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Kurnool: आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक

Kurnool: यह शहर अक्टूबर 1953 से 1 नवंबर 1956 तक आंध्र प्रदेश की राजधानी भी रह चुका है। इसकी सीमाओं से चार प्रमुख नदियां तुंगभद्रा और उसकी सहायक नदियां हुंड्री, कृष्णा और कुंदेरू भी बहती हैं।

Sarojini Sriharsha
Published on: 30 Aug 2024 10:59 PM IST
Kurnool
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Kurnool 

Kurnool: भारत देश के आंध्र प्रदेश राज्य का कुरनूल जिला अक्सर 'रायलसीमा का प्रवेश द्वार' के नाम से जाना जाता है। कुरनूल नाम ’कंदनवोलु’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ’ग्रीस का शहर’। दरअसल ऐसी मान्यता है कि 11वीं शताब्दी में आलमपुर शहर के लिए पत्थरों को गाड़ियों में भरकर ले जाते समय कुरनूल एक अहम पड़ाव आता था जहांके स्थानीय लोग इन गाड़ियों के लिए तेल की आपूर्ति करते थे। यह शहर अक्टूबर 1953 से 1 नवंबर 1956 तक आंध्र प्रदेश की राजधानी भी रह चुका है। इसकी सीमाओं से चार प्रमुख नदियां तुंगभद्रा और उसकी सहायक नदियां हुंड्री, कृष्णा और कुंदेरू भी बहती हैं। इस शहर में हिंदू राजा गोपाल राजू के महल के अवशेष भी मौजूद हैं । महल के ये अवशेष विजयनगर साम्राज्य के वास्तुकला का परिचय देते हैं। हजारों वर्षों का इतिहास समेटे यह शहर दुनिया भर से पर्यटकों और खासकर इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है।

यहां घूमने लायक कई जगह है, जिसमें प्रमुख हैं

यागंती मंदिर

5 वीं -6 वीं शताब्दी में बना यह अद्भुत यागंती मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर की मुख्य मूर्ति अर्धनारीश्वर की है जहां भक्त भगवान शिव और माता पार्वती को एक साथ अर्धनारीश्वर रूप में देख सकते हैं। एक ही पत्थर से बनाया गया यह अर्धनारीश्वर की मूर्ति इस मंदिर को कुर्नूल के खूबसूरत मंदिरों में से एक बनाता है। श्रावण महीने और महाशिवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखी जाती है।


रोल्लापडु वन्यजीव अभ्यारण्य

वन्यजीवों के शौकीन सैलानियों के लिए 614 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह वन्यजीव अभ्यारण्य एक खास जगह है। इसकी स्थापना वर्ष 1988 में हुई थी जिसमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन जैसी कुछ दुर्लभ प्रजातियों के अलावा कई प्रकार के पक्षियों, पेड़ पौधों को भी देखने का मौका मिलता है।


बेलम गुफाएं

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिला की ये गुफाएं भारत की सबसे बड़ी और लंबी गुफा प्रणाली का घर है। इन गुफाओं में चूना पत्थर पर गिरते पानी की धाराएं कई उलझे हुए रास्ते बनाते हैं जो देखने में बेहद आकर्षक और अद्भुत लगते हैं। इस गुफा में लगभग 46 मीटर गहरा एक हिस्सा है जहां एक बिंदु से एक भूमिगत जलधारा बहती है जिसे पातालगंगा कहा जाता है। इन्हीं बेलम गुफाओं के सामने आंध्र प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा 40 फीट ऊंची एक विशाल सफेद रंग की बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गई है जिसकी वास्तुशिल्प सराहनीय है।


ओरवाकल्लू रॉक गार्डन

आग्नेय चट्टान से बना यह गार्डन कुरनूल का लोकप्रिय पिकनिक स्थल है जहां नौका विहार के साथ गुफा संग्रहालय का आनंद ले सकते हैं। शहर से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित यह उद्यान बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय है।


महानंदी

भगवान नंदी को समर्पित 9 प्रसिद्ध मंदिरों में से एक महानंदी मंदिर, भगवान नंदी का घर है, जिसे नव नंदुलु के नाम से भी जाना जाता है। यह जगह चारों तरफ जंगलों से घिरा है जो खासकर प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। नल्लामाला पहाड़ियों के पूर्व में स्थित यह जगह प्राकृतिक सुंदरता से तो भरपूर है ही साथ ही कई विशिष्ट प्रजातियों और वनस्पतियों को देखने का मौका भी देता है।


कोंडा रेड्डी किला

विजयनगर साम्राज्य के दौरान बनाए गए इस कोंडा रेड्डी किले के अंदर एक छिपी हुई सुरंग थी जो तुंगभद्रा नदी के नीचे से गुजरती है। यह किला कुरनूल किले के नाम से मशहूर है। इस किले में एक विशाल वॉचटावर भी है जहां से पर्यटक आस पास का नज़ारा भी देख सकते हैं। यह किला कुरनूल रेलवे स्टेशन से करीब 2 किमी की दूरी पर स्थित है।


अहोबिलम मंदिर

भगवान नरसिंह को समर्पित इस मंदिर में भगवान नरसिंह के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दुर्लभ ऐतिहासिक अहोबिलम मंदिर में अद्वितीय वास्तुकला का नमूना देखने को मिलता है। पुरातत्व प्रेमी इस शांत स्थल में मंदिर दर्शन का आनंद लेने के साथ मंदिर के वास्तुकला से भी परिचित हो सकते हैं।


