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Navratri Special: कानपुर में शक्ति साधना के ये हैं पौराणिक नवपीठ मंदिर, जहां लगता है भक्तों का रैला
Navratri Special: कानपुर के दक्षिण भाग में जुही मोहल्ले में भगवती बारा देवी का मन्दिर भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र है। आचार्य सोमदत्त बाजपेयी के श्री वाराही देवी स्तोत्रम के मुताबिक, वाराही देवी भगवान वाराह की अधिष्ठात्री शक्ति है।
Navratri Special: जगतजननी मां भगवती विश्व में अनेकानेक या असंख्य नामों व रूपों से अर्चित है। यही कारण है कि भगवती मां अपने भक्तों के प्रति करुणा, ममता और वात्सल्यमयी दया से कृपा दृष्टि बनाये रखती हैं। कानपुर जनपद भगवती की अर्चना व उपासना के केंद्र बहुत से शक्तिपीठ हैं। इसमें कुछ नव शक्तिपीठों का वर्णन प्रस्तुत है। इन पीठों में नवरात्रि के दिनों में भक्ता का रैला उमड़ता ही है, आम दिनों में भी मंदिरों में काफी भीड़ रहती है।
माँ तपेश्वरी देवी, बिरहाना रोड
रामायण कालीन इतिहास को समेटे भगवती तपेश्वरी देवी का मन्दिर कनपुरियों की श्रद्धा व आस्था के प्रमुख शक्तिपीठों मे उर्ध्व स्थान पर है । मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवती सीता अयोध्या से निर्वासित हो कर ब्रह्मावर्त (बिठूर) में महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में प्रवास किया था। उसी समय अरण्यविहार के दौरान भगवती सीता ने जिन ईश्वरी देवी को प्रतिष्ठित कर तप व साधना की थी, उन्हें ही बाद मे माँ तपेश्वरी देवी की संज्ञा भक्तों द्वारा दी गयी । एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवती पार्वती जब अपने कठोर तप से ईश्वर (शिव) को प्राप्त किया, तब उन्हें भी भगवती तपेश्वरी नाम मिला। एक कथा प्रचलित है कि बर्रा गांव के लठुआ बाबा की बारह कन्याएं थी। जिसमें सबसे बड़ी जुही की बारा देवी थी, उनके विवाह के समय पिता के अनुचित व्यवहार अप्रसन्न हो सभी बहनें पाषाण हो गईं। उनमें से तपेश्वरी देव, मां बुद्धा व जंगली देवी हैं। कानपुर का इतिहास, भाग-1 (1950 ई ) के मुताबिक "पटकापुर की ग्राम देवी तपेश्वरी देवी है, जिनके मन्दिर की गणना शहर के प्रसिद्ध देवस्थानों मे है। तपेश्वरी देवी के मंदिर मे पहले प्रतिमा के स्थान पर चक्की के पाट के टूटे हुए भाग रक्खे रहते थे और लोग उन्ही का पूजन करते थे। इन पाटों की पूजा से यह प्रकट होता है कि यह मन्दिर एक गांव का मन्दिर था और बहुत प्राचीन है। पहले इसमें बकरों की बलि चढ़ाई जाती थी।
कानपुर शहर मे भगवती तपेश्वरी देवी के प्रति लोक में बहुत आस्था व श्रद्धा का भाव हैं। उक्त पीठ शहर का जीवन्त सिद्ध व जाग्रत शक्तिपीठों मे शुमार है। वासन्तिक व शारदीय नवरात्रों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और भारी मेला भी जुड़ता है ।
भगवती बारा देवी, जुही
कानपुर के दक्षिण भाग में जुही मोहल्ले में भगवती बारा देवी का मन्दिर भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र है। आचार्य सोमदत्त बाजपेयी के श्री वाराही देवी स्तोत्रम के मुताबिक, वाराही देवी भगवान वाराह की अधिष्ठात्री शक्ति है। सम्भव है कि श्री वाराही देवी का अपभ्रंश बारा देवी नाम से है। जनमान्यता के मुताबिक बर्रा गांव के लठुआ बाबा के बारह कन्याएं थी और उनमे से यह सबसे बड़ी थी । पिता ने इनका विवाह अर्रा गांव मे तय कर दिया और बारात भी बड़े धूमधाम से आई। मंगलगीत भी गाये गए। भांवरों के समय पिता के अनुचित व्यवहार से कुपित हो अपनी तपश्चर्या से पाषाण की हो गई । मान्यता है कि जुही मे सात बहनें पूजित है । कानपुर का इतिहास, भाग-1 (1950) के मुताबिक, पहले बाराह देवी खटिकों की देवी थी और इन पर सुअरों की बली दी जाती थी। वर्तमान में मन्दिर परिसर मे कई अन्य देव मन्दिर भी है । नवरात्रि पर्व मे जवांरा भी चढ़ते है और भारी मेला भी लगता है, जो महीनो तक चलता है। इस प्रकार उक्त शक्तिपीठ के प्रति लोक मे बहुत आस्था व श्रद्धा है।
