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Jharia Ka Itihas: कैसे एक राज्य जल रहा है 100 वर्षों से, कोयला धरती बनी आग का गोला,’द बर्निंग सिटी’ की कहानी
Jharia Me Aag Lagne Ka Karan: धनबाद झारखंड का एक प्रमुख शहर है, जिसे ‘भारत की कोयला राजधानी’ के नाम से भी जाना जाता है। झरिया, जो धनबाद जिले में स्थित है, कोयला खनन का एक बड़ा केंद्र है।
Jharia Ka Itihas: झारखंड के धनबाद जिले का झरिया देश और दुनिया में अपने कोयले, जिसे ‘काला सोना’ कहा जाता है, के लिए प्रसिद्ध है। यहां भारत का सबसे उच्च गुणवत्ता वाला बिटुमिनस कोयला पाया जाता है, जिसका उपयोग कोक बनाने में किया जाता है। कोक एक ठोस ईंधन है जिसका उपयोग मुख्य रूप से स्टील उद्योग में होता है। झरिया को मुंबई के साथ अक्सर तुलना की जाती है, जहां कहा जाता है कि मुंबई का धन धरती के ऊपर है, जबकि झरिया का धन धरती के नीचे छिपा हुआ है। लेकिन यह क्षेत्र पिछले 100 वर्षों से एक बड़ी समस्या-धरती के नीचे धधकती आग- से जूझ रहा है।झारखंड के गांव झरिया और धनबाद भारत के सबसे प्रमुख कोयला खनन क्षेत्रों में से एक हैं। यह क्षेत्र कोयला उत्पादन के लिए जाना जाता है। लेकिन इसी कारण से झरिया क्षेत्र दशकों से जल रहा है।
झरिया और धनबाद
धनबाद झारखंड का एक प्रमुख शहर है, जिसे ‘भारत की कोयला राजधानी’ के नाम से भी जाना जाता है। झरिया, जो धनबाद जिले में स्थित है, कोयला खनन का एक बड़ा केंद्र है। यहां की कोयला खदानें उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसका उपयोग स्टील उत्पादन में किया जाता है।
यहां की कोयला खदानें भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा पूरा करती हैं। लेकिन इनके अत्यधिक दोहन और असावधानीपूर्वक खनन ने झरिया को एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का केंद्र बना दिया है। धनबाद के औद्योगिक महत्व ने इसे विकास की ओर तो अग्रसर किया है। लेकिन यहां के निवासियों को खतरनाक परिस्थितियों में जीने को मजबूर भी किया है।
झरिया में आग का इतिहास: 1916 में पहली बार आई चर्चा
झरिया में धरती के नीचे जलती आग की पहली बार चर्चा 1916 में हुई। शुरुआती दौर में इस आग को बुझाने के प्रयास किए गए। लेकिन गंभीरता की कमी और कुशल रणनीति के अभाव ने इन प्रयासों को असफल बना दिया।
समय के साथ यह आग और तेजी से फैलती गई, जिससे इस पर काबू पाना और मुश्किल हो गया। धीरे-धीरे यह आग झरिया की बड़ी समस्या बन गई, जिसे अब तक सुलझाया नहीं जा सका है।
कोयले से संचालित भारत की ऊर्जा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की 65 प्रतिशत से अधिक बिजली उत्पादन कोयले पर निर्भर है, जिसमें झरिया क्षेत्र का अहम योगदान है।
हालांकि, झरिया पिछले 100 वर्षों से आग की भेंट चढ़ा हुआ है। धरती के नीचे जल रही इस आग ने यहां के निवासियों और पर्यावरण दोनों को संकट में डाल दिया है।
झरिया की आग और उसके प्रभाव
पानी और स्वास्थ्य समस्याएं: स्थानीय निवासी बताते हैं कि आग के कारण जमीन के नीचे कुआं खोदना या चापाकल लगाना असंभव हो गया है। सप्लाई का पानी भी अनियमित रूप से आता है। वायु प्रदूषण और जहरीली गैसों के कारण सांस की बीमारियां, त्वचा रोग और आंखों में जलन जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। लोग हर दिन यह डर लेकर जीते हैं कि उनका घर कब इस आग की चपेट में आ जाएगा।
पर्यावरणीय प्रभाव: झरिया की आग ने न केवल मानव जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि पर्यावरण को भी गहरी चोट पहुंचाई है। आग से निकलने वाली जहरीली गैसें और धुआं वायु प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। इसके अतिरिक्त, जमीन का बड़ा हिस्सा बंजर हो चुका है, जिससे खेती और अन्य आर्थिक गतिविधियां असंभव हो गई हैं। आसपास के वन्य जीवन और पर्यावरणीय संतुलन पर भी इस समस्या का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
झरिया में जलती हुई कोयला खदानें भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें छोड़ती हैं। यह वायु प्रदूषण यहां के निवासियों की सांस लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। कई गंभीर बीमारियों को जन्म देता है।आग के कारण भूमि की उर्वरता नष्ट हो गई है। खनन क्षेत्र की जमीन बेकार हो गई है, जिससे कृषि और अन्य गतिविधियां लगभग असंभव हो गई हैं।कोयला खदानों से निकलने वाले जहरीले रसायन जल स्रोतों में मिलकर उन्हें दूषित करते हैं। पीने के पानी की गुणवत्ता पर इसका गहरा असर पड़ा है।आग के कारण भूमिगत कोयला खदानें कमजोर हो गई हैं, जिससे जमीन धंसने की घटनाएं आम हो गई हैं। यह घटनाएं न केवल भौतिक नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि लोगों के जीवन को भी खतरे में डालती हैं।