अब्दुल वहाब का मकबरा

यह मकबरा मशहूर बीजापुर के गोल गुम्बज से मिलता-जुलता है इस कारण इसे यहां के लोग गोल गुम्बज के नाम से भी पुकारते हैं। इस मकबरा का निर्माण 17वीं शताब्दी में कुरनूल के पहले नवाब अब्दुल वहाब खान की मृत्यु के बाद कराया गया। इस मकबरे में सैलानी राजसी गुंबद, मेहराब और लंबे बरामदे का दीदार कर सकते हैं।


वेणुगोपालस्वा

12वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर कृष्ण राजा सागर के पास होसा कन्नमबाड़ी में स्थित है। इस मंदिर में होयसल वास्तुकला का परिचय मिलता है। यह मंदिर कुरनूल का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है।


मी मंदिर

12वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर कृष्ण राजा सागर के पास होसा कन्नमबाड़ी में स्थित है। इस मंदिर में होयसल वास्तुकला का परिचय मिलता है। यह मंदिर कुरनूल का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है।


अदोनी किला

कुरनूल के अदोनी शहर में स्थित यह किला देश का सबसे बड़ा किला है। इस ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटकों को चंद्र सेन द्वारा 1200 ईसा पूर्व में बनवाए गए इस किले का इतिहास देखने को मिलता है। इस किले की करीब 50 किमी लंबी दीवारों का सामरिक लाभ हेतु 15वीं शताब्दी में विजयनगर राजवंश के शासनकाल में सैन्य अड्डे के रूप में किया जाता था।


रानामंडला कोंडा

पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को करीब 600 सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है। इसी के पास स्थित रामजल झील के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने सीता की प्यास बुझाने के लिए पहाड़ पर तीर चलाकर जल की व्यवस्था की थी।


जुम्मा मस्जिद

17वीं शताब्दी में निर्मित यह मस्जिद एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मीनार, गुम्बद और प्रार्थना कक्ष वाले इस मस्जिद का निर्माण आदिल शाह के गवर्नर मदु कादिरी ने करवाया था।


साक्षी गणपति मंदिर

भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर का महत्व मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाने वाले भक्तों के लिए खासकर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का पहचान रखते हैं। चारों तरफ हरे भरे वातावरण से युक्त यह मंदिर पर्यटकों को एक सुखद अनुभव देता है।


शिखरेश्वर मंदिर

भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले वीर शंकर स्वामी को समर्पित यह मंदिर श्रीशैलम की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। एक किवदंती के अनुसार अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए भगवान शिव, वीर शंकर स्वामी के रूप में प्रकट हुए थे। तभी से यह जगह भक्तों के लिए खास बन गया। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण इस मंदिर से पर्यटकों को हरे भरे वादियों का खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारा भी देखने को मिलता है।


गंडिकोटा

अमेरिका के कोलोराडो में ग्रैंड कैनियन के समान दिखने वाले इस जगह पर आपको एक गांव, ऐतिहासिक किला और ग्रैंड कैनियन तीनों एक साथ देखने को मिलेगा। गंडी का अर्थ होता है 'घाटी' और पहाड़ों के बीच तलछटी चट्टानों को पानी द्वारा काटने पर बनी इस घाटी का नाम पड़ा गंडिकोटा। कुछ किलोमीटर तक फैला यह भूवैज्ञानिक संरचना एक विस्मयकारी दृश्य प्रस्तुत करता है जिसे पर्यटक कैमरे में कैद करना नहीं भूलते इसके अलावा तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित हरियाली वातावरण में कई अन्य मंदिर जैसे साईंबाबा मंदिर, देवी लक्ष्मी मंदिर और भगवान हनुमान को समर्पित अंजनेया मंदिर के साथ राघवेंद्र स्वामी की समाधि का स्थल का भी दर्शन कर सकते हैं।


शिवाजी स्फूर्ति केंद्र

युवाओं को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों का पालन और राष्ट्रीय हित के कार्य करने के उद्देश्य से इस केंद्र को स्थापित किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि जब वर्ष 1674 में छत्रपति शिवाजी श्रीशैलम ज्योर्तिलिंग के लिए pआए तब उस जगह उन्होंने ध्यान लगाया था। उन्हीं की याद में करीब 300 से साल के बाद आंध्र प्रदेश के राम मोहन राव ने इस केंद्र का निर्माण कराया।


कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से कुरनूल पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद स्थित राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। वहां से कुरनूल की दूरी 187 किमी है और बस या टैक्सी द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। ट्रेन मार्ग से कुरनूल रेलवे स्टेशन तक ट्रेन से पहुंच सकते हैं। यह स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से कुरनूल देश के कई राज्यों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां पहुंचने के लिए प्रमुख शहरों से बस या टैक्सी ले सकते हैं। कुरनूल घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च तक का रहता है। अप्रैल और मई गर्म होते हैं और फिर अगले चार महीनों में बारिश होती है। मॉनसून के दौरान पुरातत्व स्थलों को देखना जोखिम भरा होता है। तो देरी किस बात की अब आने वाले दिनों में मॉनसून खतम होने के बाद इस जगह घूमने का प्लान बना लीजिए।



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Shalini singh

Shalini singh

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