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Lucknow Khatu Shyam Mandir: शहर का सबसे खुबसूरत मंदिर जहां, विराजते है खाटू महाराज, यहां देखिए डिटेल्स
Lucknow Khatu Shyam Mandir: प्रदेश की राजधानी में आपको चंद्रिका माता के दर्शन के अलावा खाटू श्याम के भी दर्शन मिल सकते है। चलिए हम आपको लखनऊ में खाटू महाराज के दिव्य दर्शन करने का पता बताते है...
Khatu Shyam Mandir in Lucknow: हारे का सहारा जय श्री खाटू श्याम हमारा, बाबा खाटू की मान्यता कलयुग में बड़े स्तर पर होती है। सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच खाटू श्याम बाबा किसी अलग से पहचान के मोहताज नहीं हैं। वैसे तो बाबा का सबसे बड़ा और विश्व प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान राज्य में है, लेकिन आप लखनऊ में भी बाबा के दर्शन कर सकते है। कैसे चलिए हम बताते है..
लखनऊ में बाबा खाटू श्याम महाराज
दरअसल खाटू बाबा का दरबार अपने लखनऊ शहर में भी है, जहां बाबा की सुन्दर मूरत विराजमान है, जिसे भक्तों द्वारा श्रद्धा भाव से पूजा जाता है। बाबा का मंदिर लखनऊ में भी भव्य है, यहां आप बड़े समारोह का आयोजन जैसे कीर्तन, पूजन, भंडारा आदि भी कर सकते है। खाटू श्याम बाबा मंदिर एक शांत और पवित्र स्थल है, जहां भगवान श्याम की दिव्य उपस्थिति हृदय को भक्ति और शांति से भर देती है। यह वास्तव में एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला अनुभव हो सकता है, जो आपको मंत्रमुग्ध और आध्यात्मिक रूप से तरोताजा कर देने वाला होगा।
मंदिर का नाम: श्री खाटू श्याम मंदिर(Shri Khatu Shyam Mandir)
लोकेशन: निशात गंज, 509केए/513/23, बीरबल साहनी मार्ग, काला कांकर कॉलोनी, पुराना हैदराबाद, हसनगंज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
समय: सुबह 7 बजे से रात के 9 बजे तक
कहा हैं मंदिर?
भगवान 'खाटू श्याम' के अनुयायियों के लिए निश्चित रूप से एक अच्छी और पवित्र जगह है। लखनऊ में गोमती नदी के किनारे स्थित सबसे अच्छे मंदिरों में से एक है। किसी भी हिंदू पारंपरिक समारोह को आयोजित करने के लिए विशाल खुली जगह के साथ सुंदर जगह है। अच्छा प्रबंधन किया गया है। हर महीने जागरण आयोजित किए जाते हैं। सभी देवी-देवताओं के त्योहार यहाँ धूमधाम से और बड़े पैमाने पर यहां आयोजित किए जाते हैं।
कौन है खाटू श्याम(Khatu Shyam Mandir)
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से है। ये पांडुपुत्र भीम के पोते थे। ऐसा कहा जाता है कि खाटू श्याम की शक्तियों और क्षमता से खुश होकर श्री कृष्ण ने इन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजने का वरदान दे डाला था।वनवास के दौरान, जब पांडव अपनी जान बचाते हुए इधर-उधर घूम रहे थे, तब भीम का सामना हिडिम्बा से हुआ। हिडिम्बा ने भीम से एक पुत्र को जन्म दिया जिसे घटोखा कहा जाता था। घटोखा से पुत्र हुआ बर्बरीक। इन दोनों को अपनी वीरता और शक्तियों के लिए जाना जाता था। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णेय लिया था। श्री कृष्ण ने जब उनसे पूछा कि वो युद्ध में किसकी तरफ हैं, तब उन्होंने कहा था कि जो पक्ष हारेगा वो उसकी तरफ से लड़ेंगे। ऐसे में श्री कृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे और उन्हें डर था कि ये कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए। ऐसे में कृष्ण जी ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की। दान में उन्होंने उनसे शीश मांग लिया। दान में बर्बरीक ने उनको शीश दे दिया, लेकिन आखिर तक उन्होंने अपनी आंखों से युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की।
श्री कृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि जीत का श्रेय किसको जाता है, इसमें बर्बरीक कहते हैं कि श्री कृष्ण की वजह से उन्हें जीत हासिल हुई है। श्री कृष्ण इस बलिदान से काफी खुश हुए और उन्हें कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया।