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Kohinoor Hire Ka Itihas: कोहिनूर का इतिहास, भारत की ऐतिहासिक धरोहर कैसे बना ब्रिटेन के शाही घराने का ताज

Kohinoor Diamond History in Hindi: कोहिनूर अपनी बेजोड़ चमक और अपार मूल्य के कारण सत्ता और समृद्धि का प्रतीक बना, जिसे इतिहास का सबसे बेशकीमती रत्न माना जाता है।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 10 Feb 2025 6:10 PM IST
Duniya Ka Sabse Mehnga Heera Kohinoor Ka Itihas
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Duniya Ka Sabse Mehnga Heera Kohinoor Ka Itihas (Photo Credit - Social Media)

Duniya Ka Sabse Mehnga Heera Kohinoor Ka Itihas: कोहिनूर, जिसका अर्थ 'रोशनी का पर्वत' (कूह-ए-नूर) है, दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और बहुमूल्य हीरों में से एक है। इसकी अद्वितीय चमक और बेशकीमती होने के साथ-साथ इसका इतिहास भी रोमांचक, रहस्यमय और सत्ता संघर्ष से भरा हुआ है। यह हीरा सदियों तक भारत की ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा रहा, विभिन्न राजवंशों और सम्राटों के मुकुट की शोभा बढ़ाता (रहा, और ) अंततः ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकार में चला गया।


इस लेख में हम इस अनमोल हीरे की भारत से ब्रिटेन तक की ऐतिहासिक यात्रा, इससे जुड़े घटनाक्रमों और सत्ता संघर्षों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

कोहिनूर हीरे का रहस्यमय उद्गम और हिंदू कथाओं में उल्लेख


कोहिनूर हीरे का उद्गम स्पष्ट रूप से नहीं जाना जा सकता है। दक्षिण भारत में इस हीरे से जुड़ी कई कहानियाँ प्रचलित हैं, कुछ स्रोतों के अनुसार, कोहिनूर हीरा लगभग 5000 वर्ष पहले पाया गया था और तब यह स्यमंतक मणि के नाम से प्रचलित था, जिसका उल्लेख प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी मिलता है। हिंदू कथाओं के अनुसार, जामवंत ने यह मणि भगवान श्रीकृष्ण को दिया था, जिनकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, यह हीरा लगभग 3200 ई.पू नदी के तल में पाया गया था।

कोहिनूर हीरे का ऐतिहासिक उद्गम और प्रारंभिक आकार

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, कोहिनूर हीरा गोलकुंडा की प्रसिद्ध खदान से निकला था, गोलकुंडा क्षेत्र, जो वर्तमान में तेलंगाना राज्य में स्थित है, अपने बेशकीमती रत्नों के लिए प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध रहा है। सन 1730 तक, यह क्षेत्र दुनिया का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र था| दक्षिण भारतीय कथाओं के अनुसार, यह संभावना व्यक्त की जाती है कि कोहिनूर हीरा कोल्लर खदान से निकला था, जो वर्तमान में गुंटूर जिले में स्थित है। यह खदान भी गोलकुंडा क्षेत्र का हिस्सा मानी जाती है|

इस हीरे का प्रारंभिक वजन 186 कैरेट था, लेकिन इसे कई बार तराशने के बाद इसका वर्तमान आकार 105.6 कैरेट रह गया, जिसका कुल वजन लगभग 21.12 ग्राम है। इसके बावजूद, यह अब भी दुनिया के सबसे बड़े तराशे हुए हीरों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि यह हीरा जमीन से मात्र 13 फीट की गहराई पर पाया गया था।

कोहिनूर का प्रारंभिक स्वामित्व: काकतिय वंश और भद्रकाली मंदिर


गोलकुंडा की खदान से निकलने के बाद, कोहिनूर हीरा काकतिय राजवंश के अधिकार में था। क्योकि उस वक्त गोलकोंडा क्षेत्र पर काकतिय राजवंश का शासन था। माना जाता है कि इस वंश के शासकों ने इसे अपनी कुलदेवी भद्रकाली की मूर्ति की बाईं आंख में स्थापित किया था।

कोहिनूर की ऐतिहासिक पृष्टिभूमि


14वीं शताब्दी में, दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और कई समृद्ध राज्यों को लूटकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। 1310 ईस्वी के आसपास, उसने काकतिय वंश की राजधानी वारंगल पर हमला किया। काकतिय वंश उस समय दक्षिण भारत की एक शक्तिशाली शक्ति था और उनकी समृद्धि के कारण वे आक्रमणकारियों के निशाने पर थे।

अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने भारी विनाश किया और अंततः काकतिय वंश को पराजित कर दिया। इसी लूटपाट के दौरान, कोहिनूर हीरा भी खिलजी की सेना के हाथ लगा। कहा जाता है कि यह हीरा वारंगल के भद्रकाली मंदिर में देवी की मूर्ति की बाईं आंख में जड़ा हुआ था, जिसे जबरन निकालकर दिल्ली ले जाया गया।

खिलजी वंश के पतन के बाद, कोहिनूर हीरा तुगलक वंश के फिरोज शाह तुगलक के पास आया। फिरोज शाह ने इसे अपने खजाने में शामिल किया | इसके बाद, कोहिनूर हीरा मालवा के राजा होशंग शाह के पास गया। होशंग शाह ने ग्वालियर पर आक्रमण किया, जहां उस समय राजा डोंगेंद्र सिंह का शासन था। इस युद्ध में राजा डोंगेंद्र सिंह की जीत हुई और कोहिनूर उनके पास आ गया। बाबर की आत्मकथा बाबरनामा में इस घटना का उल्लेख किया गया है, जिसमें डोंगेंद्र सिंह की जीत और कोहिनूर के उसके पास आने का विवरण है। डोंगेंद्र सिंह के बाद, कोहिनूर ग्वालियर के अंतिम शासक विक्रमादित्य के पास गया। उस समय तक दिल्ली सल्तनत इब्राहिम लोदी के अधीन आ चुकी थी। इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर को हराया और कोहिनूर को अपने कब्जे में लिया।15वीं शताब्दी के अंत में, जब लोदी वंश कमजोर पड़ने लगा, तो कई अफगान और राजपूत शासकों ने सत्ता के लिए संघर्ष किया। इब्राहिम लोदी, जो लोदी वंश का अंतिम सुल्तान था, के पास यह हीरा था।

मुग़लों के अधीन कोहिनूर

1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में जब मुगल बादशाह बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया, तो मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई। इसी युद्ध के बाद, कोहिनूर हीरा मुगल खजाने में शामिल हो गया। इसके बाद यह हिरा उसके पुत्र हुमायूं के पास रहा।

पहली बार भारत से बाहर गया कोहिनूर


हुमायूं, जो मुग़ल साम्राज्य के शासक थे, उनके शासन में कई संघर्ष थे। 1540 में शेर शाह सूरी ने हुमायूं को पराजित किया और उसे भारत से बाहर भागने पर मजबूर कर दिया। हुमायु कोहिनूर समेत अपनी सारी संपत्ति लेकर ईरान भाग गया ।इस दौरान हुमायूं को ईरान के शाह तहमास्प ने मदत की और दरबार में शरण भी दी । शाह तहमास्प ने हुमायूं की सहायता करने का वादा किया और उसे अपनी सैन्य ताकत के साथ भारत लौटने का अवसर दिया। बदले में, हुमायूं ने कोहिनूर हीरा शाह तहमास्प को भेंट दिया। और इस तरह कोहिनूर पहली बार भारत से बाहर ईरान पंहुचा ।जिसके बाद करीब 3 साल तक हिरा ईरान के शाह तहमास्प के पास रहा ।

कोहिनूर की भारत वापसी


भारत में जहाँ हर शासक कोहिनूर हीरे को हासिल करने के लिए लालायित थे, वहीं ईरान के राजा तहमास्प को इस बेशकीमती हीरे में खास दिलचस्पी नहीं थी। तहमास्प ने इस हीरे को अपने अच्छे दोस्त और अहमदनगर के राजा निजाम शाह को उपहार के रूप में भेंट दिया। यह घटना तब हुई जब ईरान में सत्ता संघर्ष की स्थिति थी, और तहमास्प ने भारत के एक शक्तिशाली शासक को खुश करने के लिए कोहिनूर हीरे को निजाम शाह को सौंपा। इस प्रकार, कोहिनूर हीरा भारत में वापस आ गया, और यह अहमदनगर के सुलतान निजाम शाह के खजाने का हिस्सा बन गया।

कुछ साल निजाम की शान बढ़ाने के बाद कोहिनूर गोलकोंडा के राजा कुतुबशाह के पास आ गया।1656 में यह हिरा कुतुबशाह के प्रधानमंत्री मीर जुमला के हाथ लग गया ।मीर जुमला ने इस बेश कीमती हिरे का इस्तेमाल शाहजहां के करीब आने के लिए किया।

