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Jagannath Vrindavan Connection: 500 साल पहले पूरी से स्वयं वृंदावन आए थे भगवान जगन्नाथ, जाने इतिहास
Jagannath Vrindavan Connection: वृंदावन को सबसे ज्यादा कृष्ण लीलाओं के लिए पहचाना जाता है। यहां पर भगवान जगन्नाथ का एक मंदिर है। यहां स्थापित मूर्तियां स्वयं भगवान के आदेश पर यहां लाई गई थी।
Jagannath Vrindavan Connection: वृन्दावन, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है। वृन्दावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहां विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं। बांके बिहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का, ठा.श्री पर्यावरण बिहारी जी का मंदिर बड़े प्राचीन हैं ।
वृंदावन के मंदिर
यहां श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर। निधि वन, श्री रामबाग मन्दिर आदि भी दर्शनीय स्थान है।
वृंदावन की महिमा
यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है।
वृंदावन का जगन्नाथ मंदिर
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बारे मे तो सभी जानते हैं लेकिन वृंदावन में भी एक जगन्नाथ मंदिर है जो अपने चमत्कार के लिए पहचाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित की गई मूर्ति को पुरी से लाकर यहां पर रखा गया है। दरअसल पुरी के जगन्नाथपुर धाम में हर 36 साल में एक बार विग्रह बदले जाते हैं और पुराने विग्रह को समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाता है। लेकिन एक समय ऐसा था जब इन विग्रह को प्रवाहित ना करते हुए वृंदावन में लाकर स्थापित किया गया। इन सब में हैरानी की बात यह है कि यह सब कुछ भगवान जगन्नाथ के आदेश पर हुआ था।
ऐसी है कहानी
पंजाब प्रांत के साधक संत हरिदास ने यमुना किनारे भगवान की साधना के लिए डेरा डाल रखा था। संत हरिदास की साधना से प्रसन्न होकर भगवान जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न दिया कि पुरी में 36 वर्ष बाद विग्रह परिवर्तन होता है और जिस विग्रह की वर्तमान में पुरी में पूजा-सेवा हो रही है, उसे समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाएगा। इस विग्रह को लाकर वृंदावन में यमुना किनारे स्थापित करो। भगवान की इच्छा को ध्यान में रखते हुए संत हरिदास पुरी के लिए रवाना हो गए और काफी दिक्कतों के बाद पुरी में सेवित विग्रह को लेकर वृंदाव आए और जगन्नाथजी को वृंदावन में स्थापित किया।
लाने में आई थी अड़चन
संत हरिदास जब जगन्नाथपुरी पहुंचे तो वहां विग्रह परिवर्तन में 4 दिन का समय था। ऐसे में हरिदास ने पंडितों से विग्रह परिवर्तन को अपने साथ जाने की बात कही। जिससे वह काफी नाराज हो गए। तो हरिदास जगन्नाथ पुरी के राजा रुद्रप्रताप के पास विग्रह परिवर्तन को लेकर बात करने के लिए पहुंचे। राजा ने संत हरिदास का सम्मान किया। लेकिन जब हरिदास ने अपना आने का कारण बताया तो राजा भी काफी नाराज हो गए। कहा ये कैसे संभव है, हम अनादि काल से विग्रह परिवर्तित को समुद्र प्रवाहित करते हैं। राजा क्रोधित हुए तो हरिदास समुद्र के किनारे आकर बैठ गए और अन्न जल का त्याग दिया। मन ही मन प्रभु जगन्नाथ से शिकायत भी करने लगे कि आप ने ही आदेश दिया कि मेरे विग्रह परिवर्तित हो वृंदावन ले जाओ और आप ही हैं जो राजा को भी ऐसा करने से मना भी कर रहे हैं। इसके बाद रात में राजा को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने आदेश दिया कि हरिदास को विग्रह परिवर्तित ले जाने दीजिए। भगवान का आदेश पाते ही सुबह राजा खुद हरिदास को खोजते हुए समुद्र किनारे पहुंचा और हाथ जोड़ क्षमा मांग विग्रह को अपने साथ ले जाने की अनुमति दी।
राजा ने विग्रह को रथ पर विराजमान करवाया और संत हरिदास से वृंदावन ले जाने का आग्रह किया। तभी संत हरिदास भगवान जगन्नाथ के विग्रह को लेकर वृंदावन आए और यमुना किनारे संत हरिदास ने जगन्नाथ प्रभु का मंदिर बनवाया और विग्रह परिवर्तित को वहीं पर स्थापित किया। तभी से ये मंदिर यहां मौजूद है।