Halebeedu Tourist Places: हिन्दू और जैन धर्म का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल

Halebeedu Best Tourist Places: हैलेबिडु में हिन्दू और जैन धर्म के प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं। आइए जानें यहां घूमने लायक जगहों के बारे में।

Sarojini Sriharsha
Published on: 3 Nov 2024 9:20 AM GMT
Halebeedu Tourist Places: हिन्दू और जैन धर्म का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल
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Halebeedu (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Karnataka Popular Tourist Place: देश के कर्नाटक राज्य (Karnataka) के हासन जिले (Hassan) में स्थित हैलेबिडु (Halebeedu) एक शहर है, जहां हिन्दू और जैन धर्म के प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं। कन्नड़ भाषा में "हैलेबिडु" का अर्थ है, प्राचीन शिविर। इसके समीप एक विशाल जल स्त्रोत होने के कारण इसका प्राचीन नाम द्वारसमुद्र (Dwarasamudra) भी था। हैलेबिडु प्राचीन काल में कला एवं साहित्य के संरक्षक माने जाने वाले होयसल राजवंश (Hoysala Kingdom) की राजधानी हुआ करता था। यह नगरी कर्नाटक के बेंगलुरू शहर से लगभग 200 किमी दूर स्थित है। भारत में यह जगह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) में शामिल है।

इन मंदिरों में देवताओं का पूजन नहीं होता इसलिए यहां कोई खास त्यौहार नहीं मनाया जाता। खासकर यह मंदिर पूरी दुनिया में अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए मशहूर है। यहां घूमने लायक कई जगहें हैं, जिनमें प्रमुख हैं-

होयसलेश्वर मंदिर (Hoysaleshwara Temple)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भगवान शिव को समर्पित इस होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण सन् 1121 में राजा विष्णुवर्धन के एक अधिकारी केतुमल्ला सेट्टी ने होयसल राजा विष्णुवर्धन एवं उनकी रानी शांतला देवी के सम्मान में करवाया था। तारे के आकार में बने इस मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं- उत्तर एवं दक्षिण दिशा में एक एक और पूर्व दिशा में दो। इस मंदिर में भगवान शिव के दो स्वरूप होयसलेश्वर एवं शांतलेश्वर विराजमान हैं। मुख्य मंदिर होयसलेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है। इनके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं। दोनों गर्भगृह के बाहर नंदी अपने आराध्य शिव की ओर मुख किए हुए विराजमान हैं। यह मंदिर होयसल वास्तुशिल्प का एक बेहतरीन उदाहरण है।

12 नक्काशीदार परतों से एक ऊंचे प्लेटफॉर्म, पर जिसे जगती कहा जाता है, पर बने इस मंदिर के परत इंटरलॉकिंग तकनीक के माध्यम से आपस में जुड़े हैं। इन्हें जोड़ने में चूना सीमेंट या किसी अन्य तरह के पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है। इन नक्काशियों को देखकर लगता है कि इस मंदिर के निर्माण में मशीनों का प्रयोग हुआ है। लेकिन इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते।

इस मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और नागर शैली से भिन्न होयसल राजाओं की ‘बेसर शैली’ से प्रेरित मानी जाती है। इस मंदिर के अंदर पत्थरों से बने स्तंभ हैं, जिन पर गोलाकार डिजाइन बनी हुई है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर में विराजमान भगवान शिव की एक मूर्ति के मुकुट पर मात्र 1 इंच चौड़ी मानव खोपड़ियां बनी हैं। इन छोटी-छोटी खोपड़ियों के खोखले के अंदर से गुजरने वाली रोशनी आंखों के सुराख से होती हुई मुंह के अंदर जाती है। फिर कानों के रास्ते बाहर निकल आती है।

इस मंदिर के चारों ओर भित्तियों पर विभिन्न शैलियों में कुल 1248 हाथी के चित्र उकेरे गए हैं। भित्ति चित्रों में शक्ति के प्रतीक हाथी के अतिरिक्त साहस का प्रतीक सिंह, गति के प्रतीक घोड़े और सुंदर फूलों के बेल भी देखने को मिलेंगे।

केदारेश्वर मंदिर (Kedareshwar Mandir)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

तारे के आकार के बने इस मंदिर परिसर में भगवान शिव को समर्पित तीन मंदिर हैं, जो होयसलेश्वर मंदिर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। होयसल मंदिरों की तरह इस परिसर के तीनों मंदिर एक ऊंचे मंच पर बने हैं, जिन्हें जगती कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण राजा वीर बल्लाल द्वितीय और उनकी रानी अभिनवी केतला देवी द्वारा कराया गया था। यह मंदिर एक सुंदर बगीचे के भीतर स्थित है, जहां एकदम शांत वातावरण का एहसास होगा।

