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Madras Se Tamil Nadu Kab Bana: आइए समझते हैं मद्रास के तमिलनाडु बनने का सफर, क्यों पड़ा ये नाम
Madras Name Change: मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु करने के पीछे कई सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक कारण थे। 14 जनवरी, 1969 को, मद्रास राज्य को आधिकारिक रूप से तमिलनाडु नाम दिया गया।
Madras Ka Naamkaran: भारत में राज्यों और शहरों के नामों का परिवर्तन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारकों के कारण होता रहा है। इन्हीं परिवर्तनों में से एक है मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु रखना। यह परिवर्तन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि यह तमिल लोगों की सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक चेतना और सामाजिक विकास का प्रतीक है। इस लेख में हम मद्रास से तमिलनाडु नाम परिवर्तन की पृष्ठभूमि, इसके कारण और इसके प्रभाव पर चर्चा करेंगे।
1. मद्रास का नामकरण और इतिहास
मद्रास, जो वर्तमान में तमिलनाडु राज्य का हिस्सा है, का नामकरण और इतिहास जटिल है, इसका नाम कैसे पड़ा, इस पर विभिन्न मत हैं:
मद्रासपट्टिनम से मद्रास: ऐसा माना जाता है कि मद्रास का नाम मद्रासपट्टिनम नामक एक मछली पकड़ने वाले गांव से लिया गया था। यह गाँव 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया।
तमिल शब्दावली: कुछ विद्वानों का मत है कि मद्रास नाम तमिल शब्द ‘मंद्र’ (सभा या बैठक) से निकला है। यह क्षेत्र स्थानीय तमिल राजाओं और व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था।
विदेशी प्रभाव: कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मद्रास का नाम पुर्तगाली या डच प्रभाव से आया।
2. मद्रास की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भूमिका
मद्रास ने भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1639 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) ने मद्रासपट्टिनम में फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना की। यह दक्षिण भारत में ब्रिटिश व्यापार का मुख्य केंद्र बना। मद्रास जल्द ही एक प्रमुख प्रशासनिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया। मद्रास तमिल साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहा है। यहां की भाषा, नृत्य, संगीत और कला ने तमिल पहचान को मजबूत किया। मद्रास स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रमुख केंद्र था। यहाँ से अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।
3. नाम बदलने की पृष्ठभूमि
मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु करने के पीछे कई सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक कारण थे। मद्रास नाम विदेशी प्रभाव को दर्शाता था, जबकि तमिलनाडु नाम तमिल संस्कृति और विरासत को प्रतिबिंबित करता है। तमिलनाडु का अर्थ है ‘तमिलों की भूमि’। यह नाम तमिल भाषा और परंपराओं के प्रति सम्मान व्यक्त करता है।
द्रविड़ आंदोलन का प्रभाव: 20वीं शताब्दी की शुरुआत में द्रविड़ आंदोलन ने दक्षिण भारत में जोर पकड़ा। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तमिल भाषा, संस्कृति और पहचान की रक्षा करना था।पेरियार ई.वी. रामासामी जैसे नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि मद्रास का नाम तमिलनाडु किया जाए।
तमिलनाडु का नाम केवल एक दिन में नहीं बदला गया। इसके पीछे वर्षों का संघर्ष, राजनैतिक प्रयास और सांस्कृतिक जागरूकता जुड़ी हुई है। सबसे पहले इस मांग को 1950 के दशक में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता ‘थियागी’ शंकरलिंगम ने उठाया। उन्होंने कई बार इस प्रस्ताव को प्रस्तुत किया। लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
भाषाई पुनर्गठन: 1956 में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। इस दौरान मद्रास राज्य का गठन हुआ, जिसमें तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को शामिल किया गया था। बाद में तेलुगु भाषी आंध्र प्रदेश, मलयालम भाषी केरल और कन्नड़ भाषी कर्नाटक अलग कर दिए गए। 1956 के बाद, मद्रास राज्य पूरी तरह से तमिल भाषी क्षेत्र बन गया, जिससे इसका नाम तमिलनाडु करना उपयुक्त माना गया।
राजनीतिक मांग: डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी, जो तमिलनाडु की प्रमुख राजनीतिक पार्टी है, ने मद्रास का नाम बदलने की मांग की। यह मांग तमिल अस्मिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
4. नाम परिवर्तन की प्रक्रिया
मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु करने की प्रक्रिया लंबी थी। 1960 के दशक में डीएमके पार्टी ने राज्य का नाम बदलने की मांग की। इसने तमिल अस्मिता और द्रविड़ संस्कृति को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।1967 में डीएमके ने विधानसभा चुनाव जीता। यह तमिलनाडु की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। डीएमके ने सत्ता में आते ही मद्रास का नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की।
1957: डीएमके का पहला प्रयास
