×

Hyderabad Shahar Ka Itihas: क्यों मोतियों का शहर कहा जाता है हैदराबाद, जानें इस शहर का इतिहास और खासियत

Hyderabad Ka Itihas Wiki in Hindi: हैदराबाद शहर अपनी समृद्ध इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यहां कि ऐतिहासिक इमारतें, व्यंजन दुनियाभर में मशहूर हैं। आइए जानते हैं इस शहर का इतिहास।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 20 Jan 2025 10:30 AM IST (Updated on: 20 Jan 2025 10:30 AM IST)
Hyderabad Shahar Ka Itihas: क्यों मोतियों का शहर कहा जाता है हैदराबाद, जानें इस शहर का इतिहास और खासियत
X

History Of Hyderabad: हैदराबाद भारत के तेलंगाना राज्य की राजधानी है। इसे 'मोतियों का शहर' भी कहा जाता है।1591 में मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने मूसी नदी के तट पर हैदराबाद शहर की स्थापना की। भारतीय राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद (Hyderabad), एक जीवंत और ऐतिहासिक महानगर है, जो पारंपरिक संस्कृति और आधुनिक विकास का एक उत्तम उदाहरण है। ‘सिटी ऑफ़ पर्ल्स’ (City of Pearls) से मशहूर हैदराबाद वर्त्तमान समय में प्रौद्योगिकी, वाणिज्य और शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन चुका है।

यह शहर अपनी समृद्ध इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, जो इसके ऐतिहासिक स्थलों जैसे कि चारमीनार, गोलकोंडा किला और कुतुब शाही मकबरों में स्पष्ट रूप से दिखता है, और इसकी प्रसिद्ध व्यंजन, खासकर हैदराबादी बिरयानी के लिए भी जाना जाता है। वर्षों में, हैदराबाद एक आईटी और व्यापार सेवा केंद्र के रूप में उभरा है, और इसे ‘साइबराबाद’ (Cyberabad) भी कहा गया। यह शहर एक विविध सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करता है, जिसमें दक्षिण भारतीय परंपराओं, मुग़ल प्रभावों और वैश्विक उद्योगों के समकालीन प्रभावों का मिश्रण है। “इस लेख के जरिये हम इसकी उत्पत्ति, इतिहास, और विकास का विस्तार से वर्णन करेंगे।”

हैदराबाद का प्रारंभिक इतिहास (Early History of Hyderabad)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

• प्रारंभिक इतिहास:- हैदराबाद और उसके आसपास के क्षेत्र में पाषाण युग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। 1851 में मेगालिथिक दफन स्थलों और केयर्न सर्कल की खोज के दौरान इस बात का पता चला। 624-1075 ई. में चालुक्य वंश का शासन इस क्षेत्र पर था।

• काकतीय वंश (1158-1323 ई.):- 11वीं शताब्दी के अंत में, चालुक्य साम्राज्य के विभाजन के बाद, गोलकोंडा और आसपास के क्षेत्र पर काकतीय वंश का शासन स्थापित हुआ। 1199 में काकतीय शासक गणपतिदेव ने गोलकोंडा किले का निर्माण शुरू किया, जो बाद में महत्वपूर्ण किलों में से एक बन गया।

• दिल्ली सल्तनत और बहमनी सल्तनत (1323-1512 ई.):- काकतीय वंश के बाद, इस क्षेत्र में दिल्ली सल्तनत और बहमनी सल्तनत का शासन था। 1323-1512 के दौरान गोलकोंडा क्षेत्र बहमनी सल्तनत के अधीन रहा।

• क़ुतुब शाही वंश (1512-1687 ई.):- 1512 में क़ुतुब शाही वंश ने गोलकोंडा पर नियंत्रण प्राप्त किया और 1591 में मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने हैदराबाद शहर की स्थापना की। इसी दौरान गोलकोंडा में प्रतिकूल जलवायु और जलस्रोतों की कमी के कारण, क़ुतुबशाही वंश के पांचवे सुल्तान मोहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह ने 1591 ई. में गोलकोंडा से अपनी राजधानी स्थानांतरित करने का निर्णय लिया और इसे मूसी नदी के दक्षिणी तट पर एक नगर बसाया जिसे आज हैदराबाद के नाम से जाना जाता है। क़ुतुब शाही शासकों के अधीन, हैदराबाद ने समृद्धि प्राप्त की और यह हीरों के व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गया।

• मुग़ल शासन (1687-1724 ई.):- हैदराबाद का इतिहास क़ुतुबशाही वंश से शुरू होकर, मुग़ल साम्राज्य के तहत समृद्ध हुआ। 1687 में मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने गोलकोंडा क़िले पर कब्ज़ा किया और हैदराबाद मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल में हैदराबाद का सौभाग्य घटने लगा और यह मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। हालांकि, मुग़ल सूबेदार ने धीरे-धीरे अधिक स्वायत्तता प्राप्त की।

• निज़ाम का शासन (1724-1948 ई.):- मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद, हैदराबाद ने एक स्वतंत्र शासक के रूप में 'निज़ाम' का शासन देखा। 1724 में, मुग़ल साम्राज्य के सूबेदार आसफ जाह निज़ाम अल-मुल्क ने स्वतंत्रता की घोषणा की और हैदराबाद रियासत की नींव रखी। निज़ाम के तहत, हैदराबाद एक महत्वपूर्ण राज्य बना और 19वीं शताब्दी में यह आधुनिक हैदराबाद के रूप में विकसित हुआ। इस दौरान सिकंदराबाद जैसे उपनगर भी ब्रिटिश सैन्य क्षेत्र के रूप में विकसित हुए। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद, 1947 में रज़ाकार मिलिशिया द्वारा हिंसा के बाद, भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत 1948 में हैदराबाद पर आक्रमण किया और इसे भारतीय संघ में शामिल कर लिया।