भगवती बुद्धा देवी, जनरलगंज
कानपुर के खोयाबाज़ार-छप्पर मोहाल में स्थित भगवती बुद्धा देवी का मन्दिर ज्ञानदायिनी मां के साधकों व भक्तों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। मन्दिर की प्रधान प्रतिमा के स्थान पर कुछ प्रस्तर खंडितावशेष व एक द्वारशाखा है। दीवार पर भी एक प्रतिमा धात्विक पट्ट पर उत्कीर्णित है। मन्दिर परिसर में कई अन्य देव मन्दिर भी है ।
मन्दिर के संदर्भ मे कहा जाता है कि इसकी स्थापना जनरलगंज के लाला बद्रीप्रसाद अग्रवाल ने कराया था। पहले उस स्थान पर एक बगीचा व तालाब था, जिसे लाला बद्रीप्रसाद ने खरीद लिया और बुद्धू माली को देखभाल की जिम्मेदारी सौंप दी। बुद्धू माली कहीं से यह मूर्तियाँ लाकर बगीचे मे रख पूजने लगा। बाद में बद्रीप्रसाद भी नियमित पूजन करने लगे। लाला जी के कोई सन्तान नही थी। इसी बीच उन्हें सन्तान प्राप्ति हुई। फिर क्या था लाला जी की देवी जी के प्रति और अधिक श्रद्धा बढ़ गई बाद में भगवती ने स्वप्न देकर मन्दिर बनवाने का निर्देश दिया। लाला जी ने सन 1936 मे बगीचे देवी जी का मन्दिर बनवाया, लेकिन बुद्धू माली द्वारा स्थापित देवी प्रतिमा के कारण वह बुद्धा देवी के नाम के प्रसिद्ध हुईं। मन्दिर में पूजन व कर्ताधर्ता आज भी बुद्धू माली के वंशज ही है। वर्तमान मे मन्दिर की देखभाल श्री बुद्धा देवी महारानी ट्रस्ट करता है जिसके संचालक लाला जी के वंशज हैं। मान्यता है कि भगवती बुद्धा देवी अपनी पाँच बहनों के साथ विराजमान है । बुधवार को ब्रत व पूजन के साथ सब्जियों को चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होने की जन्मान्यता है।
भगवती कूष्माण्डा देवी, घाटमपुर
दुर्गासप्तशती मे आदि शक्ति के जिन रूपों व नामों का वर्णन है उनमे " कूष्माण्डेति चतुर्थकम। कानपुर जनपद के घाटमपुर कस्बे के पूर्वी भाग मे भगवती कूष्माण्डा देवी का मन्दिर है। कानपुर का इतिहास भाग-1 में इस मन्दिर का उल्लेख कुड़हा देवी मन्दिर के रूप मे मिलता है। भगवती के चौथे रूप कूष्माण्डा की प्रधान प्रतिमा लेटी हुई है, जिसमे दोनों ओर सिर है और उदर एक है जिसके केन्द्र मे नाभि भाग उत्कीर्णित है।
मान्यता है कि इस स्थान पर सघन अरण्य था और कुड़हा नामक ग्वाला रोज गायों को चराने आता था। एक गाय जब शाम को दूध नहीं देने लगी तो कुड़हा ने पड़ताल की और पाया कि गाय एक स्थान पर दूध छोड़ देती है। कुड़हा ने उस स्थान को साफ कर खुदाई की तो भगवती कूष्माण्डा की प्रतिमा मिली। कुड़हा ने उसी स्थान पर चबूतरा बना कर देवी प्रतिमा को स्थापित कर दिया और इस प्रकार कुड़हा द्वारा स्थापित होने के कारण लोक मे कुड़हा देवी के नाम से वह प्रसिद्ध हुई। घाटमपुर के संस्थापक घाटमदेव जी भगवती कूष्माण्डा के परम भक्त थे और उन्होनें उन्हे अपनी कुलदेवी के रूप मे स्वीकार किया। मन्दिर का निर्माण चन्दीदीन भुर्जी ने संवत 1947 मे कराया। वर्तमान मे माँ कूष्माण्डा ज्योति समिति व नवयुवक संघ आरती व सौंदर्यीकरण के कार्यो का सम्पादन कराया। मन्दिर से सटा हुआ कूष्माण्डा सरोवर है। देवी कूष्माण्डा के चरणोद्क से नेत्रविकार दूर होने की भी मान्यता है ।
भगवती जंगली देवी, किदवई नगर
भगवती जंगली देवी अर्थात वनश्री देवी को भगवती सीता (वनदेवी ) ने ब्रह्मावर्त क्षेत्र प्रवास में पूजित व अर्चित किया, यह श्रद्धालुओ का मत है। कानपुर के किदवई नगर के एम ब्लॉक में स्थित जंगली देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। वर्तमान मन्दिर अयोध्या के लब्धप्रतिष्ठ सन्त बाबा राममंगलदास ने ध्यानशक्ति की प्रेरणा से जाग्रत विग्रह की स्थापना की गई।
