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Gwalior Kila Ka Itihas: इस किले का खजाना आज भी है रहस्य, भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक किले की कहानी

History of Gwalior Fort: ग्वालियर क़िला का इतिहास लगभग 1,000 साल पुराना है। यह क़िला कई महत्वपूर्ण राजवंशों के शासन का केंद्र रहा है।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 25 Dec 2024 6:31 PM IST
Gwalior Kila Ka Itihas Wiki in Hindi
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Gwalior Kila Ka Itihas Wiki in Hindi (Photo - Social Media)

Gwalior History Wiki in Hindi: ग्वालियर क़िला, मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित एक ऐतिहासिक क़िला है, जिसे भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण और अद्भुत क़िलों में से एक माना जाता है। यह क़िला भारतीय सैन्य, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। ग्वालियर क़िला न केवल अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके इतिहास में कई संघर्ष, घटनाएँ और रहस्यों का भी समावेश है। इस लेख में हम ग्वालियर क़िले के इतिहास, संघर्षों, रहस्यों और प्रमुख घटनाओं पर चर्चा करेंगे, साथ ही यह जानेंगे कि क़िला आज के समय में कैसा दिखता है।

ग्वालियर क़िला का ऐतिहासिक महत्व

ग्वालियर क़िला का इतिहास लगभग 1,000 साल पुराना है। यह क़िला कई महत्वपूर्ण राजवंशों के शासन का केंद्र रहा है। क़िले का निर्माण 8वीं सदी के आसपास हुआ था, हालांकि क़िले के बारे में विभिन्न किंवदंतियाँ भी प्रचलित हैं। क़िला प्राचीन भारत के प्रमुख किलों में से एक है।


इसे भारतीय किलों के 'गहनों' में गिना जाता है। इस क़िले को 'ग्वालियर क़िला' का नाम ग्वालियार नामक एक संत, ग्वालिपा के नाम पर दिया गया है। कहा जाता है कि ग्वालिपा ने इस क़िले में निवास कर इसे एक धार्मिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया था।

क़िले की वास्तुकला

ग्वालियर क़िला की वास्तुकला बेहद विशिष्ट और प्रभावशाली है। यह क़िला पहाड़ी पर स्थित है। इसकी दीवारें 35 मीटर (115 फीट) ऊंची हैं। क़िले में कई महल, मंदिर, और जलाशय हैं, जिनका निर्माण विभिन्न शासकों ने अलग-अलग समय में किया था।


क़िले के भीतर स्थित सास बहू के मंदिर, गुज़री महल, सिंगाहीन महल और गुज़री महल की दीवारों पर चित्रकला की अद्भुत चित्रण की गई हैं। क़िले के भीतर एक प्राचीन जलाशय भी है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

क़िले के संघर्ष और घटनाएँ

ग्वालियर क़िला इतिहास में कई संघर्षों और घटनाओं का साक्षी रहा है। इस क़िले का महत्व इस हद तक था कि यह हमेशा से सैन्य दृष्टि से अहम रहा है। इस पर कई बार आक्रमण हुए। क़िले के ऐतिहासिक संघर्षों में एक प्रमुख घटना 1232 ईस्वी में हुई थी, जब दिल्ली के सुलतान इल्तुतमिश ने ग्वालियर क़िले पर आक्रमण किया था। इस समय क़िले का रक्षा कर रहे ग्वालियर के शासक भीमदेव द्वितीय को पराजित किया गया था।


ग्वालियर क़िले की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण घटना 1526 में घटी थी, जब बाबर ने इस क़िले को कब्ज़ा किया था। बाबर की सेना ने यहां के सशस्त्र शासक क़ाज़ी को हराया और क़िले को अपने कब्ज़े में लिया। इस संघर्ष ने ग्वालियर क़िले को एक नया मोड़ दिया। बाबर के शासन के बाद क़िला अनेक मुग़ल शासकों के नियंत्रण में आया, जिसमें अकबर का नाम प्रमुख है।

17वीं और 18वीं शताब्दी में ग्वालियर क़िला में मराठों और राजपूतों के बीच भी संघर्ष हुआ। 18वीं सदी में मराठों ने ग्वालियर क़िले पर कब्ज़ा कर लिया और यह मराठा साम्राज्य का हिस्सा बन गया। मराठों के शासन में क़िला का और भी महत्व बढ़ा और यह उनके सैन्य रणनीति का प्रमुख हिस्सा बना।

ग्वालियर क़िले का रहस्य

ग्वालियर क़िले से कुछ रहस्यमयी और विचित्र घटनाएँ जुड़ी हुई हैं, जो इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। क़िले के भीतर स्थित सास बहू के मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चित्रों में कुछ रहस्यमयी संदेश छिपे हुए हैं। इन चित्रों को देखकर यह लगता है कि यहां के शासकों ने किसी विशेष घटना को चित्रित किया था। लेकिन इन चित्रों का असली अर्थ आज तक कोई नहीं समझ सका। कुछ लोग मानते हैं कि इन चित्रों में छिपे हुए संदेश ग्वालियर क़िले की परछाई से संबंधित हैं, जिन्हें अब तक कोई खोज नहीं पाया।


