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Maheshwar Temple: भारत का दूसरा बनारस

Maheshwar Temple: नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर अपने कई प्राचीन मंदिरों , किलों और स्नान घाटों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के किलों में मराठा वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है।

Sarojini Sriharsha
Published on: 1 July 2024 9:07 PM IST
Maheshwar Temple ( Social- Media- Photo)
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Maheshwar Temple ( Social- Media- Photo)

Maheshwar Temple: भारत देश का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य में कई धार्मिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थल हैं। यहां हर साल हजारों की तादाद में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं।अगर घाटों पर घूमने की बात करें तो हर कोई उत्तरप्रदेश के बनारस के घाट घूमने की चाह रखता है। लेकिन वहां की भीड़भाड़ से अलग वही बनारस के घाट का मज़ा लेना है तो आप भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित महेश्वर शहर के नर्मदा नदी के किनारे ले सकते हैं। इस शहर को मध्य भारत के वाराणसी के रूप में जाना जाता है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर अपने कई प्राचीन मंदिरों , किलों और स्नान घाटों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के किलों में मराठा वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है।

बनारस की तरह यहां भी गलियों में घूमने का आनंद ले सकते हैं और काशी विश्वनाथ जैसे मंदिर का दर्शन कर सकते हैं। अक्सर कई फिल्मों में जिस बनारस को हम देखते हैं वो दरअसल में महेश्वर होता है।महेश्वर पर्यटकों को प्रकृति और इतिहास की दुनिया से अवगत कराता है। महेश्वर का प्राचीन नाम माहिष्मति था और इस जगह का जिक्र हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में भी होता है।बारिश का मौसम हो या ठंड की शुरुआत इस प्राकृतिक खूबसूरती वाले ऐतिहासिक स्थान पर घूमने का आनंद सैलानी ले सकते हैं।


ऐसा माना जाता है कि चौथी शताब्दी में सुबांधु नाम के शासक ने महेश्वर को बसाया था। बाद में होल्कर शासकों ने अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित कर ली। जब अहिल्या बाई होल्कर शासक बनीं तो उन्होंने मुगलों द्वारा तोड़े गए पूरे देश के मंदिरों के साथ महेश्वर का भी पुनरुद्धार कराया और नर्मदा नदी के किनारे कई घाट भी बनवाए । इंदौर के अंतिम शासक राजकुमार शिवाजी राव होलकर का यहां शासन था। इस शहर को असली पहचान अहिल्याबाई के धार्मिक प्रवृति और बुद्धिमत्ता के कारण मिली है।

यहां देखने लायक कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें प्रमुख हैं-

होल्कर किला -

करीब 250 साल पुराने इस खूबसूरत किले को महेश्वर किला भी कहा जाता है जिसके बाईं ओर विंध्य श्रेणी और दायीं ओर सतपुड़ा की पहाड़ियां हैं जिसके बीच से नर्मदा नदी बहती है। महेश्वर किले में दीवारों पर कहानियों के रूप में आप मुगल, राजपूताना और मराठा वास्तुकला की खूबसूरत नक्काशी देख सकते हैं। इस किले के अंदर अब होटल भी खुल गए हैं। किले के सामने से बहती हुई नर्मदा नदी के किनारे बने घाट पर बैठने से आप अपार शांति की अनुभूति कर सकते हैं। घाट के चारों ओर भगवान शिव के छोटे-बड़े मंदिर वहां पर्यटकों को हमेशा भक्ति का एहसास कराएंगे।


रजवाड़ा -

ऐसा कहा जाता है की अहिल्या बाई ने अपने लिए कोई बड़ा महल नहीं बनवाया। महेश्वर में वो एक खपरैल से बने छोटे से घर में रहतीं थीं जिसे आज रजवाड़ा के नाम से जाना जाता है। इस रजवाड़े में प्रवेश करते ही रानी अहिल्या बाई होल्कर की एक मूर्ति देखने को मिलती है। जिस घर में रानी रहतीं थीं उस कमरे के बाहर एक पालकी रखी हुई है और साथ ही वो गद्दी जिस पर वो बैठा करतीं थीं। इस घर के अंदर तलवार और भाले को भी दर्शक देख सकते हैं।