कोहिनूर हीरा प्राप्त करने के बाद, शाहजहां ने इसे अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाने का निर्णय लिया। यह सिंहासन बेहद भव्य और अद्वितीय था, जिसमें कोहिनूर को एक प्रमुख रत्न के रूप में शामिल किया गया। हालांकि, शाहजहां ज्यादा समय तक इस सिंहासन पर नहीं बैठ पाए। उनके पुत्र औरंगज़ेब ने सत्ता की लालच में अपने पिता को कैद करके आगरा के किले में बंद कर दिया। इसके साथ ही, उसने शाहजहां से सत्ता और कोहिनूर हीरा दोनों को छीन लिया।

मुग़लों की सत्ता कमजोर हो गयी और यह हिरा इसी वंश के राजा मोहम्मद शाह रंगीला जिन्हे बहादुर शाह रंगीला के नाम से भी जाना जाता है के पास पंहुचा चुकी। इस दौरान मुगलों की सत्ता कमजोर हो चुकी थी इसीका फायदा उठाते हुए ईरानी शासक नादिर शाह दिल्ली पर 1739 में आक्रमण किया उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया।

कैसे मिला कोहिनूर नाम


कोहिनूर हीरा प्राप्त करने के बाद, नादिर शाह ने इस हीरे को देखकर अचानक कहा, ‘कोह-इ-नूर’ (जिसका अर्थ है "रोशनी का पर्वत"), और यहीं से इस हीरे को अपना वर्तमान नाम मिला। 1739 से पहले, इस हीरे को "कोह-इ-नूर" के नाम से नहीं जाना जाता था, और न ही इसका कोई साक्ष्य उपलब्ध है।

ईरान से अफगानिस्तान और अफगानिस्तान से पाकिस्तान भ्रमण


1747 में, नादिर शाह की हत्या के बाद, कोहिनूर हीरा अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के पास पहुंच गया। अहमद शाह अब्दाली के बाद यह हिरा 1830 में उसी वंश के राजा शूजा शाह के पास पंहुचा जो अफगानिस्तान का तत्कालीन निर्वासन शासक था। लेकिन एक युद्ध में हार के बाद शूजा शाह को अफगानिस्तान से बचकर वर्त्तमान पाकिस्तान के लाहौर शहर (उस समय पाकिस्तान भारत का हिस्सा था) भागना पड़ा ।जहा महाराजा रंजीत सिंह ने उसे शरण दी। तथा अफगानिस्तान में शाह शुजा को पुनः स्थापित करने के लिए हस्तक्षेप किया और ईस्ट इंडिया कंपनी की मदत से अपनी टुकड़िया अफगानिस्तान भेजी । जिसके बाद शूजा शाह यह हिरा महाराजा रंजीत सिंह को भेट किया।और इस तरह यह हिरा पहली बार पाकिस्तान पंहुचा ।

अंग्रेजो के कब्जे में कोहिनूर

सन 1849 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया, जो उस समय महाराजा रणजीत सिंह के अधीन था। यह विजय सिखों और अंग्रेजों के बीच हुए युद्धों के परिणामस्वरूप हुई, खासकर दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध के बाद, जिसमें सिखों की पराजय हुई। इस युद्ध ने सिख साम्राज्य को पूरी तरह समाप्त कर दिया और पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना दिया।


अंग्रेजों के हाथों पंजाब की सत्ता का हस्तांतरण केवल भूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके साथ ही उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह और उनके साम्राज्य की अनमोल धरोहरों में से एक, कोहिनूर हीरा, भी अपने कब्जे में लिया। कोहिनूर हीरा, जो पहले शाह शूजा से महाराजा रणजीत सिंह के पास आया था, अब अंग्रेजों की संपत्ति बन गया।

ब्रिटिश शाही घराने में भारत की ऐतिहासिक धरोहर कोहिनूर का प्रवेश


1849 में लाहौर पर ब्रिटिश ध्वज फहराए जाने के बाद, कोहिनूर हीरा ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में आ गया। और अंग्रेजों ने लाहौर संधि के तहत यह हीरा ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को सौंपने का निर्णय लिया। जिसके बाद कोहिनूर हीरे के कटाव में 1852 में कुछ बदलाव किए गए, जिससे इसका रूप और भी आकर्षक और चमकदार हो गया। विक्टोरिया के पति, प्रिंस अल्बर्ट की उपस्थिति में इसे पुनः तराशा गया, जिसके परिणामस्वरूप इसका वजन 186 1/6 कैरेट से घटकर 105.602 कैरेट हो गया।