इसके अलावा, ग्वालियर क़िले के भीतर एक सुरंग भी है, जिसका रहस्य आज भी बरकरार है। यह सुरंग क़िले के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने का कार्य करती थी और कुछ किंवदंतियों के अनुसार, यह सुरंग एक गुप्त मार्ग थी, जो क़िले के भीतर एक खास स्थान को जोड़ता था। कई लोगों का कहना है कि इस सुरंग में कुछ खजाने या रत्न छिपे हुए थे। लेकिन अब तक कोई प्रमाण नहीं मिल पाया है।

किले का महत्व

ग्वालियर क़िला का अतीत जितना संघर्षपूर्ण और रोमांचक था, उतना ही इसके वर्तमान का महत्व भी बढ़ा है। आज के समय में ग्वालियर क़िला एक प्रमुख पर्यटक स्थल बन चुका है। यह क़िला न केवल अपनी ऐतिहासिकता और वास्तुकला के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर भी लोगों को आकर्षित करती है।


क़िले में आने वाले पर्यटकों को यहां के महल, मंदिर, कक्ष और चित्रकला की अद्भुत शिल्पकारी देखने को मिलती है। क़िले की एक और प्रमुख विशेषता उसकी भव्य दीवारें और उनके ऊपर उकेरी गई चित्रकला है, जो ग्वालियर क़िले की ऐतिहासिक विरासत को जीवित बनाए रखती है।

ग्वालियर क़िले का गुप्त खजाना: रहस्य और इतिहास

ग्वालियर क़िला न केवल अपनी ऐतिहासिकता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके गुप्त खजाने के कारण भी यह क़िला रहस्यमय बना हुआ है।


विशेष रूप से सिंधिया परिवार के महाराजाओं द्वारा क़िले के गुप्त तहखानों में रखा गया खजाना, जो कि 'गंगाजली' के नाम से जाना जाता है, हमेशा से एक रहस्य बना हुआ है।

गंगाजली का खजाना और उसका रहस्य

ग्वालियर क़िले के गुप्त तहखानों में एक विशाल खजाना छिपा हुआ था, जिसे सिंधिया के महाराजाओं ने क़िले के अंदर सुरक्षित रखा था। इस खजाने को 'गंगाजली' नाम दिया गया था। महाराजाओं ने इस खजाने को एक गुप्त कोड वर्ड, 'बीजक' के रूप में सुरक्षित रखा था, ताकि केवल वे ही इस खजाने तक पहुँच सकें। 'बीजक' को केवल महाराजा ही जानते थे और इसे बहुत गोपनीय तरीके से महफूज़ रखा गया था।

1857 के संघर्ष में खजाने को बचाना

सिंधिया परिवार के लिए 1857 का भारतीय विद्रोह एक कठिन समय था। जब अंग्रेज़ों ने ग्वालियर क़िले को सैनिक छावनी के रूप में उपयोग करना शुरू किया, तो महाराज जयाजीराव सिंधिया को यह चिंता होने लगी कि कहीं अंग्रेज़ उनकी ऐतिहासिक धरोहर, खजाने को कब्ज़ा न कर लें। उन्होंने बड़ी मुश्किल से इस खजाने को विद्रोहियों और अंग्रेज़ों से बचा कर रखा।


महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने यह खजाना अपने पूर्वजों से प्राप्त किया था और उसे सुरक्षित रखने के लिए कई कड़े कदम उठाए थे। हालांकि, 1886 में जब क़िला फिर से सिंधिया प्रशासन को वापस मिला, तब तक जयाजीराव की सेहत खराब हो चुकी थी। वे अपने वारिस, माधव राव सिंधिया 'द्वितीय' को इस खजाने के रहस्य के बारे में बता नहीं पाए और उनकी मृत्यु हो गई।

गुप्त तहखाने का रहस्य खुलना

माधवराव 'द्वितीय' के लिए ग्वालियर क़िले का खजाना एक रहस्य बन गया था। एक दिन, जब वह क़िले के एक अप्रयुक्त गलियारे से गुजर रहे थे, अचानक उनका पैर फिसला और वे एक खंभे से टकराए। यह खंभा एक तरफ झुक गया और एक गुप्त तहखाने का दरवाजा खुल गया। माधवराव ने अपने सैनिकों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की। वहां उन्हें 2 करोड़ चांदी के सिक्के और अन्य बहुमूल्य रत्न मिले। इस खजाने की प्राप्ति से माधवराव की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई।

