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Parda Pratha Ka Itihas: कैसे एक दूसरे देश की प्रथा ने जमाई भारत में अपनी जगह

Parda Pratha Ka Itihas Wikipedia: क्या आप जानते हैं कि भारत में पर्दा प्रथा की शुरुआत कब हुई और आज के समय में देश के अलग अलग हिस्सों में क्या है इसकी स्थिति।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 12 Dec 2024 8:58 AM IST
Parda Pratha Ka Itihas
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Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

Parda Pratha Ka Itihas Wikipedia: हम बात कर रहे हैं , पर्दा प्रथा की। पर्दा प्रथा का इतिहास और उसकी उत्पत्ति विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, यह मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप, खासकर मुस्लिम और हिंदू समाजों में प्रचलित रही है। पर्दा प्रथा का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा, उनकी शुद्धता और उनकी सामाजिक स्थिति को बनाए रखना बताया गया। लेकिन इसके पीछे पुरुषों की स्त्री पर नियंत्रण और पितृसत्ता का भी बड़ा हाथ था।

पर्दा (फारसी शब्द) का अर्थ ‘ढकना’ होता है, और यह इस्लाम से जुड़ा हुआ शब्द है। भारतीय उपमहाद्वीप में पर्दा प्रथा की जड़ें फारसी संस्कृति और इस्लामिक समाजों में पाई जाती हैं। मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले बुर्के की दो प्रमुख शैलियाँ हैं: एक जिसमें पूरा शरीर ढका जाता है, और दूसरी जिसमें केवल सिर और चेहरा ढका जाता है।

इतिहास:

प्रारंभिक समय (प्राचीन और मध्यकालीन भारत):

प्राचीन भारत में स्त्रियों का जीवन अपेक्षाकृत स्वतंत्र था। हिन्दू धर्म में भी स्त्रियों के लिए कुछ सीमाएं थीं। लेकिन वे समाज के विभिन्न पहलुओं में सक्रिय रूप से शामिल थीं। हालांकि, समय के साथ पुरुषों के प्रभुत्व के कारण महिलाओं पर कई तरह की बंदिशें लागू की गईं।ऋग्वेद काल में महिलाएं सार्वजनिक जीवन का हिस्सा थीं और शादी के समय कन्या की मुंह दिखाई एक महत्वपूर्ण प्रथा थी। इसमें महिलाएं खुले सिर से और बिना किसी बाधा के समाज में भाग लेती थीं। ऋग्वेद के मंत्र में भी इसका उल्लेख मिलता है। जो इस बात का प्रमाण है कि उस समय महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा नहीं थी।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

मुगल काल में, जब भारत में इस्लाम का प्रभाव बढ़ा, तब पर्दा प्रथा को एक सामाजिक और धार्मिक आवश्यकता के रूप में पेश किया गया। मुगलों के दरबारों में महिलाओं के लिए पर्दे में रहना एक सामान्य बात बन गई। यह प्रथा शाही परिवारों और उच्च जातियों के बीच विशेष रूप से प्रचलित हुई।

पारंपरिक समाज में, यह प्रथा विशेष रूप से उच्च जाति और संपन्न परिवारों की महिलाओं में अधिक प्रचलित थी, ताकि वे समाज में अपनी शुद्धता और सम्मान बनाए रख सकें।

औपनिवेशिक काल:

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

ब्रिटिश शासन के दौरान, पर्दा प्रथा को भारतीय समाज में एक कुरीति के रूप में देखा गया। इसे सुधारने के प्रयास किए गए। हालांकि, इस दौरान भी कई जगहों पर यह प्रथा जारी रही।

स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलन:

19वीं और 20वीं शताब्दी में, सामाजिक सुधार आंदोलनों ने पर्दा प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। महान समाज सुधारकों जैसे राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद और मुहम्मद अली जिन्ना ने पर्दा प्रथा और महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाए।

महात्मा गांधी ने महिलाओं के लिए समानता और स्वतंत्रता की बात की। उन्होंने महिलाओं को पर्दे से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया।

भारत में पर्दा प्रथा -

पर्दा प्रथा का भारत में आगमन इस्लाम के माध्यम से हुआ। हालांकि, इस्लाम से पहले भी भारतीय समाज में महिलाओं के लिए सामाजिक बंदिशें थीं। विशेष रूप से हिंदू समाज में, महिलाएं सार्वजनिक जीवन से बाहर रखी जाती थीं, और उन्हें अपनी शुद्धता बनाए रखने के लिए घरों तक सीमित किया जाता था। भारत में 12वीं सदी से पर्दा प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ, जब इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना हुई और साम्राज्य के शाही परिवारों ने महिलाओं के लिए पर्दे की परंपरा को अपनाया।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

वर्तमान (समाज में पर्दा प्रथा):

आज के समय में, पर्दा प्रथा का प्रचलन भारत और अन्य देशों में विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न रूपों में देखा जाता है।

