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History Of Kumbh Mela 2025: महाकुंभ में बेहद अहम भूमिका होती है प्रयागवाल की, जाने क्या है इनसे जुड़ा इतिहास

History Of Kumbh Mela 2025: कुंभ स्थल पर सदियों से तीर्थ गुरु के रूप में पूजे जाने वाले प्रयागवाल धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते आए हैं आइये जानते हैं उनके बाते में विस्तार से।

Jyotsna Singh
Published on: 10 Jan 2025 4:08 PM IST
History Of Kumbh Mela 2025
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History Of Kumbh Mela 2025 (Image Credit-Social Media)

History Of Kumbh Mela 2025: स्नान, दान, तप और अनगिनत संस्कारों को अपने भीतर समेटे भारत का सबसे विशाल धार्मिक समागम है कुंभ मेला, जहां गुफाओं और जंगलों में एकांत जीवन व्यतीत करने वाले तपस्वी और नागा संन्यासी से लेकर लाखों श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी नदियों में स्नान करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए मीलों दूर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। कुंभ स्नान के दौरान अनगिनत ऐसे संस्कार निभाने की परंपरा है, जिसे वहां मौजूद एक खास तरह का जाति समुदाय द्वारा ही संपन्न किया जाता है। जिन्हें हम पंडों के नाम से संबोधित करते हैं। जबकि प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में पंडों को 'तीर्थराज' और 'प्रयागवाल' के नाम से जाना जाता है। गंगाघाट पर कुंभ स्नान के दौरान कई तरह के संस्कारों को पूर्ण करने में इनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। वे श्रद्धालुओं को विधिवत धार्मिक अनुष्ठानों, पूजन आदि संस्कारों को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं, जिससे श्रद्धालु परम्परागत तरीके से पूजा पाठ कर सकें । कुंभ मेले में 'तीर्थराज' और 'प्रयागवाल' की उपस्थिति अनगिनत वर्षों से चली आ रही है। आइए जानते हैं प्रयागवाल के बारे में विस्तार से -

उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं, प्रयागवाल

Mahakumbh me Prayaagval ka Itihas (Image Credit-Social Media)

कुंभ स्थल पर सदियों से तीर्थ गुरु के रूप में पूजे जाने वाले प्रयागवाल धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते आए हैं। प्रयागराज की धार्मिक परंपराओं में प्रयागवालों का अहम योगदान रहा है। चूंकि ये एक समूह के साथ रहते हैं इसलिए इन्हें प्रयागवाल नाम से संबोधित किया जाता है। ये सरयूपारी और कान्यकुब्ज गोत्र के उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं।

अस्थिदान और पिंडदान संसार में हैं इनका विशेष महत्व

Mahakumbh me Prayaagval ka Itihas (Image Credit-Social Media)

महाकुंभ और माघ मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों से इतना गहरा नाता रखते हैं कि ये उनके रहने की सारी व्यवस्था का जिम्मा प्रयागवाल ही उठाते हैं। हिंदू ग्रंथों के अनुसार, कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में अस्थिदान और पिंडदान का खास महत्व माना जाता है। साथ में यह भी मान्यता है, इन संस्कारों को पूरा करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। प्रयागराज में रहने वाले प्रयागवाल ही इन संस्कारों को संपन्न कराते हैं। ये भी मान्यता है कि प्रयागराज की पवित्र भूमि पर पारंपरिक संस्कार और अधिक फलदायी होते हैं।

यजमानों का रखते हैं 500 साल पुराना रिकॉर्ड

Mahakumbh me Prayaagval ka Itihas (Image Credit-Social Media)

प्रयागवाल वर्षों से प्रयागराज में प्रतिवर्ष आने वाले अपने यजमानों से गहरा नाता रखते हैं। यहां तक कि देश-विदेश में रहने वाले भारतीयों के पूरे परिवार का 500 साल पुराना रिकॉर्ड भी इनके पास मौजूद होता है। यही वजह है कि घाट पर आने वाले अपने पुराने यजमानों को ये बिना देर किए ही पहचान जाते हैं। एक विशेष सामुदायिक व्यवस्था के तहत ये प्रयागवाल जानते हैं कि कौन किसका यजमान है और कहां से आया है। किसी और प्रयागवाल के यजमान को ये कभी बिना उसकी अनुमति के आमंत्रित नहीं करते। ये पंडे बहुत पुराने समय से ही प्रयागराज घाट पर निभाए जाने वाले संस्कारों के साक्षी रहें हैं।



Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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