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Kolar Gold Fields History: कभी सोने की खदान रहा KGF अब बन चुका है खंडहर, जानें यहां का इतिहास

Kolar Gold Fields History: केजीएफ एक ऐसी फिल्म है जिसमें दर्शकों के बीच खास पहचान हासिल की है। फिल्म की कहानी आप सभी को पता है लेकिन आज हम आपको केजीएफ की असली कहानी बताते हैं।

Richa Vishwadeepak Tiwari
Published on: 15 May 2024 6:30 PM IST (Updated on: 15 May 2024 6:30 PM IST)
Kolar Gold Fields History
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Kolar Gold Fields History (Photos - Social Media)

Kolar Gold Fields History : साउथ सुपरस्टार यश और संजय दत्त की फिल्म केजीएफ चैप्टर 2 जल्द ही दर्शकों के लिए पेश की जाने वाली है। ऐसी फिल्म है जिसमें केजीएफ और रॉकी भाई के उसे पर राज की कहानी को दिखाया जाने वाला है। फिल्म के पहले हिस्से को बहुत पसंद किया गया था और अब दूसरे हिस्से में रॉकी की टक्कर अधीरा से होगी जो अपना केजीएफ वापस लेने के लिए आ रहा है। साल 2018 में फिल्म का पहला हिस्सा रिलीज हुआ था और तभी से इसके सीक्वल का इंतजार किया जा रहा है। फिल्म की कहानी से तो आप सभी वाकिफ है लेकिन चलिए आज हम आपको केजीएफ की असली कहानी से रूबरू करवाते हैं।

क्या है केजीएफ का इतिहास

केजीएफ का पूरा नाम कोलार गोल्ड फील्ड है जो कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में मौजूद है। बेंगलुरु के पूर्व में मौजूद बेंगलुरु चेन्नई एक्सप्रेस वे से 100 किलोमीटर की दूरी पर केजीएफ टाउनशिप है जिसका इतिहास बहुत ही पुराना और दिलचस्प रहा है। जानकारी के मुताबिक 1871 में ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्स गेराल्ड लेवेली ने 1804 में एशियाई जनरल में छपी चार बनने का आर्टिकल पड़ा था उसमें कोलार में पाए जाने वाले सोने की जानकारी दी गई थी। इसे देखने के बाद कोलार में लेवेली की दिलचस्पी बढ़ी और ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वारेन का एक आर्टिकल भी सामने आया जिसके अनुसार मिली जानकारी के मुताबिक 1799 में श्री रंग पटनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और उसके आसपास के इलाके में अपना कब्जा जमा लिया था। लेकिन कुछ समय बाद अंग्रेजों ने जमीन मैसूर राज्य को सौंप थी हालांकि कोलार की जमीन को सर्वे करने के लिए उन्होंने अपने पास रख लिया था।

ऐसा बताया जाता है कि कर साम्राज्य में लोग जमीन को हाथ से खोदकर ही सोना निकालते थे। वारेन सोने के बारे में जानकारी देने वाले कोई नाम देने की घोषणा की थी। जब यह घोषणा की गई उसके कुछ दिन बाद बैलगाड़ी में पहुंचे कुछ गांव वालों ने कोलार इलाके की मिट्टी वारेन को दिखाई। जब गांव वालों ने मिट्टी को धोया तो उसमें सोने के अंश पाए गए। जब इस बारे में पड़ताल की गई तो पता चला की कॉलर के लोगों के हाथ से खुद कर सोना निकालने की वजह से 56 किलो मिट्टी से सिर्फ जरा सा सोना निकल पाता है। ऐसे नहीं पता कि आ गया कि अगर तकनीक के मदद से काम किया जाता है तो ज्यादा सोना निकाला जा सकता है।

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यहां सबसे पहले आई बिजली

1804 से 1860 के बीच इस इलाके में काफी सारे रिसर्च की गई लेकिन अंग्रेजी सरकार कुछ खास नहीं निकल सकी। रिसर्च के दौरान कई लोगों की जान भी चली गई थी जिसकी वजह से खुदाई पर रोक लगा दी गई। लेवेली ने जब वारेन के रिसर्च के बारे में पढ़ा तो उसके दिलचस्पी जागी और वह बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरु से कोलार की 100 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचा। जहां पर 2 साल तक रिसर्च करने के बाद 1873 में मैसूर के महाराज से उस जगह खुदाई करने की इजाजत मांगी।

