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Hindu Pilgrimage: तीर्थयात्रा से आकस्मिक मृत्यु प्राप्त नहीं होती

Hindu Pilgrimage: यात्रा केवल इसलिए तीर्थयात्रा नहीं हो जाती कि आप किसी पवित्र मंदिर वाले शहर में जा रहे हैं, यात्रा तीर्थयात्रा बनती है आपके तप से, संयम से, श्रद्धा से

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Newstrack Network
Published on: 24 May 2024 1:15 PM IST (Updated on: 24 May 2024 3:56 PM IST)
Hindu Pilgrimage
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Hindu Pilgrimage: आज से पन्द्रह बीस साल पहले तक गाँव को कोई व्यक्ति जब किसी तीर्थ-धाम पर जाता तो सारा गांव उसे श्रद्धा से देखता था। उनके वापस आने पर लोग उनसे श्रद्धापूर्वक मिलने जाते थे। व्यक्ति तीर्थ से प्रसाद खरीदता तो छोटी छोटी पुड़िया बना कर पूरे टोले में बांटा जाता था। लोग श्रद्धा पूर्वक प्रसाद की प्रतीक्षा करते थे।तीर्थ लोग इस भाव से जाते कि जीवन में अबतक जो भूल-चुक हुई है, प्रभु उसे क्षमा करेंगे। यात्रा में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता कि कोई भूल न हो, कोई अपराध न हो, हमसे किसी को चोट न पहुँचे।

चार धाम की यात्रा के लिए जब कोई बुजुर्ग निकलता तो सारे लोग उन्हें विदा करते और लौटने पर सब उन्हें प्रणाम कर के आशीर्वाद लेते। चार धाम यात्रा कर चुके बुजुर्ग हर तरह की नकारात्मकता से दूर हो जाते थे और केवल पूजा पाठ करके ही जीवन बिताते थे। अनेक लोग तो चार धाम की यात्रा पर इस विचार से निकलते थे कि अब वापस नहीं लौटेंगे। हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों के बीच कहीं उन्हें मृत्यु मिल जाती थी और जीवन की यात्रा तीर्थयात्रा की तरह पूरी हो जाती। जिन्हें आकस्मिक मृत्यु प्राप्त नहीं होती, वे भी उधर ही किसी मठ मन्दिर पर रुक कर सेवा करते और अंततः जीवन पूर्ण कर लेते थे।


उसी केदार-बदरी की यात्रा पर बियर की बोतलें लाद कर ले जाते असभ्य लौंडे और पतुरिया की तरह पिछवाड़ा डुला कर वीडियो बना रही लड़कियों में उस पवित्र भाव का लेश मात्र भी है? नहीं है। उनमें न श्रद्धा है, न संस्कार। यदि श्रद्धा होती तो केदारनाथ धाम जैसे पवित्र स्थान को नाचने की जगह नहीं बना देते, और यदि संस्कार होता तो जानते कि कुछ तीर्थों की मर्यादा शांति में है, भीड़ में नहीं। काशी की परम्परा अलग है और केदार की अलग। मथुरा की मर्यादा अलग है और कामाख्या की अलग।


सच पूछिए तो कोई भी यात्रा केवल इसलिए तीर्थयात्रा नहीं हो जाती कि आप किसी पवित्र मंदिर वाले शहर में जा रहे हैं। यात्रा तीर्थयात्रा बनती है आपके तप से, संयम से, श्रद्धा से। हरिद्वार का आनन्द तो यही है कि आप मनसा माता या चंडी माता का दर्शन पैदल सीढ़ी चढ़ कर करें। यदि पच्चीस साल का नौजवान भी रोप वे पर लटक कर "वाव, अमेजिंग" करता हुआ जा रहा है, तो वह नौटंकी कर रहा है। उसे शायद यह भी पता नहीं होगा कि उसके मुहल्ले के मन्दिर में भोग कहाँ से लगता है। वह पर्यटन को तीर्थयात्रा समझ रहा है और डाँड़ हिलाने को भक्ति


हिन्दू जनमानस के लिए केदार-बदरी की यात्रा कभी भी सामान्य तीर्थयात्रा नहीं रही। यह गृहस्थ धर्म निभा लेने के बाद, तमाम चारित्रिक विकारों से मुक्त होने के बाद की यात्रा मानी जाती है। यदि कोई इज्वाय करने जा रहा है तो वस्तुतः तीर्थ की मर्यादा को तार तार कर रहा है। वे उन तीर्थयात्रियों को परेशान भी कर रहे हैं जो सचमुच श्रद्धा भाव से तीर्थ करने निकले हैं।भारत में पर्यटक स्थलों की कमी नहीं है। बेहतर होता कि यह असभ्य भीड़ पर्यटन के लिए मसूरी नैनीताल दार्जिलिंग या फिर बैंकॉक जाती।संस्कारहीन युवाओं की भीड़ सभ्यता का दुर्भाग्य होती है दोस्त!





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Shalini singh

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