सोरोजी की तीर्थयात्रा पर जाते रहे हैं। 'पण्डावही' में लिखा है कि महंत भगवानदास महाराज भगवान राम और मां दुर्गा के अनन्य भक्त थे। 16वीं सदी में उनके मन में मां हिंगलाज देवी के दर्शन करने की इच्छा हुई। उस समय आवागमन के साधन तो थे नहीं, ऐसे में वे अपने दो शिष्यों के साथ पैदल ही हिंगलाज मंदिर का दर्शन करने निकल पड़े।

2 साल पदयात्रा... जंगली कंदमूल खाए, ज्योत लाकर बाड़ी में की स्थापना

मां हिंगलाज के दर्शन के लिए भगवानदास 2 साल तक पदयात्रा पर रहे। यात्रा के दौरान ही वे संग्रहणी-रोग (पाचन संबंधी समस्या) से पीड़ित हो गए। मां के दर्शनों की लालसा में पदयात्रा जारी रही। यात्रा के दौरान एक दिन महंत थक कर बैठ गए। शरीर में आगे चलने की शक्ति तक नहीं बची थी।

मां हिंगलाज मंदिर (फोटो- सोशल मीडिया)

वे मां से प्रार्थना करने लगे कि हे मां आपके दर्शनों के बिना मैं नहीं लौटूंगा, चाहे मुझे प्राण ही क्यों न त्यागना पड़े. शारीरिक अस्वस्थता की स्थिति में भी महीने भर तक जंगली कंदमूल खाकर यात्रा जारी रखी। जंगली रास्तों के चलते वे साथ में धूनी (अग्नि) लेकर चलते रहे। फिर यहां लाकर ज्योत स्थापित की।

भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया भी देख चुकी हैं मां का चमत्कार

मां हिंगलाज के चमत्कारों की घटनाएं तो कई हैं, पर एक का संबंध भोपाल रियासत की पहली महिला शासक बेगम कुदसिया से जुड़ा है। आचार्य देव-नारायण त्रिपाठी के मुताबिक जनश्रुति है कि साल 1820-25 के आसपास बेगम कुदसिया का बाड़ी में कैम्प लगा था। यहां से मां हिंगलाज का मंदिर थोड़ी दूरी पर था। खाकी अखाड़ा में 50-60 साधु स्थाई रूप से रहते थे। मंदिर में सुबह-शाम शंख, घंटा सहित अन्य वाद्य यंत्रों के साथ आरती होती थी।

इसकी आवाज दूर तक जाती थी। बेगम कुदसिया इन आवाजों पर क्रोधित हो गईं। महंत को आदेश भिजवाया कि जब तक बाड़ी में हमारा कैंप है, शोर नहीं होना चाहिए। हमारी नमाज में खलल पड़ता है।

मां के चमत्कार से मांस के टुकड़े मिठाई में बदल गए

थाल लेकर सेवक बेगम के पास पहुंचे और सारा किस्सा कह सुनाया। बेगम ने थाल से कपड़ा हटाया, तो उसमें प्रसाद स्वरूप विभिन्न प्रकार की मिठाइयां मिलीं। बेगम आश्चर्य में पड़ गईं और अपनी गलती की माफी मांगने महंत से मिलने मंदिर जा पहुंचीं।

इसके बाद बेगम ने मंदिर के नाम जागीर दान कर दी। मंदिर की संपत्ति में 65 एकड़ में फैला फलदार बगीचा है। साल 2005 से मां हिंगलाज मंदिर शक्ति पीठ एक ट्रस्ट के रूप में संचालित हो रहा है।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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