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History Of Dhanusha Dham: आपको पता है कहा गिरी थी सीता स्वयंवर में प्रभु राम द्वारा तोड़ी गई धनुष
History Of Dhanusha Dham Mandir: ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने माता सीता से विवाह करने के लिए जो शिव धनुष तोड़ा था वह आज भी वर्तमान में उपस्थित हैं।
Dhanush Dham Mystery Details: भारत में राम जी और रामायण के अस्तित्व को वास्तविक प्रमाणित करने के लिए कई पावन भूमि व मंदिर है। जहां रामायण से जुड़ी कहानियों का उल्लेख किया जाता है। यहां पर हम आपको इसी क्रम में भगवान राम द्वारा धनुष तोड़ने से जुड़े एक विशेष रामायण कथा से जुड़ी जगह के बारे में बताने जा रहे है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने माता सीता से विवाह करने के लिए जो शिव धनुष तोड़ा था वह आज भी वर्तमान में उपस्थित हैं। जिसका कुछ हिस्सा जनकपुर यानी नेपाल में है तो कुछ भाग भारत में, चलिए जानते है इस जगह के बारे में..
यहां है टूटे हुए धनुष का भाग
सीता स्वयंवर के दौरान जब प्रभु श्री राम ने शिव धनुष को उठाकर उसपर प्रत्यूंचा चढ़ा रहे थे, उसी दौरान शिव धनुष तीन टुकड़े में टूट गया था। जिसने से एक भाग भारत के तमिलनाडु में है। वही दो भाग नेपाल में है जो एक जनकपुर में और तीसरा धनुष धाम है। सीता स्वयंवर के दौरान राम जी द्वारा तोड़े गए धनुष का मुख्य भाग यानी बीच का भाग यही धनुष धाम में है। तीन टुकड़े में एक आकाश में जी था जो बाद में रामेश्वरम में धनुष कोटि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरा पाताल में गया था जो जनकपुर स्थित धनुसागर तालाब में गिरा हुआ माना जाता है। धनुष का मध्य भाग धनुषा धाम में जहां सतयुग से धनुष मंदिर स्थित है, वहां गिरा माना जाता है।
क्या है धनुष धाम?
"धनुष धाम" हिंदू महाकाव्य रामायण में एक महत्वपूर्ण घटना को संदर्भित करता है, जिसमें विशेष रूप से भगवान राम द्वारा धनुष को तोड़ना शामिल है। यह आयोजन जनकपुर में हुआ था, जो वर्तमान में नेपाल में है। धनुषा धाम में आज भी शिव जी के पिनाक धनुष के अवशेष की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। माघ में मकर संक्रांति के दिन धनुषा धाम में मेले का भी आयोजन किया जाता है। इस मंदिर को लेकर लोगों में गहरी आस्था है। यहां शिव धनुष के साथ प्रभु राम और माता सीता की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जगह इंडो नेपाली सीमा से 15 किलोमीटर दूर है।
ऐसे पहुंचे यहां
यह स्थान जनकपुर मंदिर से लगभग 30-40 मिनट की दूरी पर है। जनकपुर धाम से 18 किमी उत्तर-पूर्व में धनुष धाम स्थित है। यदि कोई जनकपुर मंदिर जा रहा है, तो उसे इस स्थान पर अवश्य जाना चाहिए।
इस समय जाना उचित है
माघ जनवरी और फरवरी के महीने में हर रविवार को मकर मेला का आयोजन किया जाता है। एक परंपरा जो वैदिक काल से नहीं छोड़ी गई है आज भी उसका पालन किया जाता हैं इस दौरान यहां आना धार्मिक रूप से और भी ज्यादा प्रभावशाली हो सकता है।
ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि शिव धनुष के पक्ष मैं
राजा जनक और सीता का स्वयंवर:
मिथिला (अब जनकपुर) के राजा जनक की सीता नाम की एक बेटी थी, जो एक खेत में मिली थी और राजा ने उसे गोद ले लिया था। सीता के लिए एक उपयुक्त पति खोजने के लिए, राजा जनक ने एक स्वयंवर का आयोजन किया, एक समारोह जहाँ एक राजकुमारी अपने पति बनने के लिए आए हुए लोगों के समूह में प्रत्येक को एक विवाह करने के लिए एक दिव्य धनुष उठाना था जिसे माता सीता बहुत ही सरलता से उठा लेती थी। स्वयंवर की यह शर्त यह थी धनुष को उठाकर उसपर पर डोरी चढ़ानी थी, जो बेहद भारी और दुर्जेय था।
शिव का धनुष:
शिव धनुष एक दिव्य धनुष था जिसे भगवान शिव ने राजा जनक के पूर्वजों को दिया था। धनुष इतना शक्तिशाली था कि कोई भी सामान्य व्यक्ति इसे उठा या घिसका नहीं सकता था।
राम का पराक्रम:
स्वयंवर के दौरान, कई राजकुमारों और राजाओं ने धनुष को उठाने और खींचने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। अयोध्या के राजकुमार और भगवान विष्णु के अवतार राम अपने भाई लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र के साथ स्वयंवर सभा में मौजूद थे। विश्वामित्र के प्रोत्साहन पर, राम धनुष के पास पहुँचे। उन्होंने न केवल इसे आसानी से उठा लिया बल्कि इसे खींचकर तोड़ भी दिया। शिव धनुष को तोड़ने का यह कार्य राम की दिव्य शक्ति और सीता से विवाह करने के उनके भाग्य का प्रतीक था।
यह घटना रामायण में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करती है, जो राम की दिव्य प्रकृति और सीता के साथ उनके पूर्वनिर्धारित मिलन को दर्शाती है।
ये था शिव धनुष का नाम
भगवान शिव के धनुष का नाम पिनाक है, जो एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है पिनाक। कहा जाता है कि यह धनुष आकाशीय है और ब्रह्मांडीय शक्ति से भरा हुआ है, और इसे केवल वही व्यक्ति उठा सकता है जो मजबूत, धार्मिक हो और धर्म को कायम रख सके।
इसलिए हुआ था शिव धनुष का निर्माण
भगवान विश्वकर्मा द्वारा दो दिव्य धनुष बनाया गया था जिनमें एक का नाम पिनाक तथा दूसरे का नाम शारंग जिसे क्रमश: भगवान शिव और भगवान विष्णु को प्रदान किए थे। लोकप्रिय किंवदंती में, शिव ने त्रिपुरांतक के रूप में अपने अवतार में धनुष का उपयोग मायासुर के तीन शहरों को नष्ट करने के लिए किया था, जिन्हें त्रिपुरा के रूप में जाना जाता है। धनुष का उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में भी किया गया है, जहाँ इसे अयोध्या के राजकुमार राम ने तोड़ा है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। कहा जाता है कि धनुष टूटने की घटना बिजली की तरह तेज़ी से हुई थी, और ध्वनि इतनी शक्तिशाली थी कि इससे मनुष्य और जानवर समान रूप से अपना संयम खो बैठे।
नोट: यहां पर दी गई जानकारी महंतो, ऋषि- मुनियों और स्थानीय लोगों के मान्यता द्वारा प्रमाणित है, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, Newstrack दी हुई जानकारी को पूरी तरह सत्य नहीं मानता है।