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History Of Datia Palace: एक राजा ने बनवाया अपने मित्र के लिए महल, फिर क्यों खाली रह गया यहा 400 सालों से ?

History Of Datia Fort Palace: दतिया महल का डिज़ाइन उस समय के अन्य राजपूत शाही निवासों से बहुत अलग नहीं है। एक केंद्रीय आंगन है, जिसके चारों ओर विभिन्न स्तरों पर कक्ष बने हुए हैं, जो ओरछा के जहांगीर महल की याद दिलाते हैं।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 16 Jan 2025 8:15 AM IST (Updated on: 16 Jan 2025 8:16 AM IST)
History Of Datia Fort Palace
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History Of Datia Fort Palace 

History Of Datia Fort Palace: भारत अपनी प्राचीन वास्तुकला और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। मध्य प्रदेश ऐसा ही एक राज्य है, जहां के महल और किले भारतीय इतिहास और कला की भव्यता का प्रतीक हैं। इन ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है दतिया महल, जिसे 'सतखंडा महल' या 'बीर सिंह देव महल' के नाम से भी जाना जाता है। यह महल 400 सालों से अपनी गौरवशाली विरासत को समेटे खड़ा है। हैरानी की बात यह है कि इस महल का उपयोग केवल एक रात के लिए हुआ था। इसके पीछे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बेहद रोचक है।

दतिया महल का ऐतिहासिक संदर्भ

यह कहा जाता है कि दतिया का क्षेत्र ग्वालियर के सिंधिया शासन से पहले मुगल साम्राज्य के अधीन था। अकबर के शासन के अंतिम वर्षों में उनके और उनके बड़े बेटे सलीम (जहांगीर) के बीच राजनीतिक मतभेद बढ़ गए थे। सलीम ने विद्रोह करते हुए इलाहाबाद में अपनी स्वतंत्र अदालत की स्थापना की। इसे वर्तमान में इलाहाबाद कोर्ट के नाम से जाना जाता है।


इस दौरान अकबर ने अपने प्रधानमंत्री अबुल फजल को सलीम को मनाने और राजगद्दी पर अधिकार जताने भेजा। हालांकि, अबुल फजल सलीम को राजगद्दी पर नहीं बैठाना चाहते थे और इसे रोकने की योजना बना रहे थे।

सलीम और बीर सिंह देव की मित्रता (Saleem Aur Beer Singh Dev)

सलीम ने अबुल फजल की योजनाओं को भांप लिया और किसी भी स्थिति के लिए तैयार होने लगे। उसी समय, बुंदेलखंड के एक छोटे से क्षेत्र के जमींदार बीर सिंह देव उनके पास मदद का प्रस्ताव लेकर आए। राजा बीरसिंह देव और जहांगीर (जिन्हें युवावस्था में सलीम के नाम से जाना जाता था) के बीच गहरी मित्रता थी। अकबर के शासनकाल के अंतिम दिनों में जहांगीर और उनके पिता अकबर के बीच कई बार सत्ता संघर्ष हुआ। जहांगीर को उनके विद्रोही स्वभाव के लिए जाना जाता था, और इसी समय बीरसिंह देव ने उनका साथ दिया।


अबुल फजल की हत्या(Abul Fazal)- अबू-फज़ल अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे और अकबर के करीबी सलाहकार थे। वह अकबर के विश्वासपात्र और "अकबरनामा" के लेखक भी थे। लेकिन जहांगीर से उनका वैचारिक विरोध था।जहांगीर ने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए अबू-फज़ल को हटाने की योजना बनाई। इस योजना को सफल बनाने में बीरसिंह देव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीरसिंह देव ने 1602 में एक सैन्य अभियान के दौरान अबू-फज़ल की हत्या कर दी। इस घटना ने अकबर को गहरे आघात में डाल दिया, लेकिन जहांगीर ने बीरसिंह देव को उनकी सहायता के लिए इनामस्वरूप सम्मानित किया।


अकबर का गुस्सा(Akbar)- इस घटना से अकबर बहुत नाराज हो गए और उन्होंने बीर सिंह देव को गिरफ्तार करने के लिए अपने सैनिक भेजे। लेकिन सलीम की गुप्त मदद से बीर सिंह देव बचने में सफल रहे।

जहांगीर बनने के बाद सलीम ने चुकाया एहसान

अकबर की मृत्यु के बाद सलीम ने अपने पिता के साथ सुलह कर ली और वह बाद में जहांगीर के नाम से मुगल सिंहासन पर बैठे। राजा बनने के बाद उन्होंने बीर सिंह देव को उनके साहसिक योगदान के लिए ओरछा का राजा बना दिया।

सतखंडा महल का निर्माण (Satkhanda Mehal Ka Nirman)

जहांगीर ने अपनी दोस्ती का सम्मान करते हुए 52 महलों के निर्माण की स्वीकृति दी, जिनमें से एक था दतिया का सतखंडा महल।

