Musa Bagh: लखनऊ में स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहे किले का खत्म होता नामों-निशान, जर्जर हुआ मूसाबाग किला

Musa Bagh: उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले मे दुबग्गा रोड स्थित मूसाबाग का यह किला लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला ने बनवाया था।

Vidushi Mishra
Written By Vidushi Mishra
Published on: 4 March 2022 10:36 AM GMT
Musa Bagh
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मूसा बाग (फोटो-सोशल मीडिया)

Musa Bagh: इतिहास की घटनाओं का साक्ष्य रहे ऐतिहासिक किलों आज के भारत की धरोहर हैं। इन ऐतिहासिक स्थलों की वजह से विरासतों का वजूद अभी भी जिंदा है। ऐसे ही ये धरोहर है यूपी की राजधानी में मूसाबाग का किला। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहे अवध का यह मशहूर, ऐतिहासिक व आखिरी मूसाबाग का किला अब अपने अस्तित्व की आखिरी सांसे ले रहा है।

विरासतों को संजोकर इन्हें प्रेरणा स्रोत के रूप में रखा जाये, क्योंकि जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी शासक नहीं बन पाता। ऐसे इसलिए जरूरी भी है कि क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, और प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, तभी सोच से आगे बढ़ाने की ताकत मिलती है। फिर उसी ताकत से शक्ति बनती हैं, और शक्ति से ही शासक बनता हैं।

मूसाबाग का किला

Musa Bagh Fort

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले मे दुबग्गा रोड स्थित मूसाबाग का यह किला (Musa Bagh) जो सन् 1775-1797 तक लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला के दौर में 284 एकड़ क्षेत्रफल में तैयार गया था। आज इसके खण्डहरनुमा अवशेष ही शेष हैं।


उस समय इस खूबसूरत इमारत मे चमक लाने के लिये चूने का इस्तेमाल किया जाता था। जैसा कि कुछ इतिहासकारों ने बताया है कि चार खम्भों पर खड़ी चौमंजिला आयताकार इमारत की घूमावदार सीढ़ियों से आसपास का नजारा बेहद शानदार होता था। लेकिन ये नजारा ज्यादा दिन के लिये नहीं रह सका। क्योंकि फिर आया गया था, जंग ए आजादी का दौर।

और 1857 में यह शानदार इमारत अवध की फौजों का आखिरी पड़ाव बन गयी। अवध के इस आखिरी किले में बेगम हजरत महल, शहजादे बिरजिस कादिर और अवध के तमाम सूरमाओं ने जंगे आजादी की आखिरी लड़ाई यहीं से लड़ी थी। इस जंग में अंग्रेज कैप्टन वेल्स मार दिये गये, जिनकी कब्र आज भी मूसाबाग(Musa Bagh) के निकट स्थित है।

किले के अवशेष खण्डहर में तब्दील होने को तैयार

21 मार्च 1858 को अंग्रेजो की तोपों से यह इमारत नेस्त ओ नाबूद होकर खण्डहर बन गई। और तब से ही इस इमारत के दिन रोशन नहीं हुए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस खण्डहर को संरक्षित रखने का जिम्मा तो उठाया गया, पर विभाग द्वारा कोई भी कार्य इन अवशेषों के संरक्षण के लिए नहीं किया गया।

मूसाबाग(Musa Bagh) के खण्डहर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बोर्ड तो बहुत ही तहजीब से लगा हुआ है, परन्तु अगर उसी तहजीब के साथ इमारत के संरक्षण का कार्य किया जाता तो आज इस किले के अवशेष खण्डहर में तब्दील हो कर मिट्टी में न रुल रहे होते।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डिप्टी सुप्रीटेंडेट 'मनोज सिंह' का कहना है, कि हमें उत्तर प्रदेश के 22 जिलों को देखना होता है। हम जरूरी स्मारकों को वरीयता में देखते हैं। मूसाबाग के इस ऐतिहासिक किले के संरक्षण के लिए उन्होंने बजट न पास होने की बात कही।


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