होयसलेश्वर मंदिर की तरह इसके दीवारों पर हाथी, सिंह, मकर, हंस इत्यादि की अनेक आकृतियां उकेरी हुई हैं। इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं, पुराणों, रामायण और महाभारत की कथाओं के कई पात्रों के चित्र भी देखने को मिलेंगे।

चेन्नाकेशव मंदिर (Chennakeshava Swami)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस मंदिर का निर्माण 1116 ई. में चोलों पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में होयसल राजा विष्णुवर्धन ने कराया था। यह मंदिर बेलुरु में यागाची नदी के तट पर स्थित है। प्राचीन काल में यह बेलुरु वेलपुरी, वेलूर और बेलापुर के नाम से भी जाना जाता था, जो कभी होयसल साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। तारे के आकार का यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।

रुद्रेश्वर मंदिर (Rudreshwar Temple)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
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होयसल काल में तीन मंदिरों से बना यह मंदिर भी एक त्रिकुटा मंदिर है जिनमें दो मंदिरों के भीतर शिवलिंग हैं और एक में वीरभद्र की मूर्ति है। इस मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए भीतर एक महाद्वार बना है।

नागेश्वर मंदिर (Nageshwar Temple)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
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रूद्रेश्वर मंदिर के नजदीक स्थित नागेश्वर मंदिर अब खंडहर रूप में तब्दील हो चुका है और यहां स्थित अनेक प्रकार के शिल्प अब संग्रहालय में रखे गए हैं।

रंगनाथ मंदिर (Rangnath Mandir)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
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भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण होयसल काल में किया गया था। कालांतर में इसका विस्तारीकरण कर भगवान विष्णु को समर्पित कर श्री रंगनाथ के रूप में किया गया। इस मंदिर के समीप कुंबलेश्वर, गुंडलेश्वर तथा वीरभद्र जैसे तीर्थस्थल स्थित हैं, जिनका संबंध होयसल काल से है।

हैलेबिडु में स्थित 3 जैन बसदियां

हैलेबिडु में कई मशहूर जैन बसदियां हैं। दरअसल, होयसल वंश के शासन-काल में जैन धर्म का भी विकास हुआ था। हैलेबिडु में जैन धर्म के तीन प्रमुख तीर्थंकरों को समर्पित तीन प्रमुख जैन बसदियां हैं, जो होयसलेश्वर मंदिर के निकट स्थित हैं।

पार्श्वनाथ बसदी (Parshwanath Basadi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
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जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित यह बसदी एक महत्वपूर्ण बसदी है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण सन् 1133 में राजा विष्णुवर्धन के राज्य के मंत्री के पुत्र बोपन्ना ने कराया था। इस बसदी की प्रतिमाएं भव्य और विस्तृत नक्काशी से अलंकृत है। इस बसदी के केन्द्रीय कक्ष के अंदर 12 स्तंभ हैं जो आईने के समान चमकदार हैं। इस बसदी के गर्भगृह के भीतर 18 फुट ऊंची श्री पार्श्वनाथ स्वामी की काले ग्रेनाइट पत्थर में बनी भव्य प्रतिमा है।

शांतिनाथ बसदी (Shantinah Basadi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
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सन् 1192 में राजा वीर बल्लाल द्वितीय के शासनकाल में निर्मित यह बसदी जैन धर्म के 16 वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ स्वामी को समर्पित है। इस तीर्थस्थल में भी स्तंभ आईने के समान अलंकृत हैं और गर्भगृह के भीतर 18 फुट ऊंची काले ग्रेनाइट पत्थर में बनी श्री शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा है।

आदिनाथ बसदी (Adinath Basadi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ स्वामी को समर्पित यह एक छोटी बसदी है, जिसका निर्माण 12वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर के भीतर श्री आदिनाथ की प्रतिमा के साथ हिंदू धर्म में ज्ञान की देवी सरस्वती भी विराजमान हैं।

कैसे पहुंचे (Halebeedu Kaise Jaye)?

हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा मैसूर है। मैसूर हवाई अड्डे से होयसलेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 150 किमी है। इसके अलावा बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा से भी यहां पहुंच सकते हैं, इधर से हैलेबिडु 229 किमी दूर है।

रेलमार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन हासन है। हासन रेलवे जंक्शन दक्षिण भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां से होयसलेश्वर मंदिर 30 किमी दूर है।

सड़क मार्ग से होयसलेश्वर मंदिर हासन होते हुए पहुंचा जा सकता है। हासन राष्ट्रीय राजमार्ग 75 पर स्थित है और देश के अन्य शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। बस या टैक्सी के द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।

घूमने का सबसे अच्छा समय (Halebeedu Ghumne Kab Jaye)

यहां घूमने का सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से फरवरी तक के महीने में रहता है।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Shreya

Shreya

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