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Jalore travel : ग्रेनाइट खादानों के साथ किले, धार्मिक संस्थानों और वन अभ्यारण्य की करें सैर

Jalore travel: जालोर मूल रूप से जाबालिपुर के नाम से विख्यात था और यह नाम संत महर्षि जाबालि के सम्मान में पड़ा। जालोर की समृद्ध रियासत के कारण इसे गोल्डन माउंट यानि स्वर्णगिरि के नाम से भी बुलाया जाता था।

Sarojini Sriharsha
Published on: 29 Nov 2024 7:32 AM IST
Jalore travel : ग्रेनाइट खादानों के साथ किले, धार्मिक संस्थानों और वन अभ्यारण्य की करें सैर
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Rajasthan travel : देश का राजस्थान राज्य अपनी संस्कृति, कला, महलों, किलों और ऐतिहासिक विरासत के लिए दुनिया भर में मशहूर है। देशी के साथ साथ विदेशी पर्यटक भी यहां भारी तादाद में आते हैं। इस राज्य के हर जिले में कुछ अनोखा देखने को मिलेगा। ऐसा ही एक जिला है जालोर जिसे माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। जालोर मूल रूप से जाबालिपुर के नाम से विख्यात था और यह नाम संत महर्षि जाबालि के सम्मान में पड़ा। जालोर की समृद्ध रियासत के कारण इसे गोल्डन माउंट यानि स्वर्णगिरि के नाम से भी बुलाया जाता था। जालौर भी एक ऐतिहासिक शहर है जहां कई पर्यटन स्थल मौजूद है। यहां धार्मिक स्थल के साथ साथ कई प्राकृतिक स्थलों की सैर भी की जा सकती है। यह जगह ग्रेनाइट खदानों के लिए भी मशहूर है।

जालोर में कई दर्शनीय स्थल हैं जिनका पर्यटक लुत्फ़ उठा सकते हैं। उनमें कुछ प्रमुख हैं :

जालोर किला

जालोर किला अपनी वास्तुकला के लिए मशहूर है। एक सीधी पहाड़ी के ऊपर करीब 336 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस किले का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में हुआ था। इस किले के ऊपर से पर्यटक जालोर शहर का नज़ारा देख सकते हैं। इस किले की ऊंची और किलेनुमा दीवारों पर तोपें लगी हैं, जो सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहता है। इस किले में 4 बड़े दरवाज़े हैं। लेकिन एक दरवाजे से घुमावदार सीढ़ियों की मदद से पर्यटक इस किले तक पहुंच सकते हैं।

तोपखाना

ऐसा माना जाता है कि राजा भोज ने 7वीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था जो उस जमाने में एक संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। शहर के बीच स्थित इस विद्यालय को ब्रिटिशकाल में तोपखाना और गोला-बारूद रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जिससे इसका नाम तोपखाना पड़ गया। तोपखाना के दोनों किनारे मूर्ति रहित दो मंदिरनुमा संरचना है। उस तोपखाना के अंदर करीब 10 फीट की ऊंचाई पर एक कमरा है जिसमें प्रवेश के लिए सीढ़ियां बनी हैं और ऐसी मान्यता है कि राजा भोज द्वारा बनाए गए इस स्कूल के प्रिंसिपल इसी कमरे में रहते थे।

मलिक शाह की मस्जिद

जालोर में कई शासकों ने अपना राज्य चलाया उन्हीं में से एक अलाउद्दीन खिलजी था। इसी खिलजी ने बगदाद के सुल्तान मलिक शाह के सम्मान में इस मस्जिद का निर्माण करवाया जिसका नाम मलिक शाह मस्जिद है। विशेष वास्तुकला शैली में बनी यह मस्जिद जालोर किले के बीच में स्थित है।

सराय मंदिर

जालोर के प्रमुख मंदिरों में से एक सराय मंदिर करीब 646 मीटर की ऊंचाई पर कलशाचल पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महर्षि जाबालि के सम्मान में महाराजा रावल रतन सिंह ने कराया था। लोगों का कहना है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां एक बार मंदिर में शरण ली थी। इस पहाड़ी मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 3 किमी की पैदल यात्रा कर पर्यटक एक अलग आनंद महसूस कर सकते हैं।