विस्थापन और आर्थिक संकट के कारण बच्चों की शिक्षा बाधित होती है। कई बच्चे पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करने पर मजबूर हो जाते हैं. कोयला खनन क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध है। लेकिन यह अस्थिर और खतरनाक है। खदानों में आग और विस्थापन के कारण रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।विस्थापन और गरीबी ने सामाजिक तनाव और अपराध में वृद्धि की है। यहां के निवासियों के बीच असंतोष और हताशा व्याप्त है।आग के कारण लाखों टन कोयला नष्ट हो गया, जिससे राष्ट्रीय और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सरकार की योजनाएं और प्रयास
बीसीसीएल को झरिया की आग बुझाने और पुनर्वास कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2009 में झरिया मास्टर प्लान की शुरुआत की गई थी, जिसका उद्देश्य आग को नियंत्रित करना और प्रभावित परिवारों को पुनर्वास प्रदान करना है।
प्रभावित परिवारों को पुनर्वास देने के लिए झरिया और धनबाद में नए घर बनाने की योजनाएं चलाई गईं।
हाल की योजनाएं
आग बुझाने के लिए भूमिगत इंजेक्शन और अन्य उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। खनन के अलावा अन्य उद्योगों में रोजगार के अवसर विकसित किए जा रहे हैं।
वनीकरण और प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास तेज किए जा रहे हैं।अधिक परिवारों को पुनर्वास योजना में शामिल करने का काम किया जा रहा है।
बदलती सरकारों का योगदान
बदलती सरकारों ने झरिया और धनबाद की समस्याओं को सुलझाने के लिए कई योजनाएं बनाईं। लेकिन इनका क्रियान्वयन धीमा और अधूरा रहा। प्रशासनिक और वित्तीय बाधाओं के कारण योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई हैं।
समस्याएं और चुनौतियां
आग की जटिलता और बड़े क्षेत्र के कारण इसे बुझाना मुश्किल है।पुनर्वास योजनाएं धीमी गति से चल रही हैं, जिससे प्रभावित परिवारों को समय पर राहत नहीं मिल रही है।
पर्याप्त धन और आधुनिक तकनीकों की कमी ने समस्या को और जटिल बना दिया है।कुछ क्षेत्रों में पुनर्वास के लिए स्थानीय समुदाय की अनिच्छा योजना में बाधा बनती है।
राजनीतिक संघर्ष और झरिया का दुर्भाग्य
झरिया की राजनीति पिछले पांच दशकों से एक ही परिवार के प्रभाव में रही। लेकिन आपसी संघर्ष ने इस प्रभाव को कमजोर कर दिया। क्षेत्र के लोकप्रिय नेता नीरज सिंह की हत्या और वर्तमान विधायक संजीव सिंह के जेल जाने से झरिया में नेतृत्व का अभाव साफ दिखाई दिया। जननेता की इस कमी ने झरिया की समस्याओं को और बढ़ा दिया।
झरिया की वर्तमान स्थिति
इस क्षेत्र में हजारों लोग भयंकर परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आग की लपटें कई घरों को अपनी चपेट में ले चुकी हैं। कुछ लोग खदानों से अवैध रूप से कोयला निकालकर बेचते हैं और अपनी आजीविका कमाते हैं।
अत्यधिक प्रदूषण और विषैली हवा में जीने को मजबूर ये लोग न केवल स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, बल्कि पानी की कमी जैसी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं।
समाधान और सुझाव
झरिया मास्टर प्लान को तेज और प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।कृषि, हस्तशिल्प और छोटे उद्योगों में रोजगार के अवसर विकसित किए जाएं।आग बुझाने और खदानों की निगरानी के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाए।स्थानीय अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को बेहतर सुविधाओं से लैस किया जाए।स्थानीय निवासियों को योजनाओं में शामिल किया जाए और उनकी समस्याओं को प्राथमिकता दी जाए।बच्चों की शिक्षा पर जोर दिया जाए और बाल मजदूरी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।वनीकरण, जल शुद्धिकरण और प्रदूषण नियंत्रण के ठोस उपाय किए जाएं।झरिया और धनबाद की समस्या केवल कोयला खनन से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकट भी है। इसे सुलझाने के लिए सरकार, स्थानीय प्रशासन और समुदाय को मिलकर काम करना होगा। जब तक योजनाओं का सही क्रियान्वयन और प्रभावी उपाय नहीं किए जाते, तब तक झरिया की आग और इससे जुड़ी समस्याएं समाप्त होना मुश्किल है।
झरिया की आग न केवल स्थानीय निवासियों के लिए, बल्कि पूरे पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या का समाधान ढूंढना अत्यंत आवश्यक है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वासित करना और आग बुझाने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल लोगों की जान बचाएगा, बल्कि झरिया को एक बार फिर से भारत के औद्योगिक विकास में योगदान देने के लिए सक्षम बनाएगा।
झरिया, जो कभी भारत के आर्थिक विकास में योगदान देने वाला एक प्रमुख क्षेत्र था, अब आग और विस्थापन जैसी समस्याओं से घिरा हुआ है। राजनीतिक अस्थिरता और नेतृत्व की कमी ने इसे और अधिक जटिल बना दिया है। झरिया को इन समस्याओं से उबारने के लिए न केवल तकनीकी और वैज्ञानिक प्रयासों की जरूरत है, बल्कि एक प्रभावी और संवेदनशील नेतृत्व की भी आवश्यकता है।