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Guruvayur Temple Kerala: दक्षिण भारत का द्वारका कहलाता है ये मंदिर, यहां पूरी होती है हर मुराद
Guruvayur Temple Kerala: आज हम आपको दक्षिण के द्वारका के नाम से पहचाने जाने वाले एक मंदिर के बारे मेंबताते हैं।
Guruvayur Temple Kerala : भारत में कई सारे धार्मिक स्थल मौजूद है जो अपने चमत्कारों की वजह से पहचाने जाते हैं। आज हम आपको दक्षिण के द्वारका के नाम से पहचाने जाने वाले एक मंदिर के बारे मेंबताते हैं। भारत विविधताओं से भरा हुआ एक ऐसा देश है, जहां पुरुष से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई सारे प्रसिद्ध और धार्मिक स्थान मौजूद है। जहां हजारों भक्त अपनी आस्था लेकर पहुंचते हैं। धार्मिक स्थलों की बात होती है तो भारत में मंदिरों का जिक्र जरूर होता है। हमारे देश में एक नहीं बल्कि कई सारे मंदिर हैं जो भक्तों के बीच किसने किसी कारण से प्रसिद्ध है। इन मंदिरों में भक्ति दर्शन करने और अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। केरल भारत का एक प्रसिद्ध राज्य है और यहां पर गुरुवायुर मंदिर मौजूद है जो दक्षिण भारत के द्वारका के नाम से पहचाना जाता है। चलिए आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास और इसकी पुरानी कहानियों के बारे में बताते हैं।
कहां है गुरुवायुर मंदिर
सबसे पहले तो आपको बता दें कि गुरुवायुर मंदिर केरल के त्रिसूर जिले में मौजूद है। यह जगह अपनी खूबसूरती और मनमोहन स्थान के लिए दुनिया भर में पहचानी जाती है। यहां की खूबसूरती के बीच यह मंदिर इसमें चार चांद लगता है।
गुरुवायुर मंदिर का इतिहास
गुरुवायुर अपने मंदिर के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जो कई शताब्दियों पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वंय विश्वकर्मा द्वारा किया गया था और मंदिर का निर्माण इस प्रकार हुआ कि सूर्य की प्रथम किरणें सीधे भगवान गुरुवायुर के चरणों पर गिरें। गुरुवायुरप्पन मंदिर को दक्षिण की द्वारिका के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर 5000 साल पुराना है और 1638 में इसके कुछ हिस्से का पुनर्निमाण किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण बाल रुप में इस मंदिर में विराजमान हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के मुताबिक, मंदिर का निर्माण देवगुरु बृहस्पति ने किया था। खास बात ये है कि इस मंदिर में हिंदुओं के अलावा दूसरे धर्मों के लोग प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
गुरुवायुर मंदिर की पौराणिक कथा
गुरुवायुर नगर और भगवान गुरुवायुरप्पन के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत में गुरु बृहस्पति और वायु देव को भगवान कृष्ण की एक मूर्ति मिली थी। मानव कल्याण के लिए वायु देव और गुरु बृहस्पति ने एक मंदिर में इसकी स्थापना की और इन दोनों के नाम पर ही भगवान का नाम गुरुवायुरप्पन और नगर का नाम गुरुवायुर पड़ा। मान्यता के अनुसार कलयुग से पहले द्वापर युग के दौरान यह मूर्ति श्रीकृष्ण के समय भी मौजूद थी।
कैसी दिखाई देती है गुरुवायुर मंदिर की मूर्ति
गुरुवायुरप्पन मंदिर में भगवान कृष्ण की चार हाथों वाली मूर्ति है। जिसमें भगवान ने एक हाथ में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र और तीसरे हाथ में कमल पुष्प और चौथे हाथ में गदा धारण किया हुआ है। ये मूर्ति की पूजा भगवान कृष्ण के बाल रुप यानी बचपन के रुप में की जाती है। इस मंदिर में शानदार चित्रकारी की गयी है जो कृष्ण की बाल लीलाओ को प्रस्तुत करती हैं | इस मंदिर को भूलोक वैकुंठम के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है धरती पर वैकुण्ठ लोक |