उसने यहां पर 20 साल तक खुदाई करने का लाइसेंस लिया था और उसके बाद 1875 में वहां पर काम की शुरुआत हुई। पहले कुछ सालों तक ज्यादातर समय पैसा जुटाना और लोगों को कम करने के लिए तैयार करने में निकल गया और काफी मुश्किलों के बाद गोल्ड फील्ड यानी कि केजीएफ से सोना निकालने का काम शुरू हुआ। यहां से सोना निकालने से पहले खान में रोशनी का इंतजाम करना एक बड़ा टारगेट था। यहां पर रोशनी का इंतजाम मसाले और मिट्टी के तेल से जलने वाली लालटेन से होता था लेकिन यह काफी नहीं था इसलिए यहां पर बिजली का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया और इस तरह से केजीएफ बिजली पानी वाला पहला शहर बन गया।

इस शहर में बिजली पहुंचाने के लिए 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया। जापान के बाद यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है। यहां से जब बिजली केजीएफ में पहुंची तो सोने की खुदाई बढ़ा दी गई और तेजी से खुदाई करने के लिए मशीनों को कम पर लगाया गया। इन सब का नतीजा यह हुआ की 1902 तक केजीएफ भारत का 95 फ़ीसदी सोना निकालने लगा। 1905 में सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया के छठे स्थान पर पहुंच गया था।

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कहा जाता है छोटा इंग्लैंड

केजीएफ में सोना मिलने के बाद वहां की दशा बदल गई। ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और इंजीनियर वहां पर अपना घर बनाने लगे और लोगों को माहौल बहुत अच्छा लगने लगा। यह जगह ठंडी थी और जिस तरह से ब्रिटिश अंदाज में घरों का निर्माण हुआ है उसे देखकर ऐसा लगता था कि यह इंग्लैंड है। उसे समय केजीएफ को छोटा इंग्लैंड कहा जाता था। लोग वहां पर घूमने भी जाने लगे थे और आसपास के राज्यों के मजदूर यहां काम करने भी आते थे।

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भारत के हाथ में हुआ ठप्प

देश को जब आजादी मिली तो यह जगह भारत सरकार के कब्जे में आगे। आजादी के एक दशक बाद 1956 में इस खान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और भारत सरकार की भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड ने वहां पर काम करना शुरू किया। शुरुआत में तो इस कंपनी को काफी सफलता मिली लेकिन एक समय के बाद फायदा कम होता चला गया। 1979 में यह हाल हो गए थे की कंपनी के पास अपने मजदूरों को पैसा देने के लिए पैसे भी नहीं बचे थे। आशिक दशा कहते आते केजीएफ का प्रदर्शन बहुत खराब हो गया और वह समय आ गया जब वहां से सोना निकालने में जितना पैसा लग रहा था वह वहां से निकल रहे सोने से कई ज्यादा था। यही वजह रही की 2001 में भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड ने सोने की खुदाई बंद करने का निर्णय लिया और वह जगह खंडहर बन गई। ऐसा कहा जाता है कि आज भी यहां पर सोना है।

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कितनी है कीमत

केजीएफ में 121 सालों से ज्यादा समय तक खनन हुआ है। साल 2001 तक यहां पर खुदाई होती रही। बताया जाता है कि इस खुदाई के दौरान यहां पर 900 तन से अधिक सोना निकाला गया। उसे हिसाब से यहां से जो सोना निकाला है उसकी कीमत करोड रुपए में है।



Richa Vishwadeepak Tiwari

Richa Vishwadeepak Tiwari

Content Writer

मैं रिचा विश्वदीपक तिवारी पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हूं। 2011 से मैंने इस क्षेत्र में काम की शुरुआत की और विभिन्न न्यूज चैनल के साथ काम करने के अलावा मैंने पीआर और सेलिब्रिटी मैनेजमेंट का काम भी किया है। साल 2019 से मैंने जर्नलिस्ट के तौर पर अपने सफर को शुरू किया। इतने सालों में मैंने डायमंड पब्लिकेशंस/गृह लक्ष्मी, फर्स्ट इंडिया/भारत 24, UT रील्स, प्रातः काल, ई-खबरी जैसी संस्थाओं के साथ काम किया है। मुझे नई चीजों के बारे में जानना, लिखना बहुत पसंद हैं , साथ ही साथ मुझे गाना गाना, और नए भाषाओं को सीखना बहुत अच्छा लगता हैं, मैं अपने लोकल भाषा से बहुत प्रभावित हु जिसमे , अवधी, इंदौरी, और बुंदेलखंडी आती हैं ।

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