सुंधा माता मंदिर

अरावली पर्वतश्रृंखलों में सुंधा पहाड़ी पर समुद्र तल से करीब 1220 मीटर की ऊंचाई पर सुंधा माता का यह पवित्र मंदिर है। मंदिर में सफेद संगमरमर से बने देवी चामुंडा की मूर्ति भक्तों को सुखद अनुभव देती है। वहीं इस मंदिर में बने स्तंभ पर्यटकों में माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर की याद ताजा कर देता है। कुछ प्राचीन शिलालेख जिनका ऐतिहासिक महत्व है इस मंदिर में देखने को मिल जाएंगे। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने लायक होती है।

नीलकंठ महादेव मंदिर

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर जालोर के भाद्राजून गांव में मौजूद है। पर्यटकों को इस मंदिर में बनी उंची संरचना वाला शिवलिंग काफी आकर्षित करता है। एक किंवदंती के अनुसार इस गांव में एक विधवा महिला भक्त ने एक शिवलिंग देखा और उसकी नियमित भक्ति भाव से पूजा करने लगी। उसके परिवार वालों ने उस शिवलिंग को गायब करने के लिए कई उपाय किए लेकिन उस जगह यह शिवलिंग अपने आप आ जाता। बाद में यह शिवलिंग रेत के एक टीले के रूप में उभर आया और लोग इसे भगवान शिव का चमत्कार मानने लगे। महाशिवरात्रि और श्रावण महीने में भक्त यहां काफी संख्या में आते हैं। जालोर की यात्रा में पर्यटक इसे देखना नहीं भूलते।

जालोर वन्यजीव अभ्यारण्य

जोधपुर से करीब 130 किमी की दूरी पर जालोर के निकट यह वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित है। भारत का एकमात्र प्राइवेट अभ्यारण्य, जालोर वन्यजीव अभ्यारण्य लगभग 190 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस प्राकृतिक अभ्यारण्य में सैलानी पैदल या जीप सफारी की मदद से घूम सकते हैं। हर दिन यहां तीन घंटे का दो बार जीप सफारी वन अधिकारी पर्यटकों के लिए संचालित करते हैं। इसे ऑनलाइन भी बुक किया जा सकता है। पक्षी प्रेमी और पक्षियों को देखने वाले पर्यटकों के लिए यह जगह बहुत खास है, यहां पर करीब 200 प्रजातियों के विभिन्न पक्षियों को करीब से देखने का मौका मिलता है। इसके अलावा कई लुप्तप्राय जंगली जानवरों जैसे रेगिस्तानी लोमड़ी, तेंदुआ, एशियाई-स्टेपी वाइल्डकैट, तौनी ईगल, नीलगाय, भारी संख्या में मृग और हिरण आदि भी पर्यटक इस अभयारण्य में देख सकते हैं।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से जालोर पहुंचने का निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जहां से जालोर लगभग 137 किलोमीटर दूर है। उदयपुर के डबोक हवाई अड्डा से भी जालोर पहुंचा जा सकता है। उदयपुर से जालोर लगभग 142 किमी दूर है। इसके अलावा जालोर से 35 किमी दूर नून गांव में एक हवाई पट्टी है। हवाई अड्डे से टैक्सी या नजदीकी हवाई अड्डे से रेल मार्ग द्वारा भी जालोर पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग से निकटतम स्टेशन जालोर रेलवे स्टेशन है। जोधपुर, दिल्ली, मुंबई और गुजरात से कई ट्रेन यहां आती हैं।

सड़क मार्ग से जालोर राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां जोधपुर, जयपुर, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, सूरत से अच्छी बस सेवा है जिसके द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं। टैक्सी या अपनी प्राइवेट गाड़ियों से भी यहां आया जा सकता है।

यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम होता है, जो अक्टूबर से मार्च तक रहता है। राजस्थान गर्मियों में ज्यादा गर्म होता है जिसमें घूमने का मज़ा नहीं आता। अभी सर्दियों के दिन शुरू हो चुके हैं ऐसे में इन जगहों की यात्रा बेहद सुखद होता है।



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Ragini Sinha

Ragini Sinha

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