• स्वत्रंत्रता के बाद:- 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय, हैदराबाद ने एक स्वतंत्र राज्य बने रहने का निर्णय लिया। इसके विरोध में भारत ने आर्थिक नाकेबंदी की, जिसके दबाव में हदराबाद को एक समझौता करना पड़ा, और 17 सितंबर 1948 को निज़ाम ने भारतीय संघ में विलय के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर दिए। 1956 में राज्यों के भाषायी पुनर्गठन के तहत, हैदराबाद राज्य को तेलुगु, मराठी और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया, और हैदराबाद को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया गया। भारतीय संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष बी.आर. अंबेडकर ने हैदराबाद को भारत की दूसरी राजधानी बनाने का सुझाव भी दिया था।

कैसे पड़ा हैदराबाद नाम (Hyderabad Name Change Story)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हैदराबाद नाम के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कथा यह है कि इस शहर की स्थापना के बाद, क़ुतुबशाही वंश के सुल्तान मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह ने एक स्थानीय बंजारा लड़की भागमती से प्रेम किया। प्रेम के इस संबंध ने विवाह का रूप लिया, जिसके बाद भागमती ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया। इस्लामी परंपरा के अनुसार, उसका नाम बदलकर 'हैदर महल' रखा गया। माना जाता है कि सुल्तान ने अपनी प्रेमिका के नाम से प्रेरित होकर इस शहर का नाम पहले 'भागनगर' रखा था, जिसे बाद में 'हैदराबाद' कर दाराबाद के नाम को लेकर अन्य ऐतिहासिक दृष्टिकोण भी मौजूद हैं, लेकिन भागमती और मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह की यह कहानी सबसे अधिक चर्चित है।

हैदराबाद को ‘सिटी ऑफ़ पर्ल्स’ क्यों कहा जाता है (City of Pearls)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हैदराबाद को 'सिटी ऑफ़ पर्ल्स' (मोतियों का शहर) कहा जाता है क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से मोती व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा है। क़ुतुबशाही और निज़ाम शासनकाल के दौरान, हैदराबाद मोती प्रसंस्करण और व्यापार का केंद्र बन गया था। यहाँ मोतियों की उच्च गुणवत्ता और कारीगरी के लिए दुनियाभर में ख्याति प्राप्त थी।

हैदराबाद में पत्थर काटने और मोती गूंथने की कला प्राचीन काल से विकसित हुई है। यहां के कारीगरों को मोतियों को उत्कृष्ट रूप में तराशने और जड़ने में महारत हासिल है। यह एक समय दुर्लभ हीरे, पन्ना, और प्राकृतिक मोतियों के व्यापार का वैश्विक केंद्र था। तथा यह शहर 400 सालों से ज़्यादा समय से भारत और दुनिया को बेहतरीन मोती आभूषण मुहैया करा रहा है। चारमीनार के पास लाड बाजार और पट्ठरगट्टी जैसे स्थान, पारंपरिक मोतियों और आभूषणों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, हैदराबाद में खाड़ी देशों और फारस से लाए गए प्राकृतिक मोतियों का प्रसंस्करण और निर्यात बड़े पैमाने पर होता था।

हाई-टेक सिटी हैदराबाद

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हैदराबाद, जिसे भारत की "साइबर सिटी" और "हाई-टेक सिटी" के रूप में जाना जाता है, देश का प्रमुख आईटी और प्रौद्योगिकी हब बन चुका है। 1990 के दशक से, हैदराबाद ने सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर सेवाओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है। यहां स्थित हाईटेक सिटी (HITEC City - Hyderabad Information Technology and Engineering Consultancy City) इस क्षेत्र के आईटी विकास का केंद्र है।

हाईटेक सिटी, जिसे "साइबराबाद" (Cyberabad) भी कहा जाता है, माधापुर क्षेत्र में स्थित है और इसे 1998 में स्थापित किया गया था। यह भारत के सबसे बड़े और आधुनिक आईटी पार्कों में से एक है। यहां माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक, ऐमज़ॉन, एप्पल, और टीसीएस जैसी शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्यालय हैं। यह 151 एकड़ में फैला हुआ है।

हैदराबाद की अन्य विशेषताएं (Hyderabad City Ki Khasiyat)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

• ऐतिहासिक महत्व:- हैदराबाद का इतिहास कुतुब शाही और निज़ाम शासकों से जुड़ा है। यहां की ऐतिहासिक इमारतें, जैसे चारमीनार, गोलकोंडा किला, और सालारजंग संग्रहालय, इसकी पुरातन भव्यता को दर्शाती हैं।

• हुसैन सागर झील:- हुसैन सागर झील हैदराबाद का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो शहर के केंद्र से केवल 2 किमी की दूरी पर स्थित है। यह झील न केवल हैदराबाद और सिकंदराबाद के बीच एक सेतु का काम करती है, बल्कि इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक माना जाता है। 1562 ई. में इब्राहीम कुतुब शाह के शासनकाल में इस झील का निर्माण किया गया था।

• खान-पान:- हैदराबाद अपने विशेष व्यंजनों के लिए मशहूर है। हैदराबादी बिरयानी, डबल का मीठा, और खुबानी का मीठा जैसे व्यंजन यहां के स्वाद और संस्कृति का प्रतीक हैं।

• फिल्म उद्योग:- तेलुगु फिल्म उद्योग, जिसे "टॉलीवुड" भी कहा जाता है, हैदराबाद में स्थित है। रामोजी फिल्म सिटी, दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म स्टूडियो, यहीं स्थित है।

• हैदराबाद को पहले 'फ़रखुंडा बुनियाद' के नाम से भी जाना जाता था।



Shreya

Shreya

Next Story