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Kashmir Ki Pashmina Shawls: कश्‍मीर की इस कला की दुनिया है दीवानी, विदेशों में भी रहती है तगड़ी डिमांड, जिसे भारत सरकार ने दिया है जीआई टैग

Kashmiri Pashmina Shawls History: कानी आर्ट कश्मीर की पारंपरिक और अद्वितीय शिल्पकला का एक अनमोल उदाहरण है।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 22 Feb 2025 11:35 AM IST
Kashmiri Pashmina Shawls History
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Kashmiri Pashmina Shawls History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

KashmirI Pashmina Shawl History: अपनी खूबसूरत बारीक बुनाई, दुर्लभ और पारंपरिक डिजाइन के चलते पश्मीना शॉल की डिमांड कश्मीर से निकल पूरी दुनिया में बढ़ चढ़ की जाती है। ’शॉल्स’ के राजा के नाम से मशहूर ये कीमती शॉल न केवल अपनी बेमिसाल कोमलता और गर्माहट के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी निर्माण प्रक्रिया भी अत्यंत जटिल और परंपरागत कला से भरपूर होती है। इन्हें कानी शॉल (Kani Shawl) भी कहते हैं। असल में कानी आर्ट कश्मीर की एक प्राचीन और दुर्लभ बुनाई कला है, जिसका उपयोग विशेष रूप से कानी पश्मीना शॉल बनाने में किया जाता है।

यह कला अत्यधिक जटिल और श्रमसाध्य होती है, जिसमें लकड़ी के छोटे-छोटे तीलों (कानी) की मदद से डिज़ाइन बुना जाता है। जबकि पश्मीना’ शब्द फ़ारसी भाषा के ’पश्म’ से आया है, जिसका अर्थ होता है ‘ऊन’। यह विशेष प्रकार की ऊन हिमालयी पहाड़ों में रहने वाली चंगथांगी बकरियों (pashmina gots) से प्राप्त होती है। इसलिए इसका नाम पश्मीना पड़ा। जानें इस अनमोल धरोहर की विशेषता।

कानी आर्टः कश्मीर की बेजोड़ हस्तकला

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कानी आर्ट कश्मीर की पारंपरिक और अद्वितीय शिल्पकला का एक अनमोल उदाहरण है। यह न केवल शॉल बनाने की एक तकनीक है, बल्कि इसमें इतिहास, संस्कृति और कारीगरों की कड़ी मेहनत झलकती है। यही कारण है कि कानी पश्मीना शॉल (Pashmina Kani Shawl) को शान, विलासिता और कश्मीर की हस्तशिल्प विरासत का प्रतीक माना जाता है। कानी आर्ट से जुड़े रोचक तथ्य-

नाम की उत्पत्ति

’कानी’ शब्द कश्मीरी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ’छड़ी’। इस कला में लकड़ी की पतली तीलियों का उपयोग किया जाता है, जो बुनाई के दौरान रंगीन ऊन को जोड़ने में मदद करती हैं।

बुनाई नहीं, बल्कि बुनाई में चित्रकारी

कानी शॉल को हाथ से बुना जाता है, लेकिन इसमें कढ़ाई नहीं की जाती। बल्कि, डिज़ाइन को पहले से तयशुदा नक़्शा (पैटर्न चार्ट) के अनुसार, बुनाई में ही तैयार किया जाता है, जिससे शॉल पर सुंदर पारंपरिक पैटर्न उभरते हैं।

प्रक्रिया में लगते हैं कई महीने या साल

चूंकि कानी शॉल की पूरी डिजाइन बुनाई में ही बनाई जाती है, इसलिए एक शॉल को पूरा करने में 6 महीने से लेकर 2 साल तक लग सकते हैं, इस पर निर्भर करता है कि डिज़ाइन कितना जटिल है।

मुगलकाल से लोकप्रिय

कानी शॉल का इतिहास मुगलकाल तक जाता है। मुगल सम्राट जहांगीर ने अपनी पत्नी नूरजहां के लिए खास तौर पर कानी शॉल तैयार करवाया था।

कैसे करें असली कानी शॉल की पहचान (Tips To Identify Pure Pashmina Shawl)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

असली कानी शॉल हाथ से बुना होता है और इसमें कढ़ाई नहीं, बल्कि बुनाई में ही डिज़ाइन बना होता है। असली कानी शॉल हल्का, मुलायम और गर्म होता है। इसकी बुनाई इतनी महीन होती है कि इसे एक अंगूठी के अंदर से आसानी से निकाला जा सकता है। यही इसकी असली पहचान है।

दुनिया की सबसे महंगी शॉल (World's Most Expensive Shawl)

कानी शॉल दुर्लभ और मेहनत से बनने वाली कला है, इसलिए इसकी कीमत बाजार और क्वालिटी के मुताबिक हजारों से लेकर लाखों रुपये तक हो सकती है।

