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Maha Shivratri 2022: यूपी के बाराबंकी में महादेव का ऐसा मंदिर, जहां पर भक्तों की बीमारियां होती दूर
Lodheshwar Mahadeva Mandir: हर साल महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लोधेश्वर महादेव के मंदिर में लगने वाले फाल्गुनी मेले में कानपुर के बिठूर से गंगाजल लेकर कांवरिए आते हैं।
Lodheshwar Mahadeva Mandir: महादेव के भक्तों की अटूट आस्था देखने को मिलती है लोधेश्वर महादेवा में। महीनों पहले से कांवर महाशिवरात्रि के लिए बाबा के धाम में इकट्ठा होने लगते हैं। जीं हां लोधेश्वर महादेवा मंदिर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की रामनगर तहसील में है।
भगवान शिव के इस मंदिर में पूजे जाने वाले शिवलिंग के देवता पूरे भारत के शक्तिपीठों पर पाए जाने वाले 52 शिवलिंगों में से एक हैं। इतिहास के इस मंदिर का उल्लेख महाभारत में भी कई बार किया गया है।
साथ ही कई हिंदू शास्त्रों और पवित्र पुस्तकों में इस मंदिर (mahadeva mandir barabanki) के महत्व को बताया गया है। यह शक्ति पीठ पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। इसके साथ ही लोधेश्वर महादेव को लोधी राजपूत के कुलदेवता के रूप में भी जाना जाता है।
बम-बम भोले का जयकारा
हर साल महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां लगने वाले फाल्गुनी मेले में कानपुर के बिठूर से गंगाजल लेकर कांवरिए आते हैं। शिव की भक्ति में लीन ये कांवरिये पैदल यात्रा तय करते हुए लोधेश्वर महादेवा की पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने के लिए बम-बम भोले का जयकारा लगाते हुए आते हैं।
बाराबंकी जिले में मौजूद शिव के मंदिर को लेकर काफी कहानियां-किस्से हैं। जोकि इस मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था-भक्ति को और अधिक बढ़ा देते हैं।
भगवान शिव के इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यताएं हैं कि महाभारत काल से पहले भगवान शिव को एक बार फिर से पृथ्वी पर प्रकट होने की इच्छा जाहिर हुई। पृथ्वी पर पंडित लोधेराम अवस्थी नाम का एक विद्वान ब्राह्मण जोकि बेहद सरल और दयालू स्वभाव वाला रहता था। लेकिन वह पुत्रविहीन थे।
पंडित लोधेराम को एक चांदनी रात को भगवान शिव ने सपने में दर्शन दिए। अगले दिन ही लोधेराम ने अपने खेत में सिंचाई करते समय एक गड्ढा देखा। इस गड्डे में सिंचाई का पानी अंदर ही जाता जा रहा था। खुदाई करने पर पानी अंदर जाकर अचानक गायब हो जा रहा था। जिससे उसके खेतों में पानी फैल ही नहीं पा रहा था।
सारी कोशिशें नाकाम
अब इस गड्ढे को पाटने के लिए उन्होंने बहुत कोशिशें की, लेकिन सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। फिर रात में, उसने दोबारा फिर से उसी प्रतिमा को अपने सपने में देखा।
साथ ही मूर्ति को फुसफुसाते हुए यह कहते हुए सुना कि 'उस गड्ढे में जहां पानी जाकर गायब हो रहा है, वह मेरा स्थान है। उस स्थान पर मुझे स्थापित करो। ये करने से मुझे तुम्हारे नाम से प्रसिद्धि मिलेगी'।
इसके बाद अगले दिन जब लोधेराम फिर से उस गड्ढे की खुदाई करने गया, तो उसका उपकरण किसी ठोस चीज से टकराया। देखा तो उसने अपने सामने वही सपने वाली मूर्ति देखी।
इस मूर्ति से उस जगह से खून भी बह रहा था, जहां पर लोधेराम का गड्ढा खोदने वाला उपकरण टकराया था। ये निशान आज भी देखा जा सकता है।
ऐसे पड़ा मंदिर का नाम
मूर्ति से खून बहता देख, लोधेराम बहुत डर गया। तो उसने मूर्ति के लिये खुदाई जारी रखी। लेकिन मूर्ति के दूसरे छोर तक पहुंचने में पूरी तरह से नाकाम रहा। इसके बाद उसने उसे जैसा था वैसे ही छोड़ दिया। और उसी जगह पर मंदिर का निर्माण किया। जिसे लोधेराम के आधे नाम पर और आधा नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया। जिससे ये मंदिर (mahadeva temple barabanki history in hindi) लोधेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कुछ ही दिनों पर लोधेराम की पत्नी भी गर्भवती हो गईं। एक-दो साल के अंदर उसे चार पुत्रों का आर्शीवाद प्राप्त हुआ। इन चारों का नाम महादेवा, लोधौरा, गोबरहा और राजनापुर था। इन्हीं के नाम से आज भी गांव प्रसिद्ध हैं।
भगवान शिव के इस मंदिर के बारे में महाभारत में भी उल्लेख है। कहा जाता है कि महाभारत के बाद पांडव ने इस स्थान पर महायज्ञ का आयोजन किया था। यहां पर एक कुंआ आज भी पांडव-कुप के नाम से जाना जाता है।
ऐसा बताया जाता है कि इस कुंए के पानी में आध्यात्मिक गुण मौजूद हैं। जो कोई भी इस कुएं का पानी पीता है उसको बीमारियों से निजात मिल जाती है।