सतखंडा महल का निर्माण 1620 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में 9 साल लगे।इस पर उस समय लगभग 35 लाख रुपये खर्च हुए थे।यह महल सात मंजिलों का है, जिसमें से 2 मंजिलें जमीन के नीचे और 5 जमीन के ऊपर हैं।इसे पूरी तरह से ईंट और पत्थरों से बनाया गया है, और इसमें किसी लकड़ी या धातु का उपयोग नहीं किया गया। महल में जल प्रबंधन की उन्नत प्रणाली मौजूद थी। वर्षा जल संचयन के लिए विशेष टैंक बनाए गए थे।


सतखंडा महल का उपयोग केवल एक रात के लिए जहांगीर ने ओरछा जाने से पहले एक रात के लिए इस महल में निवास किया। उपहार में मिलने के बावजूद, बीर सिंह देव और उनके परिवार ने इस महल का उपयोग कभी नहीं किया। यह महल 400 वर्षों से वीरान पड़ा है।

महल की विशेषताएं

दतिया महल का डिज़ाइन उस समय के अन्य राजपूत शाही निवासों से बहुत अलग नहीं है। एक केंद्रीय आंगन है, जिसके चारों ओर विभिन्न स्तरों पर कक्ष बने हुए हैं, जो ओरछा के जहांगीर महल की याद दिलाते हैं। इसकी विशेष बात यह है कि इसके आंगन के बीच में एक वर्गाकार, ऊंचा मंडप स्थित है। प्रत्येक दिशा से एक पुल इसे महल के शेष हिस्से से जोड़ता है। महल के दक्षिण में करन सागर झील है, जबकि इसके प्रवेश द्वार का मुख पूर्व की ओर है। यह महल उस समय की भव्य वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

सतखंडा महल में लगभग 440 कमरे हैं और प्रत्येक में आंगन या चबूतरा है।झरोखों की जटिल नक्काशी बुंदेली कला की उत्कृष्टता को दर्शाती है।


महल की दीवारों पर जैविक रंगों से अद्भुत चित्र बनाए गए हैं, जो अब भी इसकी भव्यता की झलक देते हैं।महल परिसर में भगवान गणेश और मां दुर्गा के मंदिर हैं। साथ ही, एक दरगाह भी स्थित है, जो धार्मिक विविधता का प्रतीक है।

सतखंडा महल का महत्व- सात मंजिलों वाले इस महल को 'सतखंडा महल' कहा जाता है।बिना लकड़ी और धातु के केवल पत्थरों और चूने से बनी इस इमारत की मजबूती आज भी बरकरार है।यह महल भारतीय वास्तुकला और इतिहास के प्रेमियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।यहां हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।


दतिया का सतखंडा महल भारतीय इतिहास और वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। यह महल न केवल बुंदेला शासकों की भव्यता को दर्शाता है, बल्कि मुगल काल की राजनीतिक और सांस्कृतिक जटिलताओं की भी झलक देता है।महल का संरक्षण और इसकी विरासत को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहे।

महल को सतखंडा क्यों कहा जाता है?

महल की सात मंजिलें इसकी सबसे बड़ी पहचान हैं। हर मंजिल का अलग उद्देश्य और उपयोग था:

पहाड़ी के ऊपर बने इस भवन का मूल उद्देश्य शाही परिवार के लिए एक विश्रामगृह के रूप में सेवा करना था। हालांकि, समय के साथ इसने कई अलग-अलग भूमिकाएं निभाईं। पूरे पहले स्तर में अंधेरे कमरे हैं, जो बैरक जैसे दिखते हैं। यह स्पष्ट है कि इनका उपयोग कैदियों के लिए किया जाता था। इसके ऊपर के स्तर पर गार्ड और सैनिकों का निवास था, और चौथे स्तर का उपयोग मनोरंजन के लिए किया जाता था। उससे ऊपर पांचवां स्तर दीवान-ए-आम या सभा कक्ष के रूप में इस्तेमाल होता था, और छठा स्तर गुप्त बैठकों के लिए आरक्षित था।


सबसे ऊपरी मंजिल में मुख्य रूप से निगरानी टावर (वॉचटावर) थे, जहां से दुश्मनों की गतिविधियों का पता लगाया जा सकता था। इन टावरों से चौकीदारों को पूरे क्षेत्र का शानदार और विस्तृत दृश्य मिलता था।

दतिया महल के बारे में किंवदंतियां और मान्यताएं

महल से जुड़ी कई किंवदंतियां और लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राजा बीरसिंह देव ने इसे बनवाने के लिए श्रापित स्थल का चयन किया था, जिसके कारण यह महल लंबे समय तक आबाद नहीं रहा।

वर्तमान स्थिति और पर्यटन महत्व

  1. आज बीरसिंह महल एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह मध्य प्रदेश सरकार और भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। महल की भव्यता और इतिहास पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  2. महल का भव्य दृश्य और इसकी स्थापत्य कला पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं।इस महल का उपयोग कई फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग के लिए किया गया है।
  3. बीरसिंह महल भारतीय इतिहास, संस्कृति, और वास्तुकला की अमूल्य धरोहर है। यह महल न केवल बुंदेली कला की उत्कृष्टता का प्रतीक है, बल्कि उस समय के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने की भी झलक देता है।
  4. महल का संरक्षण और प्रचार-प्रसार हमारी जिम्मेदारी है ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहे।


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