शान और शौक का प्रतीक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राजाओं, रानियों और धनाढ्य वर्ग के लोगों के बीच पश्मीना शॉल पहनना हमेशा से शान और खास शौका प्रतीक रहा है। आज भी यह फैशन और संस्कृति की अनमोल धरोहर में शामिल है।

नहीं मिलती एक जैसी शॉल

हाँ, यह सच है कि बिल्कुल सेम डिज़ाइन वाली कानी शॉल दोबारा बनाना लगभग असंभव होता है। इसके पीछे कई कारण हैं। जिसमें से एक है हाथ से बुनाई की प्रक्रिया। कानी शॉल पूरी तरह हस्तनिर्मित होती है। इसमें लकड़ी की कानी (छोटी तीलियां) और अलग-अलग रंग के धागों की मदद से पैटर्न बुना जाता है। चूंकि यह मशीन से नहीं बल्कि कारीगरों द्वारा हाथ से बनाई जाती है, इसलिए हर शॉल में हल्का अंतर आना स्वाभाविक है।

डिज़ाइन पैटर्न की जटिलता है इसका कारण

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कानी शॉल का डिज़ाइन नक़्शा के अनुसार तैयार किया जाता है, जिसमें हजारों छोटे-छोटे रंगीन धागे इस्तेमाल किए जाते हैं। यह डिज़ाइन इतना जटिल होता है कि इसे बिल्कुल सटीक रूप से दोहराना मुश्किल होता है। तभी इसे सब्र का शॉल भी कहते हैं।

इसमें इस्तेमाल होने वाली ऊन का रंग प्राकृतिक होता है। हर बार ऊन की बनावट और रंगों में थोड़ा अंतर हो सकता है, जिससे हर शॉल का लुक थोड़ा अलग बन जाता है। इसके अलावा हर कारीगर की बुनाई की व्यक्तिगत शैली होती है। भले ही डिज़ाइन एक जैसा हो, लेकिन बुनाई की तकनीक और पैटर्न में सूक्ष्म बदलाव आ सकते हैं, जिससे हर शॉल खास और अनूठी होती है।

कानी शॉल की यह खासियत है कि ये कभी दो शॉल एक जैसे नहीं दिख सकते। इसलिए, अगर आपके पास एक कानी शॉल है, तो वह दुनिया में एकमात्र (One of a Kind) होगी। ठीक वैसी दूसरी कोई और नहीं हो सकती। हालांकि आधुनिकता के जमाने में जहां हर काम कंप्‍यूटराइज्‍ड और मशीनों से होने लगा है, वहां उंगलियों और आंखों से की जाने वाली इस कारीगरी को पहचानने और महत्‍व देने वालों की कमी हो गई है। मगर कश्मीर के कुछ आर्टिजंस आज भी इस कला को जिंदा रखने का काम कर रहे हैं।

आज भी कश्‍मीर के इस छोटे से कस्बे में ऐसे कुछ परिवार रह रहे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को आगे बढ़ाते जा रहे हैं। भले ही अब डिजाइंस के लिए कंप्‍यूटर की मदद ली जा रही है, लेकिन इस कला के प्रचीन महत्‍व को कायम रखने के लिए अब भी इसे पारंपरिक तरीके से कानी सिलाइयों से ही बनाया जाता है।

अकबर भी थे इस कला के मुरीद

कानी शॉल का जिक्र मुगल काल में लिखी गई किताबों “इकबालनामा ए जहाँगीरी“ और “आइन-ए-अकबरी“ में मिलता है। जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में इस शॉल की लोकप्रियता पुराने समय से चली आ रही है। अकबर ने तो इस शॉल को ’परम-नरम’ का नाम दिया था। उस समय, यह शॉल रॉयल्टी और विलासिता का प्रतीक मानी जाती थी। इसे सिर्फ उच्च वर्ग के लोग ही पहन सकते थे। इसकी जो डिजाइंस हैं, वह भी मुगल काल की कला और संस्‍कृति का आइना है।

मुगल काल के बाद भी, कानी शॉल ने अपनी लोकप्रियता नहीं खोई। ब्रिटिश काल में भी इसे उच्‍च वर्ग के लोगों द्वारा बहुत ज्‍यादा पसंद किया जाता था। मगर धीरे-धीरे इस शॉल में किया जाने वाला बारीका काम और लगने वाला समय कारिगरों को उबाने लगा। वहीं मेहनत का सही मूल्‍य न मिलने के कारण इसे बनाने वाले कारिगरों की संख्‍या में कमी होने लगी। हालांकि अब भारत सरकार द्वारा इसे जीआई टैग प्रदान कर इसकी पहुंच और ऐतिहासिक कला को विस्तार दिया है। कश्मीर की कानी शॉल को वर्ष 2008 में जीआई टैग मिला।

यह टैग भारत सरकार के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत दिया गया। यह टैग कश्मीर पश्मीना कारीगरों और व्यापारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि इससे कृत्रिम और मशीन से बने नकली कानी शॉल पर रोक लगाने में मदद मिली। कानी शॉल सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि एक कलात्मक विरासत है।



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