खजाने की बाकी छानबीन और ज्योतिषी का रहस्य

गंगाजली के खजाने की तलाश का एक और अध्याय शुरू हुआ जब अंग्रेज़ों की गतिविधियाँ समाप्त हुईं। माधवराव 'द्वितीय' ने खजाने की खोज फिर से शुरू की। इस बार उन्होंने अपने पिता के समय के एक बुजुर्ग ज्योतिषी की मदद ली। ज्योतिषी ने उन्हें 'गंगाजली' के तहखानों तक पहुँचने का रास्ता बताया। लेकिन इसके लिए एक शर्त रखी कि वह बगैर हथियार के अकेले उसके साथ चलेंगे। महाराजा राजी हो गए और ज्योतिषी उन्हें अंधेरे भूलभुलैया जैसे रास्तों से होते हुए गंगाजली के तहखाने तक ले गया।


लेकिन जब माधवराव को महसूस हुआ कि उनके पीछे कोई छाया है, तो उन्होंने अपने राजदंड से अंधेरे में ही हमला कर दिया। जब वे सैनिकों के साथ वापस लौटे, तो पता चला कि गलती से उन्होंने ज्योतिषी को मार दिया। इस घटना के बाद, वह फिर से बाकी खजाने से वंचित रह गए।

अंग्रेज़ कर्नल बैनरमेन और खजाने की तलाश

माधवराव 'द्वितीय' के बालिग होने तक गंगाजली खजाने को लेकर परिवार में असमंजस बना रहा। इसी दौरान, अंग्रेज़ कर्नल बैनरमेन ने गंगाजली खजाने की खोज में मदद देने का प्रस्ताव दिया। सिंधिया परिवार के प्रतिनिधियों की निगरानी में कर्नल ने खजाने की बहुत खोज की, लेकिन पूरा खजाना नहीं मिल सका। हालांकि, जो भी खजाना मिला, उसकी कीमत उस समय करीब 62 करोड़ रुपये आंकी गई थी। कर्नल बैनरमेन ने अपनी डायरी में इसे 'अलादीन का खजाना' कहा था।

गंगाजली के अन्य तहखाने और उनका रहस्य

कर्नल बैनरमेन ने जो तहखाना खोजा, उसमें बहुत सारे बहुमूल्य रत्न और चांदी के सिक्के थे। लेकिन खजाने का बाकी हिस्सा कहीं और छिपा हुआ था।


कहा जाता है कि गंगाजली के कई तहखाने आज भी महफूज़ हैं और सिंधिया घराने की पहुँच से बाहर हैं। कई इतिहासकार और शोधकर्ता यह मानते हैं कि ग्वालियर क़िले के अन्य हिस्सों में और भी खजाना छिपा हुआ है, जिसे अब तक खोजा नहीं जा सका है।

संस्मरणों में खजाने के संकेत

ग्वालियर क़िले के गंगाजली खजाने के बारे में स्पष्ट रूप से इतिहास की किताबों में नहीं बताया गया है। लेकिन कई संस्मरणों में इसके संकेत मिलते हैं।सिंधिया रियासत के गजट विवरणों में कर्नल बैनरमेन के अभियानों का उल्लेख भी किया गया है, हालांकि कहीं पर भी इस खजाने की वास्तविक राशि या इसकी सम्पूर्णता को स्वीकार नहीं किया गया।

ग्वालियर क़िले का गंगाजली खजाना आज भी एक रहस्य बना हुआ है। सिंधिया परिवार के महाराजाओं ने इसे अपने पूर्वजों की धरोहर के रूप में सहेजा था और कई प्रयासों के बावजूद इसका रहस्य अभी तक पूरी तरह से सुलझा नहीं पाया है। हालांकि, जो खजाना खोजा गया, उसकी विशालता और महत्ता इस क़िले और इसके इतिहास को और भी रोमांचक बना देती है।


ग्वालियर क़िला को संरक्षित करने के लिए सरकार और विभिन्न संगठन कई प्रयास कर रहे हैं। क़िले के प्रमुख हिस्सों की मरम्मत और पुनर्निर्माण का काम चल रहा है, ताकि यह क़िला भविष्य में और भी अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर सके और उसकी ऐतिहासिकता बनी रहे।

ग्वालियर क़िला भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके संघर्ष, घटनाएँ, और रहस्य इसे और भी रोमांचक बनाते हैं। यह क़िला न केवल अपने भव्य निर्माण के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसमें समाहित ऐतिहासिक घटनाएँ और रहस्यमय किस्से भी इसे एक अद्वितीय स्थल बनाते हैं। क़िले का अतीत और वर्तमान दोनों ही इसे भारतीय धरोहर का गौरवपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। यह क़िला आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर रहेगा, जो हमें हमारे इतिहास से जोड़ता रहेगा।



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