राज राजेश्वर मंदिर -

यह मंदिर महेश्वर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तोड़ दिया था जिसका पुनरुद्धार बाद में अहिल्या बाई होल्कर ने कराया। इस मंदिर में महेश्वर के महान सम्राट सहस्त्रार्जुन, जिन्होंने रावण को भी हराया था , का भी एक छोटा मंदिर है। इसका प्रतीक महेश्वर में स्थित रावणेश्वर मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा सहस्त्रार्जुन, जिनकी 500 रानियां थी, ने महेश्वर की स्थापना की थी। रामायण जैसे ग्रंथ में सम्राट सहस्त्रार्जुन के शक्तिशाली होने का वर्णन मिलता है जिसमें लिखा है कि उनकी ताकत हजार भुजाओं वाली थी। जिसकी सहायता से वे नंदा नदी की धारा को रोक सकते थे। इस मंदिर में हमेशा 11 अखंड दीप जलते रहते हैं।


नर्मदा नदी और नर्मदा घाट -

कोई भी जगह अगर नदी किनारे बसी है तो वह खूबसूरत जगहों में से एक होती है। नर्मदा नदी के किनारे बसे हुए महेश्वर जैसे खूबसूरत शहर में नदी के किनारों पर बने हुए घाट इस खूबसूरती में और चार चांद लगा देते हैं। इन्हीं घाटों को देखकर लोग इसकी तुलना बनारस के घाट से करने लगते हैं। नर्मदा नदी में नाव की सैर करते हुए आप किनारे के शहर को देख सकते हैं। सुबह और शाम इन घाटों पर नाव से सैर का आनंद लेकर सैलानी अपने यात्रा को यादगार बना सकते हैं। इन घाटों के किनारे कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है जिसे बनारस समझा जाता है। इन सुंदर घाटों का प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी में देखने को मिलता है।



छत्रियां-

इन जगहों पर राजा-महाराजाओं की समाधि बनी होती हैं जो देखने लायक होती है। इन विशाल और खूबसूरत छात्रियों से उस समय की वास्तुकला और नक्काशी को समझ सकते हैं। अहिल्या शिवालय, विठोजी की खूबसूरत छत्रियां पर्यटकों को जरूर देखना चाहिए।


काशी विश्वनाथ मंदिर-

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के तर्ज पर महेश्वर में बना काशी विश्वनाथ मंदिर देखने लायक जगहों में से एक है। इस शहर को अगर मंदिरों का शहर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नर्मदा घाट पर खूबसूरत नर्मदा मंदिर के साथ विंध्यवासिनी, बाणेश्वर और अहिल्येश्वर जैसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जिसका दर्शन पर्यटकों को जरूर करना चाहिए।


महेश्वर गढ़-

भारत की कुछ चुनिंदा शहरों में आज भी राजा महाराज रहते है। इन्हीं में से एक है महेश्वर गढ़। इस जगह पर महेश्वर का राजसी परिवार रहता है। महेश्वर गढ़ के प्रवेश द्वार तक पर्यटक आ सकते हैं। ये विशाल प्रवेश द्वार हाथियों के प्रवेश के लिए बनाया गया था।


क्या खरीदें-

महेश्वर सिर्फ अपने खूबसूरत जगहों के लिए ही नहीं बल्कि यहां की साड़ियों के लिए भी मशहूर है। इन साड़ियों की खासियत यह है कि इस पर महेश्वर किला की चित्रकारी उकेरी जाती है। शहर में चारों तरफ आपको रंग बिरंगी साड़ियों की दुकान के साथ हथकरघे के चलने की आवाज भी सुनाई पड़ेगी।


कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से महेश्वर पहुंचने का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है। इंदौर से महेश्वर की दूरी करीब 95 किमी है। एयरपोर्ट से बस या टैक्सी के द्वारा महेश्वर पहुंचा जा सकता है।महेश्वर सीधे तौर पर रेलवे मार्ग से नहीं जुड़ा है। महेश्वर पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन इंदौर है, जहां से महेश्वर की दूरी करीब 96 किमी है। दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन खंडवा है जहां से महेश्वर की दूरी 120 किमी है। रेलवे स्टेशन से महेश्वर बस या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।सड़क मार्ग द्वारा महेश्वर इंदौर, खंडवा या खरगौन के रास्ते पहुंचा जा सकता है।महेश्वर से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग लगभग 55 किमी दूर है, जबकि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन से इसकी दूरी लगभग 150 किमी है।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)



Shalini Rai

Shalini Rai

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