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Kala Pani Jail History: कालापानी का काला इतिहास, कई सारे ऐसे रहस्य जिन्हें आप नहीं जानते, वीडियो में देखें ये खास रिपोर्ट

Kala Pani Jail History: काला पानी शब्द का अर्थ मृत्यु के स्थान से है, जहां से कोई वापस नहीं आता। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Akshita Pidiha
Published on: 9 May 2023 4:39 PM IST (Updated on: 9 May 2023 4:46 PM IST)

Kala Pani Jail History: कालापानी-सुनने में लग रहा है जैसे किसी पानी को काला कहा जा रहा हो। पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। यह एक सजा (Punishment) का नाम है। जो ब्रिटिश काल में दी जाती थी। आइए इसे विस्तार से समझते हैं। काला पानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल से बना माना जाता है। जिसका अर्थ होता है समय या मृत्यु। यानी काला पानी (Kaalapani) शब्द का अर्थ मृत्यु के स्थान से है, जहां से कोई वापस नहीं आता।

इसे सेल्यूलर जेल (Cellular Jail) के नाम से जाना जाता था। आज भी इसे इसी नाम से जाना जाता है। इस जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने के पीछे एक वजह है। दरअसल, यहां हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी और हर कैदी को अलग-अलग ही रखा जाता था, ताकि वो एक दूसरे से बात न कर सकें। ऐसे में कैदी बिल्कुल अकेले पड़ जाते थे। अकेलापन उनके लिए सबसे भयानक होता था।

जानें सेल्यूलर जेल के बारे में (Cellular Jail Facts)

-इस जेल को अंग्रेजों ने बनवाया था, जोकि अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में है। ये द्वीप कीचड़ से भरे थे। इस जेल को अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनवाया था। यहां मच्छर, ख़तरनाक सांप, बिच्छुओं, जोंकों और अनगिनत प्रकार के ज़हरीले कीड़ों की भरमार थी।

-इस कारण अंग्रेजों के दिमाग़ में यहाँ जेल बनवाने का ख़्याल 1857 की पहली क्रांति को आ चुका था। पर फिर बाद में सेल्यूलर जेल का निर्माण 1896 में प्रारंभ हुआ और 1906 में यह बनकर तैयार हुई। इसका मुख्य भवन लाल ईंटों से बना है। ये ईंटें बर्मा से यहां लाई गईं, जो आज म्यांमार के नाम से जाना जाता है। इस भवन की 7 शाखाएं हैं और बीचोंबीच एक टावर है। इस टावर से ही सभी कैदियों पर नजर रखी जाती थी।

-ऊपर से देखने पर यह साइकल के पहिए की तरह दिखाई देता है। टावर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था, जो किसी भी तरह का संभावित खतरा होने पर बजाया जाता था।

-प्रत्येक शाखा तीन मंजिल की बनी थी। इनमें कोई शयनकक्ष नहीं था और कुल 698 कोठरियां बनी थीं। प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी, जिसमें तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान थे। एक कोठरी का कैदी दूसरी कोठरी के कैदी से कोई संपर्क नहीं रख सकता था। क़ैदी क़ैद होने के बावजूद आज़ाद थे। लेकिन फरार होने के सारे रास्ते बंद थे। हवाएं जहरीली थीं।

-जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेड़ियों से बांधा जाता था। कोल्हू से तेल पेरने का काम उनसे करवाया जाता था। हर कैदी को तीस पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता था तो उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेड़ियों से जकड़ दिया जाता था।

-काला पानी जेल में भारत से लेकर बर्मा तक के लोगों को कैद में रखा गया था। एक बार यहां 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी । लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया। एक कैदी ने तो आत्महत्या कर ली और बाकी पकड़े गए। जेल अधीक्षक वाकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था।

-यहां 1930 में भगत सिंह के सहयोगी महावीर सिंह ने अत्याचार के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। जेल कर्मचरियों ने उन्हें जबरन दूध पिलाया। दूध जैसे ही पेट के अंदर गया तो उनकी मौत हो गई। इसके बाद उनके शव में एक पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया था।

