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Meghalaya Whistling Village: अद्भुत है ये, न पहले सुना और न देखा, मेघालय में सीटी गाँव का इतिहास आपके होश उड़ा देगा
Meghalaya Whistling Village History: इस गाँव को भारत में व्हिसलिंग विलेज और सीटी गाँव के नाम से जाना जाता है। जिसके पीछे का कारण यहाँ के लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी की धुन से बुलाते हैं।
Meghalaya Whistling Village History: भारत को गाँव के रहन -सहन, शैली की वजह से जाना जाता है। हर गाँव की अपनी एक कहानी होती है।आज एक ऐसे ही गाँव की बात करेंगें, जहां का रहन सहन अन्य गाँव से एकदम अलग है। यह गाँव भारत के पूर्वोत्तर में स्थित है। इस गाँव का नाम कोंगथोंग है। इस गाँव को भारत में व्हिसलिंग विलेज और सीटी गाँव के नाम से जाना जाता है। जिसके पीछे का कारण यहाँ के लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी की धुन से बुलाते हैं। यहाँ के लोग किसी भी गतिविधियों को करने के लिये सीटी का ही सहारा लेते हैं। यह जगह शिलॉन्ग से 60 किलोमीटर दूर पूर्वी खासी पहाड़ी जिले में है।
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शांतिपूर्ण कोंगथोंग गांव एक खास तरह के आकर्षण की वजह से विश्व भर में फ़ेमस हो रहा है। यह सभ्यता पुरानी है। जिसे आज भी अपनाया जा रहा है। यह गाँव चारो तरफ़ से पहाड़ों और राजसी खरणों और जंगलों के बीच बसा हुआ है। सीटी संस्कृति इस गाँव की शक्तिशाली प्रतीक बन गयी है। इस अनोखी प्रथा को संरक्षित रखने और आधुनिकता में प्रवेश होने से रोकने के लिए यूनेस्को की सूची में मेघालय के कोंगथोंग गांव की विशेषता के लिए दलील दी गई है।
बिहार के सांसद राकेश सिन्हा ने 2019 में इस गांव को गोद लिया था और उन्होंने इसे UNESCO का टैग दिए जाने का सुझाव भी सरकार तक पहुंचाया था।शायद ये आपने किसी भी गाँव की शैली में नहीं सुना होगा जो कोंगथोंग गाँव की परम्परा है।
इसके पीछे का कारण जानना चाहे तो ऐसा कहा जाता है कि पीढ़ियों से यहां कोई जब बच्चा पैदा होता था लोग उसके नाम नहीं देते थे, बल्कि मां उसके लिए कोई धुन बनाती है। और आगे चल कर ये ही धुन उस बच्चे की नई पहचान बन जाती है। सड़क के किनारे चलते समय आपको हूट और सीटी की कई आवाजें सुनाई देंगी। इस गाँव के लोग एक दूसरे से बात करने के लिए सीटी का ही सहारा लेते हैं। गांव वाले इस धुन को जिंगरवाई लवबी कहते हैं। इस गांव के लोग शर्मीले होते हैं, और बाहरी लोगों के साथ बहुत जल्दी घुल मिल नहीं पाते। आपको बता दें कि इस परंपरा की शुरुआत कहां से हुई इस बात को कोई नहीं जानता है।
यह जानना चाहिए कि कोंगथोंग में सीटी बजाना कोई फैशन नहीं बल्कि यह स्थानीय संस्कृति का हिस्सा है।आपकी जानकारी के लिए बता दें सीटी बजाने की धुन में पशु और पक्षियों की आवाज भी शामिल है।ताकि पशु , जीव -जंतु विभिन्न धुनों से परेशान न हों ।
इस गांव की एक और दिलचस्प बात यह है कि यहाँ जितने लोग हैं उतनी ही धुन होती है ।कहते हैं इस गांव में 600 से ज्यादा लोग रहते हें। इसका मतलब है कि एक समय में यहां 600 से ज्यादा धुनें सुनी जा सकती हैं।बच्चे के जन्म के बाद उसके आसपास के वयस्क उस धुन को लगातार गुनगुनाते रहते हैं, ताकि उसकी पहचान इस ध्वनि से हो जाए।
जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो यह धुन जिसे जिंगरवाई लॉबेई के नाम से भी जाना जाता है, उनके जीवन का हिस्सा बन जाती है। हालांकि हर किसी का नाम हमारे जैसा ही होता है, लेकिन मां अपने बच्चों को गाकर या सीटी बजाकर ही बुलाती है। यहाँ तक कि यहाँ धुन या लोरी से ग्रामीण बता सकते हैं कि व्यक्ति किस घर का है।क्योंकि हर घर की अलग धुन होती है ।
ऐसा भी कहा जाता है कि जंगल में भूत और आत्मा का वास है। अगर वे किसी का नाम पुकारते और सुनते हैं, तो वह उस व्यक्ति पर अपना बुरा जादू कर देंगे। इसलिए इन धुनों से लोगों की रक्षा की जाती है। अपने यहां चलने वाली इस अनोखी प्रथा से सभी ग्रामीण बहुत खुश हैं और इसका पालन करते हुए दिखाई देते हैं।यहां रहने वाले हर व्यक्ति की धुन उसकी मां अपने बच्चे के जन्म के बाद ही तैयार कर देती है। अगर किसी ग्रामीण की मौत हो जाए तो वह धुन भी उसी व्यक्ति के साथ हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।