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Mandu: मध्य भारत का हम्पी
Mandu: मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वारों में दिल्ली दरवाजा प्रमुख है, जो मांडू का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की इस द्वार का निर्माण 1405 से 1407 ईसवी के मध्य हुआ था।
Mandu: भारत के मध्य प्रदेश राज्य में विन्ध्याचल की पहाड़ियों पर करीब 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित मांडू एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है। एक जमाने में यह जगह सुलतानों का शहर शादियाबाद के नाम से जाना जाता था, जिसका मतलब होता है 'खुशियों का शहर'। मांडू ने परमार, सुल्तान, मुगल और पवार काल के शासकों के शासन को देखा है। इसे खंडहरों का गांव भी कहते हैं। इसके अलावा इसका दूसरा नाम मांडवगढ़ भी है। यह जगह रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर की अमर प्रेम कहानी का साक्षी है। इस शहर को मध्य भारत का हम्पी भी कहा जाता है। मांडू अपनी समृद्ध और विविध इतिहास, वास्तुशिल्प कला के साथ हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को आकर्षित करती है। मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वारों में दिल्ली दरवाजा प्रमुख है, जो मांडू का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की इस द्वार का निर्माण 1405 से 1407 ईसवी के मध्य हुआ था। यहां आप कई ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थलों की सैर कर सकते हैं
हिंडोला महल
इस अनोखे महल की बनावट भी इसके अनोखे नाम जैसा है। दरअसल यह महल अपने थोड़ी सी झुकी दीवार के कारण एक झूले की तरह नजर आता है और इसी कारण इसका नाम हिंडोला महल पड़ गया। टी-आकार की इमारत में तब्दील यह महल अब दर्शक हॉल या ओपन-एयर थिएटर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस महल का निर्माण होशंग शाह के शासनकाल के दौरान 1425 में हुआ था। इस महल को बलुआ पत्थरों से बनाया गया है। इसकी वास्तुकला इसे अन्य स्मारकों से अलग करती है।
जहाज महल
दो कृत्रिम झीलों के बीच स्थित यह महल पानी में तैरते हुए जहाज के रूप में दिखाई देता है जिस कारण इसे जहाज महल के नाम से जाना जाता है। यह महल यहां सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। 15 वीं शताब्दी में इस महल का निर्माण सुल्तान गियासउद्दीन खिलजी ने कराया था। यह तैरता हुआ जहाज रूपी महल पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है।
रूपमती महल
एक बड़े बलुआ पत्थर से बना यह महल रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम कहानी का साक्षी है। इसे रूपमती के मंडप के नाम से भी जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रानी रूपमती नर्मदा नदी की दीवानी थी और इस नदी को बिना देखे वह पानी भी नहीं पीती थी।
बाज बहादुर का महल
कला और स्थापत्य का अद्भुत नमूना वाला यह महल 16 वीं शताब्दी में बाज बहादुर द्वारा बनवाया गया था। यह महल अपने बड़े सभा गृह, आंगन और ऊंचे छतों के लिए मशहूर है। यह महल रूपमती महल के मंडप के नीचे स्थित है। वहीं से पर्यटक इसे देख सकते हैं।
मांडू का किला
राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के प्यार की निशानी वाला यह किला पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में विंध्य की पहाड़ियों में करीब 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लोग इस किले को रानी रूपमती महल के नाम से भी जानते है। यहां का प्राकृतिक दृश्य सैलानियों का मन मोह लेता है।
होशांग शाह का मकबरा
यह मकबरा भारत में मौजूद सबसे पुरानी संगमरमर की इमारतों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी वास्तुकला देखकर शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण से पूर्व कारीगरों को होशांग शाह के मकबरा का निरीक्षण करने के लिए भेजा था। लोगों का मानना है कि होशांग शाह के मकबरा पर लगा अर्ध चंद्राकार मुकुट फारस से लाया गया था।
दारा खान का मकबरा
दारा खान का मकबरा बलुआ पत्थर से बना हुआ है जिसके परिसर में एक मस्जिद, तालाब, सराय स्थित है। महमूद खिलजी द्वितीय के दरबार में दारा खान एक मंत्री थे।
रेवा कुंडरानी जलाशय
इस जलाशय का निर्माण रूपमती के मंडप में पानी की आपूर्ति के लिए किया गया था। रूपमती मंडप के नीचे स्थित यह झील अपने वास्तुकला के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है।
श्री मंडवागढ़ तीर्थ
14 वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर जैन भगवान सुपार्श्वनाथ को समर्पित है। यहां 91.54 सेमी ऊंची भगवान सुपार्श्वनाथ जी की मूर्ति के अलावा भगवान शांतिनाथ का भी एक मंदिर है। इस जगह कभी लगभग 300 जैन मंदिर हुआ करते थे।
जामी मस्जिद
विशाल लाल पत्थर से निर्मित यह मस्जिद अफगान वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मस्जिद का निर्माण सीरिया के दमिश्क में स्थित 'ओमायेद मस्जिद' से प्रेरित होकर किया गया था। इस मस्जिद के सामने अशर्फी पैलेस के खंडहर हैं। इस महल के पास महारानी सकरवार बाई पवार द्वारा निर्मित एक राम मंदिर भी है।
चंपा बावड़ी और हम्माम
तुर्की स्नान की शैलियों से प्रेरित होकर इसका निर्माण किया गया था। इसके पानी की सुगंध चंपा फूल के समान थी जिसके कारण इस जगह का नाम चंपा बावड़ी पड़ा। यह जगह शाही परिसर में स्थित है, इसे जल प्रबंधन के साथ दुश्मनों से रक्षा के लिए भी बनाया गया था। आक्रमण के दौरान शाही महिलाएं पानी में कूद कर गुप्त रास्तों से भूमिगत कोठरियों में चली जाती थीं बाद में वे शाही परिसर से बाहर निकल जाती थीं। तीन मंजिला, प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित इस भूमिगत इमारत की कक्षों में प्रकाश और वायु-संचार का उचित ध्यान रखा गया था। कमरे बावड़ी से ऐसे जुड़े हुए थे कि गर्मी के दौरान भी ठंडे रहते थे।
तवेली महल
इस महल का निर्माण मुगल बादशाहों ने अपने शासन काल में एक विश्रामस्थल के रूप में किया था ।
कैसे पहुंचे ?
हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है, जो मांडू से लगभग 59 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। यह हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट पहुंचने के बाद आप टैक्सी या बस से मांडू पहुंच सकते हैं।रेल मार्ग से मांडू पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन इंदौर है, जो मांडू से 97 किमी की दूरी पर है। बस या टैक्सी के माध्यम से मांडू पहुंचा जा सकता है।सड़क मार्ग से यह शहर प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। बस के अलावा आप यहां अपनी गाड़ी या टैक्सी के माध्यम से भी पहुंच सकते हैं।मांडू जाने के लिए अक्टूबर-मार्च का समय सबसे अनुकूल रहता है। मार्च से मई तक मौसम काफी गर्म रहता है। इस दौरान इन जगहों की यात्रा न करना ही सही रहता है। सर्दियों में मांडू की यात्रा का आनंद लिया जा सकता है। इसके अलावा मॉनसून के दौरान चारों तरफ हरियाली देखने लायक होती है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)