बगाही, बाकरगंज के मो बाकर द्वारा भवन निर्माण के दौरान खुदाई मे एक ताम्रपट्ट वर्ष 1925 मे प्राप्त हुआ जो पुरातत्व विभाग लखनऊ मे संरक्षित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डॉ बुद्धिरश्मि मणि व इन्दुधर द्विवेदी के मुताबिक, सन 1925 मे कानपुर के निकट बराह नामक गांव से नागभट्ट के पौत्र भोजदेव प्रथम (मिहिरसेन) का एक ताम्रपत्र लेख प्राप्त हुआ था जिस पर तिथि संवत् 893 दी हुई है। अभिलिखित ताम्रपट्ट के मुताबिक, देवी भक्त महोदय (कन्नौज) के महाराजा भोजदेव कभी इस भूभाग से निकले और वनश्री देवी की मनमोहक मूर्ति को देख मन्दिर बनवाया और मन्दिर के संचालन के लिए दान व ताम्रपट्ट पुजारी को प्रदान किया
भगवती काली देवी, कानपुर हरजेंद्र नगर
भगवती परमाम्बा के विविध नाम व रूप साधकों के मध्य प्रचलित हैं। इसमें से भगवती का एक रूप काली का भी है। इस रूप मे उपासना सर्वाधिक बंग समाज मे प्रचलित हैं। कानपुर मे बंग समाज का पहला परिवार 1783 मे चन्द्रनगर से श्रीकृष्णचन्द्र मजूमदार का आया और जहां बसा वह बंगाली मोहाल व 1857 मे बंगाली किला कहलाया। मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व कोलकाता के एक भक्त मुखर्जी परिवार को देवी जी का स्वप्न आया कि वह अब कानपुर जा रही हैं। भक्त मुखर्जी व्याकुलता में कोलकाता से कानपुर को पैदल चल दिए और कई माह बाद कानपुर आ पाए। यहां पर उन्हें एक महात्मा जी से भेंट हुई। महात्मा जी ने स्नान कर भगवती काली के पूजन का निर्देश दिय़ा। भक्त मुखर्जी महाशय ने कहा मैं पूजन विधि नहीं जानता हूँ तो महात्मा जी ने कहा "-एइतो माएर पूजो कुर्ते पारिस एमोन भाबेई मायर पूजो कोर्बी "(जैसे मां की पूजा करते हो, इसी तरह ही मां की पूजा करना)। इसके बाद जब मुखर्जी गंगा स्नान कर लौटे तो उन महात्मा जी की काफी खोज की, लेकिन वह नहीं मिले। यहाँ पर भगवती काली की दक्षिणाभिमुख विशाल मूर्ति है। कालीबाड़ी में लोग मनौती के लिए ताला लगाते हैं और पूर्ण होने पर उसे खोलते हैं। मंदिर परिसर में सैकड़ों ताले टंगे हैं।
भगवती मुक्ता देवी,मूसानगर
भगवती सती द्वारा देहत्याग करने पर भावावेश में भगवान शिव जी सती का पार्थिव शरीर कन्धे पर लेकर भटकने लगे। चिन्तित देवो के कहने पर भगवान विष्णु ने चक्र छोड़ कर अंगों का वेधन किया और वो अंग जहां गिरे वह शक्तिपीठ कहलाए। प्राचीन मकोट आज का मूसानगर है, जहां पर भगवती मुक्ता देवी विराजमान हैं। कानपुर का इतिहास भाग 1 के अनुसार, मूसानगर का पुराना नाम अवश्य मुक्तापुर रहा होगा, क्योँकि यहां मुक्ता-देवी का एक अत्यन्त प्राचीन मन्दिर है। जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण त्रेतायुग में राजा बलि ने किया था। मराठों के समय में पेशवाओं के पारिवारिक पुरोहित श्री पंडित गंगाधर ने मन्दिर का जीर्णोद्धार किया और कुछ नई इमारत बनवाई । मन्दिर मे छोटे से द्वार से प्रवेश करने पर गर्भगृह मे मुक्ता देवी की प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर के पीछे एक यक्ष की प्रतिमा है।
भगवती आशा देवी, कल्याणपुर
कानपुर के पश्चिमी भाग में कल्याणपुर उपनगर में अधिष्ठात्री शक्ति आशा माई जी का शक्तिपीठ विद्यमान है। यहां पर आशा माई खुले आसमान के नीचे प्रवास करती हैं। मन्दिर की छत डालने के कई प्रयास हुए, लेकिन छत नहीं पड़ने दी। भगवती आशा देवी के नाम पर बहुत से मूर्तियों के खंडितवशेष पूजित व अर्चित हैं। आशा माई के नाम से एक लगभग पांच फिट लंबी शिला का पूजन होता है। परिसर मे दसवीं से पंद्रहवीं शती तक के मूर्ति खण्ड रखे हुए हैं।