-यह जेल गहरे समुद्र से घिरी हुई है, जिसके चारों ओर कई किलोमीटर तक सिर्फ और सिर्फ समुद्र का पानी ही दिखता है। इसे पार कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं था। इस जेल की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसकी चहारदीवारी एकदम छोटा बनाया गया था, जिसे कोई भी आसानी से पार कर सकता था। लेकिन इसके बाद जेल से बाहर निकलकर भाग जाना लगभग नामुमकिन था, क्योंकि ऐसा कोशिश करने पर कैदी समुद्र के पानी में ही डूबकर मर जाते।

-कहते हैं कि इस जेल में न जाने कितने ही भारतीयों को फांसी की सजा दी गई थी। इसके अलावा कई तो दूसरी वजहों से भी मर गए थे। लेकिन इसका रिकॉर्ड कहीं मौजूद नहीं है। इसी वजह से इस जेल को भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय कहा जाता है।

-सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। भारत जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था, अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों पर कहर ढा रही थी। हजारों सेनानियों को फांसी दे दी गई, तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया। कई ऐसे भी थे जिन्हें तिल तिलकर मारा जाता था, इसके लिए अंग्रेजों के पास सेल्युलर जेल का अस्त्र था।

-कै़दियों की मानसिक प्रताड़ना के लिए जेलर कोठरियों को बंद कर चाबियां अंदर फेंक देते थे। लेकिन ताले इस तरह से बनाए गए थे कि बंदी जेल के अंदर से ताले तक न पहुंचे सकें।

-जेल के अंदर हर कोठरी में सिर्फ़ एक लकड़ी की चारपाई, एक अल्यूमीनियम की प्लेट, दो बर्तन, एक पानी पीने के लिए और एक शौच के समय इस्तेमाल के लिए और एक कंबल होता था। अक्सर बंदियों के लिए एक छोटा सा बर्तन काफी नहीं होता था और इसलिए उन्हें शौच के लिए कोठरी के एक कोने का इस्तेमाल करना पड़ता था और फिर उन्हें अपनी ही गंदगी के पास लेटना पड़ता था।

-सबसे पहले 200 विद्रोहियों को जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की सुरक्षा में यहां लाया गया। उसके बाद 733 विद्रोहियों को कराची से लाया गया। भारत और बर्मा से भी यहां सेनानियों को सजा के बतौर लाया गया था।

-सुदूर द्वीप होने की वजह से यह विद्रोहियों को सजा देने के लिए अनुकूल जगह समझी जाती थी। उन्हें सिर्फ समाज से अलग करने के लिए यहां नहीं लाया जाता था, बल्कि उनसे जेल का निर्माण, भवन निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि के काम में भी लगाया जाता था। यहां आने वाले कैदी ब्रिटिश शासकों के घरों का निर्माण भी करते थे। 19वीं शताब्दी में जब स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा, तब यहां कैदियों की संख्या भी बढ़ती गई।

-अंग्रेजों द्वारा अमानवीय अत्याचार करने के कारण 1930 में यहां कैदियों ने भूख हड़ताल कर दी थी, तब महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसमें हस्तक्षेप किया। 1937-38 में यहां से कैदियों को स्वदेश भेज दिया गया था।

-जापानी शासकों ने अंडमान पर 1942 में कब्जा किया और अंग्रेजों को वहां से मार भगाया। उस समय अंग्रेज कैदियों को सेल्युलर जेल में बंद कर दिया गया था। उस दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी वहां का दौरा किया था। 7 में से 2 शाखाओं को जापानियों ने नष्ट कर दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद 1945 में फिर अंग्रेजों ने यहां कब्जा जमाया।

-भारत को आजादी मिलने के बाद इसकी दो और शाखाओं को ध्वस्त कर दिया गया। शेष बची तीन शाखाएं और मुख्य टावर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया। 1963 में यहां गोविन्द वल्लभ पंत अस्पताल खोला गया। वर्तमान में यह 500 बिस्तरों वाला अस्पताल है और 40 डॉक्टर यहां के निवासियों की सेवा कर रहे हैं।

-अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैले इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।

Akshita Pidiha

Akshita Pidiha

Senior Content Writer

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