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Manas Mandir Rajapur Chitrakoot: भारत में यहां रखा है वास्तविक रामायण, आप भी कर सकते है दर्शन

Manas Mandir Rajapur Chitrakoot: यदि आप को हम यह बताए कि आप वर्तमान में भी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस के दर्शन कर सकते है। उनसे देख सकते है, छू सकते है तो आपको यकीन नहीं होगा।

Yachana Jaiswal
Written By Yachana Jaiswal
Published on: 27 May 2024 3:15 PM IST (Updated on: 27 May 2024 3:16 PM IST)
Ramcharit Manas, Tulsidas
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Tulsidas Ramcharit Manas (Pic Credit-Social)

Chitrakoot Tulsi Manas Mandir: रामायण का हिंदी अनुवाद के रूप में प्रमुख रामचरित मानस जिसे तुलसीदास जी ने लिखा है। उसकी मान्यता आज भारत समेत विश्व भर में हर हिंदू के लिए है। लेकिन यदि आप को हम यह बताए कि आप वर्तमान में भी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस के दर्शन कर सकते है। उनसे देख सकते है, छू सकते है तो आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन यह सच है। तो चलिए हम आपको प्रमुख हिंदू ग्रंथ रामचरित मानस से जुड़ी खास जानकारी देने जा रहे है।

मूल प्रति की नहीं ले सकते है फोटो

अगर आप जानते हैं कि तुलसीदास जी की रामचरितमानस का क्या महत्व है तो आपको इस जगह पर अवश्य जाना चाहिए और अन्य भक्तों को भी इसकी सलाह देनी चाहिए। रामचरितमानस (अयोध्या कांड) की वास्तविक प्रति यहाँ संरक्षित रखी गई है। मूल प्रति की तस्वीरें लेने की अनुमति नहीं है, हालांकि फोटोकॉपी की तस्वीरें आपको मिल जाएंगी। यह स्थान चित्रकूट के पास है, लेकिन बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं। लेकिन हर हिंदू को अपने दिव्य ग्रंथ रामचरितमानस को मूल संरक्षित रूप में देखने के लिए कम से कम एक बार इस स्थान पर अवश्य जाना चाहिए। यहाँ के पुजारी संत तुलसीदास जी के 11वीं शिष्य पीढ़ी के हैं और बहुत ज्ञानी हैं।

यहां पर रखा है रामचरित मानस की मूल प्रतिलिपि

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से 40 किलोमीटर दूर है एक गांव जिसे राजापुर नाम से जाना जाता है। यह गांव रामायण से जुड़ा हुआ है, जहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मस्थान है। वहीं गोस्वामी तुलसीदास जिन्होंने वाल्मिकी के रामायण ग्रंथ का हिंदी अनुवाद कर हमारे बीच रामचरित मानस पेश किया है। यह राम चरितमानस प्रभु श्री राम के जीवन चरित्र के आधार पर लिखित हिंदू ग्रंथ हैं।



चित्रकूट के राजापुर गांव में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के सात कांडों में से एक अयोध्या कांड की मूल प्रतिलिपि संरक्षित रखी गई है। इस अयोध्या कांड में राम जी और उनके भाइयों के बाल जीवन की कथाएं लिखित है। तुलसीदास के मूल प्रतिलिपि में अयोध्या कांड लगभग 165 पन्नों में दर्ज किया गया है। 450 साल पुरानी ये पांडुलिपि टूटी फूटी अवस्था में रखी गई है। यहां के तुलसी मानस मंदिर में मूल पांडुलिपि को संग्रहित कर संरक्षित किया गया है।

ऐसे गुम हुआ था रामचरित मानस का 6 कांड

गोस्वामी तुलसीदास जी ने 1574 ईस्वी में रामनवमी के दिन रामचरितमानस लिखना शुरू किया। जिसके बाद पूरे दो वर्ष के निरंतर श्रम के बाद यह पांडुलिपि पूरी हुई। पूरे दो वर्ष 7 माह और 76 दिन बाद रामचरितमानस लिख कर पूरा किया गया। यानी 1576 में माघ शीर्ष में पूरा हुआ था। काशी के कई काव्य प्रमुख ने रामचरितमानस को कई राग और ताल में उतारा। उसके बाद वर्ष 1680 में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मोक्ष को प्राप्त करने के पूर्व काशी में अपने परम शिष्य गणपत राम को सौप दीं थी। जो काशी में गंगा किनारे अस्सी घाट पर रहते थे। तब से गणपत राम को 11 पीढियां इन मूल प्रतिलिपि की देख रेख कर रही है। श्री गणपत राम की 11 वीं पीढ़ी के सबसे बुजुर्ग लगभग 80 वर्षीय व्यक्ति बताते है कि तुलसीदास जी के महाप्राण के बाद गणपत जी ने इस मूल प्रति को राजा को उपहार स्वरूप दे दिया। इसके कुछ सालों बाद मानव सेवा में लगे एक शिष्य ने लोभ वश मानस को चुराकर भागने को कोशिश की। दूसरे शिष्य द्वारा पीछा करने के बाद उसने मानस को गंगा जी में विसर्जित कर दिया। उसके बाद गंगा में राजा के अथक प्रयास के बाद मानस ग्रंथ का 6 कांड तो अस्त व्यस्त अवस्था में पानी से गल चुके थे। लेकिन उसके पश्चात 1 कांड मिला तो उसे संरक्षित कर रखने का प्रयास जारी है।



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Yachana Jaiswal

Yachana Jaiswal

Content Writer

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