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Maa Mundeshwari Devi Mandir: कैसे पहुंचे मां मुंडेश्वरी मंदिर, आइये जाने सारी जानकारी
Maa Mundeshwari Devi Mandir: अगर आप पर्यटन व तीर्थाटन में रुचि रखते हैं तो बिहार के कैमूर पहाड़ पर मौजूद मां मुंडेश्वरी धाम की यात्रा कर सकते हैं
Maa Mundeshwari Devi Mandir: कुछ ही दिनों में हिंदुओं के चैत्र नवरात्र शुरू होने वाले हैं, ऐसे में शक्ति पीठ का दर्शन करना श्रद्धालु नही भूलते।हमारे हिंदू धर्म में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है । अगर आप पर्यटन व तीर्थाटन में रुचि रखते हैं तो बिहार के कैमूर पहाड़ पर मौजूद मां मुंडेश्वरी धाम की यात्रा कर सकते हैं। भारत के बिहार राज्य के कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड में मौजूद यह प्राचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर है। इस यात्रा में आप ट्रैकिंग, जंगल की सैर, प्राचीन स्मारक घूमने और मां मुंडेश्वरी के दर्शन सभी का आनंद उठा सकते हैं। यानी धर्म व आनंद दोनों का लुत्फ़ एक साथ। मंदिर जाने के लिए दो रास्ते हैं, पहला सीढ़ियों से और दूसरा 524 फीट की उंचाई तक घुमावदार सड़क जिधर हल्की गाड़ियां जा सकती हैं I
इस सुंदर मंदिर में कोई एक बार आने के बाद बार-बार आना चाहता है। देवी शक्ति को समर्पित इस मंदिर परिसर में अन्य देवताओं के भी कई छोटे मंदिर शामिल हैं, जिसका दर्शन कर सकते हैं।प्रवरा पहाड़ी के शिखर पर लगभग 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर की नक्काशी और मूर्तियां उत्तर गुप्तकालीन हैं। पत्थर से बना हुआ यहअष्टकोणीय मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि सन् 1812 से लेकर 1904 के बीच ब्रिटिश यात्री आरएन मार्टिन और फ्रासिंस बुकानन ने मंदिर का भ्रमण किया था। पुरातत्वविदों के अनुसार यहां से प्राप्त शिलालेख 389 ई. से 636 ई. के बीच के हैं, जो प्राचीनतम होने का सबूत है।पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मुंडेश्वरी मंदिर उसी स्थान पर बना हुआ है, जिस जगह पर दुर्गा सप्तशती में वर्णित मां ने चण्ड-मुण्ड नामक असुरों का वध किया था।
मां मुंडेश्वरी मंदिर में बलि देने की अनोखी प्रथा को देखने यहां दूर दूर से लोग आते हैं। सात्विक बलि प्रथा नाम से प्रसिद्ध इस बलि प्रथा में बलि के लिए बकरा लाया जाता है, लेकिन उसके प्राण नहीं लिए जाते हैं। मतलब बलि के लिए बकरे को माता के सामने लाया जाता है लेकिन उसे काटा नहीं जाता, बल्कि बकरे पर पुजारी मां की मूर्ति को स्पर्श कर चावल फेंकते हैं और माना जाता है कि उसके बाद बकरा बेहोश हो जाता है। फिर थोड़ी देर बाद दोबारा चावल यानी अक्षत फेंकने के बाद बकरा उठ खड़ा होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि यहां स्थित मां की तेज प्रकाश वाली मूर्ति पर अधिक देर तक कोई अपनी दृष्टि टिकाए नहीं रख सकता ।
देश के प्राचीनतम शक्तिपीठों में एक मां मुंडेश्वरी धाम शैव, शाक्त और वैष्णव उपासना का संगम है। इस मंदिर में मां मुंडेश्वरी विभिन्न रूपों में पूजी जाती हैं। दुर्गा कवच में महिष पर विराजमान देवी के जिस स्वरूप का वर्णन है , यह वही वाराही रूप हैं। इस मंदिर में स्थापित पंचमुखी शिवलिंग की पूजा होती है, जिसकी खासियत यह है कि यह शिवलिंग बदलते प्रकाश के साथ दिन में कई बार अलग रंगों में दिखता है। जिस पत्थर से यह शिवलिंग निर्मित किया गया है, उसमें सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख अक्षुण्ण रूप में विशाल नंदी की मूर्ति है।
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार मुंडेश्वरी देवी के दर्शन के बाद संतान और बेहतर स्वास्थ्य की कामना पूर्ति के लिए बाहर सीढ़ी के पास लगे लोहे में श्रद्धालु घंटा बांधकर अपनी मन्नत मांगते हैं। अपने बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए भी लोग यहां आते हैं।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से कैमूर पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा है। वाराणसी से कैमूर की दूरी 60 किमी है। यहां से टैक्सी या बस के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा बिहार की राजधानी पटना के एयरपोर्ट से भी इस जगह पहुंचा जा सकता है।
रेलवे मार्ग से यह स्थान अच्छी तरह कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। मोहनिया जंक्शन इस जिले का एकमात्र प्रमुख रेलवे स्टेशन है। इसे भभुआ रोड के नाम से भी जाना जाता है जो मुगलसराय इलाके में आता है।
कैमूर पटना से 200 किमी और वाराणसी से 60 किमी की दूरी पर स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 कैमूर को आरा जिले के माध्यम से राजधानी पटना से जोड़ता है। निजी वाहन, टैक्सी या बस के जरिए पर्यटक इस स्थान पर आसानी से पहुंच सकते हैं।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)