7 मई, 1957 को, डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) ने विधानसभा में मद्रास राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पेश किया। हालांकि, उस समय केवल 42 विधायकों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। यह प्रस्ताव असफल रहा। बावजूद इसके, डीएमके ने इस मांग को लगातार उठाना जारी रखा।
1961: समाजवादी पार्टी की पहल
30 जनवरी, 1961 को, समाजवादी पार्टी के विधायक चिन्ना दुरई ने मद्रास राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के विधायकों से इस प्रस्ताव के समर्थन की अपील की। लेकिन मुख्यमंत्री कामराज ने इस पर चर्चा को एक महीने के लिए टाल दिया। इसके विरोध में डीएमके ने तीन दिनों तक विधानसभा का बहिष्कार किया।
संसद में पहल और अन्नादुरई का समर्थन
इस बीच, वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता भूपेश गुप्ता ने संसद में मद्रास राज्य का नाम बदलने के लिए एक विधेयक पेश किया। उस समय सी.एन. अन्नादुरई (अन्ना) राज्यसभा के सदस्य थे, जिन्होंने इस विधेयक का समर्थन किया। एक कांग्रेसी सांसद ने तब कहा, “लगभग पांच सौ साल पहले कोई संयुक्त तमिलनाडु नहीं था, केवल चेर, चोल और पांड्य राज्य थे। इस मांग का ऐतिहासिक आधार नहीं है।”
इसके जवाब में, अन्ना ने प्राचीन साहित्य जैसे परिपाडल, पदित्रुपट्टु, मणिमेकलाई, सिलप्पथिकारम और कंबन व सेखीजर के कार्यों में 'तमिलनाडु' शब्द के उपयोग का उल्लेख किया। एक सांसद ने उनसे पूछा कि नाम बदलने से राज्य को क्या लाभ होगा। इसके जवाब में अन्ना ने कहा, “जैसे राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपति’ और निचले सदन को ‘लोकसभा’ कहने से कोई लाभ नहीं हुआ, वैसे ही यह केवल सांस्कृतिक और पहचान की बात है।”
1963: विधानसभा में फिर से प्रस्ताव
23 जुलाई, 1963 को, डीएमके ने राज्य विधानसभा में फिर से यह प्रस्ताव पेश किया। मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम के शासनकाल में मंत्री आर. वेंकटरमन ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा, “तमिलनाडु नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं होगा, जबकि मद्रास को अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचाना जाता है। नाम बदलने से राज्यों और अन्य देशों के बीच हुए समझौतों पर प्रभाव पड़ सकता है।” इस बार भी प्रस्ताव असफल रहा।
1967: डीएमके का सत्ता में आना और प्रस्ताव पारित
1967 में विधानसभा चुनावों में डीएमके की जीत के बाद यह मांग साकार हुई। 18 जुलाई, 1967 को, मुख्यमंत्री अन्नादुरई ने मद्रास राज्य का नाम बदलकर तमिलनाडु करने का प्रस्ताव अंग्रेजी और तमिल दोनों भाषाओं में प्रस्तुत किया।
विपक्ष के नेता पी.जी. करुथिरमन ने तर्क दिया, “मद्रास एक ऐतिहासिक नाम है; तमिलनाडु को वही ऊंचाई तक पहुंचने में समय लगेगा। इसलिए नाम ‘तमिलनाडु-मद्रास राज्य’ होना चाहिए।” लेकिन, बहस के दौरान 'तमिलनाडु' नाम को स्वीकार कर लिया गया और प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। अन्ना ने ‘तमिलनाडु’ शब्द तीन बार उच्चारित किया।इसे विधायकों द्वारा जोरदार तरीके से सराहा गया।
5. नाम परिवर्तन के कारण
तमिलनाडु नाम ने तमिल लोगों को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान पर गर्व करने का अवसर दिया। मद्रास नाम विदेशी प्रभाव और औपनिवेशिक शासन का प्रतीक था। इसे बदलकर तमिलनाडु करने का उद्देश्य उस छवि को खत्म करना था। तमिलनाडु नाम ने राज्य को तमिल भाषा और संस्कृति के प्रति एकजुट किया।
6. नाम परिवर्तन का प्रभाव
तमिलनाडु नाम ने तमिल साहित्य, कला और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।डीएमके पार्टी को इस बदलाव का राजनीतिक लाभ मिला और वह तमिल लोगों की भावनाओं को भुनाने में सफल रही।तमिलनाडु नाम ने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। इससे लोगों में जाति और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर एक तमिल पहचान विकसित हुई।
14 जनवरी, 1969 को, मद्रास राज्य को आधिकारिक रूप से तमिलनाडु नाम दिया गया। इस ऐतिहासिक घटना की स्वर्ण जयंती के वर्ष को आज भी याद किया जाना चाहिए। लेकिन इसके प्रति जागरूकता कम है। आज तमिलनाडु भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक है। इसका नामकरण न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत और राजनीतिक पहचान का भी प्रतीक है।
मद्रास का नाम बदलकर तमिलनाडु रखना सिर्फ एक औपचारिक बदलाव नहीं था, बल्कि यह तमिल संस्कृति, भाषा और अस्मिता को सम्मान देने का एक महत्वपूर्ण कदम था। यह परिवर्तन तमिल लोगों की एकता, संघर्ष और उनके गौरव का प्रतीक है। तमिलनाडु आज भी इस ऐतिहासिक निर्णय को अपने गौरवशाली अतीत के रूप में देखता है।
तमिलनाडु के निर्माण में योगदान देने वाले
अन्ना ने थियागी शंकरलिंगम और म.पो. शिवगनम के योगदान को मान्यता दी। उन्होंने कहा, “नाम परिवर्तन के बावजूद, हमारा राज्य भारत का हिस्सा रहेगा।” अन्ना ने यह भी घोषणा की कि तमिलनाडु सचिवालय का नाम अब ‘तमिलनाडु सरकार सचिवालय’ होगा और फोर्ट सेंट जॉर्ज में नामपट्टिका स्थापित की गई।
मद्रास से तमिलनाडु बनने की यात्रा केवल नाम बदलने की प्रक्रिया नहीं थी। यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण, क्षेत्रीय पहचान और तमिल गौरव की लड़ाई थी। इस संघर्ष में थियागी शंकरलिंगम, सी.एन. अन्नादुरई और म.पो. शिवगनम जैसे नेताओं का योगदान अमूल्य है। यह बदलाव तमिल संस्कृति और परंपरा को सम्मान देने की दिशा में एक बड़ा कदम था।