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Jagannath Puri Yatra Details: धर्म, रहस्य, रोमांच व पर्यटन हर लिहाज़ से ज़रूरी है जगन्नाथ पुरी की यात्रा
Jagannath Puri Yatra Details: भारत देश के पूर्वी सीमा पर बंगाल की खाड़ी के किनारे ओडिशा राज्य में बसा पुरी चार धामों रामेश्वरम, द्वारका, बद्रीनाथ और जगन्नाथ पुरी में एक धाम है।
Jagannath Puri Yatra Details: भारत देश के पूर्वी सीमा पर बंगाल की खाड़ी के किनारे ओडिशा राज्य में बसा पुरी चार धामों रामेश्वरम, द्वारका, बद्रीनाथ और जगन्नाथ पुरी में एक धाम है। यह धाम ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। अपने रमणीक समुद्री तट और पवित्र तीर्थस्थल होने के कारण लाखों की संख्या में लोग खींचे चले आते हैं। अक्टूबर से मार्च तक मौसम अच्छा होने के कारण इस जगह की यात्रा करना सुहावना रहता है।
चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला यह जगन्नाथ मंदिर 214 फुट ऊंचा है और करीब 20 फुट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। कलिंग शैली में बने इस मंदिर के शिखर पर अष्टधातुओं से बना सुदर्शन चक्र (नील चक्र) है, जिसे आप किसी भी दिशा से देखेंगे अपनी ओर ही पाएंगे। पुरी मंदिर के चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुए हैं। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के दर्शन मंदिर में सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक कर सकते हैं। हर दिन दोपहर 1.30 बजे मंदिर में भोग लगाया जाता है, जिसे महाप्रसाद कहते है। इसका सेवन कर हर इंसान अपने को भाग्यशाली मानता है। उस प्रसाद का स्वाद अद्भुत अनुभूति देता है।
पुरी मंदिर के विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जैसे हर 12 साल में जगन्नाथ की मूर्ति का नवकलेवर यानी नया विग्रह बनाया जाता है। घने अंधेरे में तीन पुजारी नई मूर्तियों के अंदर ब्रह्म पदार्थ डालते हैं। उस दौरान उनके आंखों पर पट्टियां बंधी रहती हैं। मंदिर के शीर्ष पर एक पताका लहराता रहता है जिसे हर शाम सूर्यास्त से पहले बदला जाता है। यह पताका या झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता नजर आता है। यह परंपरा लगभग हजारों वर्षों से चली आ रही है। ऐसा मानना है कि मंदिर के ऊपर से कभी कोई पक्षी नहीं गुजरता। ऐसा भी मानना है कि मंदिर के शिखर का छाया दिन में किसी भी समय नहीं दिखाई देता।
हर साल आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। दस दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में भगवान गुंडीचा स्थित अपने मौसी के घर जाते हैं। दरअसल ज्येष्ठ पूर्णिमा को स्नान करने के बाद भगवान 15दिनों तक बीमार रहते हैं और इस दौरान किसी भक्त को दर्शन नहीं देते। जगन्नाथ भगवान की सारी प्रक्रिया एक साधारण मानव के जीवन शैली जैसी की जाती है। इस बार यह रथ यात्रा 20 जून से शुरू होगी। देश विदेश से लाखों की संख्या में सैलानी और भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं। यात्रा की शुरुआत पुरी के राजा द्वारा खुद से सोने के रथ में झाड़ू लगा कर होती है।
पुरी मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है जिसमें हर दिन भगवान को 56 भोग लगाया जाता है। रसोई में प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है और लकड़ी की आग में पकाया जाता है।
कैसे पहुंचे?
जगन्नाथ पुरी पहुंचने के लिए ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर पहुंचकर सड़क मार्ग से बस या कार लेकर जा सकते हैं। भुवनेश्वर हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वहां पहुंच कर होटल में ठहरा जा सकता है।
पुरी में खरीदारी के लिए शिल्पकारी , ओडिशा के मशहूर प्रिंट के कपड़े, समुद्री शंख इत्यादि वस्तुएं आजमा सकते हैं।
अगर शीत ऋतु में छुट्टियों में आप पुरी जाना चाहते हैं तो मौसम सुहावना तो रहता ही है और आसपास के प्रसिद्ध स्थल कोणार्क, साक्षी गोपाल, भुवनेश्वर , चिल्का आदि भी देख सकते हैं। समुद्र तट का मजा लेने के साथ एक धाम का भी दर्शन हो जायेगा। वहीं दूसरी ओर गर्मियों में विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा का आनंद लिया जा सकता है।