इसके बाद, कोहिनूर हीरे को महाराजा की पत्नी के मुकुट का मुख्य रत्न बना दिया गया। महारानी अलेक्जेंड्रिया ने इसे पहनने वाली पहली महारानी के रूप में पहचाना गया। इसके बाद महारानी मैरी ने भी इसका उपयोग किया। 1936 में, इसे महारानी एलिज़ाबेथ के मुकुट की शोभा बढ़ाने के लिए शामिल किया गया और 2002 में, इसे उनके ताबूत पर सजाया गया।

कोहिनूर से जुड़ी मान्यताएँ और रहस्य

कोहिनूर को लेकर कई तरह की किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह हीरा पुरुष स्वामियों के लिए दुर्भाग्य और मृत्यु का कारण बना, जबकि महिलाओं के लिए यह सौभाग्य का प्रतीक साबित हुआ। यही कारण है कि ब्रिटिश शाही परिवार में इसे केवल महिलाओं द्वारा ही धारण किया जाता है।


एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस हीरे का स्वामी संपूर्ण विश्व पर शासन करने की शक्ति प्राप्त करता था। यह भी कहा जाता है कि सन् 1658 में आनंद बाबू नामक व्यक्ति ने इस हीरे को चख लिया था, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि, इस घटना की ऐतिहासिक पुष्टि नहीं हो सकी है।

कोहिनूर को लेकर बाबरनामा में उल्लेख और नादिर शाह की रानी का कथन

कोहिनूर हीरे का पहला प्रमाणित उल्लेख 1526 में मिलता है, जब बाबर ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "बाबरनामा" में इसका जिक्र किया। बाबर ने लिखा था कि यह हीरा पहले 1294 में मालवा के एक अज्ञात राजा का था। बाबर ने इस हीरे के मूल्य का आकलन करते हुए कहा था कि यह इतना महंगा था कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भरने के लिए पर्याप्त हो सकता था।

कोहिनूर के मूल्य का एक दिलचस्प वर्णन नादिर शाह की रानी द्वारा किया गया था। उन्होंने कहा था कि अगर कोई शक्तिशाली व्यक्ति चारों दिशाओं और ऊपर की ओर पांच पत्थर पूरी ताकत से फेंके, तो उन पत्थरों के बीच का खाली स्थान यदि सिर्फ सोने और रत्नों से भरा जाए, तो भी उसकी कीमत कोहिनूर के बराबर नहीं हो सकती। इस कथन से इस हीरे की अनमोलता और अद्वितीयता का अहसास होता है।

दावों और विवादों का इतिहास

कोहिनूर हीरे को लेकर कई देशों ने दावा किया है। भारत ही नहीं इस हीरे पर पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान और तालिबान भी अपना दावा कर रहे हैं भारत का दावा है कि यह हीरा भारतीय सम्राटों के खजाने का हिस्सा था, जबकि पाकिस्तान इसे अपनी धरोहर मानता है, क्योंकि यह पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के पास था। ईरान भी इसका दावा करता है, क्योंकि नादिर शाह ने 1739 में इसे भारत से लेकर फारस लिया था। ब्रिटेन ने इसे 1849 में पंजाब के महाराजा दलीप सिंह से प्राप्त किया और अब यह ब्रिटिश खजाने का हिस्सा है।

कोहिनूर की वापसी पर भारत की कोशिशें और ब्रिटेन का रुख


कोहिनूर हीरा को भारत वापस लाने की कोशिशें अभी भी जारी हैं। भारत की आज़ादी के तुरंत बाद, कई बार भारत सरकार ने इस हीरे पर अपना मालिकाना हक जताया है। साल 2000 में, भारतीय संसद ने कोहिनूर हीरे को भारत वापस लाने के लिए एक बार फिर प्रयास किया। हालांकि, इस पर ब्रिटिश अधिकारियों का कहना था कि कोहिनूर पर कई देशों का दावा है, जिससे इसके असली मालिक की पहचान करना संभव नहीं है। इसी कारण ब्रिटेन ने इसे अपने पास बनाए रखने का निर्णय लिया।

ब्रिटेन का यह भी दावा है कि उसने कोहिनूर को कानूनी रूप से हासिल किया है। ब्रिटिश सरकार लाहौर संधि का हवाला देती है, जिसमें यह हीरा अंग्रेजों को सौंपे जाने का उल्लेख मिलता है।



Shivani Jawanjal

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Senior Content Writer

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