भारत:कुछ हिस्सों में, खासकर ग्रामीण इलाकों और कुछ मुस्लिम और हिंदू समुदायों में, पर्दा प्रथा अब भी कायम है। कई जगहों पर यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा के रूप में पालन की जाती है, जहां महिलाएं सार्वजनिक जीवन से खुद को अलग रखने के लिए पर्दा करती हैं।महानगरों और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और कामकाजी जीवन के साथ पर्दा प्रथा का असर कम हुआ है। हालांकि, कुछ परिवारों में यह परंपरा अभी भी प्रचलित है।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

मध्य-पूर्व और अन्य मुस्लिम देशों में:

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और कुछ अन्य देशों में भी पर्दा प्रथा (जो हिजाब या चादर पहनने के रूप में होती है) एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक आदत है। इन देशों में इसे धार्मिक आवश्यकताओं के रूप में देखा जाता है, हालांकि यह परंपरा सामाजिक दबाव और पुरुष प्रधान समाज के कारण प्रचलित है।

पश्चिमी दुनिया में:

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

पश्चिमी देशों में, जहां महिलाओं को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार प्राप्त है, पर्दा प्रथा का प्रभाव बहुत कम है। हालांकि, कुछ मुस्लिम समुदायों में महिलाओं को हिजाब पहनने की अनुमति दी जाती है। यह एक व्यक्तिगत और धार्मिक पसंद के रूप में माना जाता है।

राजसी और कुलीन वर्ग की महिलाएं सार्वजनिक रूप से पर्दा प्रथा छोड़ने वाली पहली महिलाएं थीं। इसके बाद 1940 तक यह प्रथा बड़े हिस्से में समाप्त हो गई। लेकिन, आज भी यह प्रथा कुछ क्षेत्रों और समुदायों में सीमित रूप से प्रचलित है।

पर्दा प्रथा: सुरक्षा या दबाव

कुछ समाजों में इसे महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। जबकि, कुछ आलोचक इसे महिलाओं की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और पुरुष प्रधानता का प्रतीक मानते हैं। कई विद्वान इसे महिलाओं के उत्पीड़न से बचाने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी मानते हैं, जबकि अन्य इसे नारी की स्वतंत्रता की बाधा के रूप में देखते हैं।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

वर्तमान समय में पर्दा प्रथा:

समाज में महिलाओं का स्थान बदलने के साथ, पर्दा प्रथा की प्रासंगिकता और आवश्यकता में भी बदलाव आया है। शहरीकरण, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के विचारों के साथ, यह प्रथा अब कम हो रही है। हालांकि, कुछ मुस्लिम देशों और भारत के ग्रामीण हिस्सों में यह आज भी प्रचलित है।

पर्दा प्रथा एक समय की सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा थी, जो धीरे-धीरे बदलते समय के साथ न केवल व्यक्तिगत चुनाव बल्कि सामुदायिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण समाप्त हो रही है। हालांकि, कुछ जगहों पर यह अभी भी एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा के रूप में जीवित है।

बुर्का या घूँघट

बुर्का शब्द आमतौर पर पर्दा या घूंघट के रूप में लिया जाता है। लेकिन इसका मतलब केवल एक पहनावे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की भूमिका और स्थान को प्रतिबंधित करने का एक प्रतीक है। यह परंपरा विभिन्न देशों और संस्कृतियों में अलग-अलग रूपों में प्रकट होती है, जैसे जनाना (महिलाओं का अलग रहना), बुर्का/चादर (कपड़े से ढकना), और घूंघट (चेहरे को ढंकना)। ये सब उदाहरण महिलाओं के सार्वजनिक और निजी जीवन में उनके अधिकारों और पहुंच को सीमित करने का संकेत हैं।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

घूंघट और पर्दा दोनों ही हिंदू और मुस्लिम समाजों में प्रचलित हैं। लेकिन संदर्भ में दोनों का उद्देश्य अलग था। जहां एक ओर मुस्लिम समाज में पर्दा महिलाओं की सुरक्षा के उपाय के रूप में था, वहीं हिंदू समाज में यह महिलाओं की अधीनता और परिवार में पुरुषों की सर्वोच्चता को प्रदर्शित करने का तरीका था। इन प्रथाओं ने समाज में महिलाओं की स्थिति, उनके कार्यक्षेत्र और उनकी स्वायत्तता पर अंकुश लगाया।

भविष्य:जैसे-जैसे शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार के प्रयास बढ़ते जाएंगे, पर्दा प्रथा का प्रभाव कम होता जाएगा। महिलाएं समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त करेंगी और उन्हें अपनी आज़ादी और स्वतंत्रता का अधिकार मिलेगा।शहरीकरण, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के विचार के साथ, यह संभावना है कि आने वाले समय में पर्दा प्रथा का प्रचलन और कम होगा।हालांकि, कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों में पर्दा प्रथा कायम रह सकती है, क्योंकि यह एक व्यक्तिगत और धार्मिक विश्वास का हिस्सा हो सकता है। यह संभव है कि धार्मिक समाजों में महिलाएं पर्दा करने को अपनी पहचान और विश्वास के हिस्से के रूप में स्वीकार करें।भारत में, जहां संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता दी है, यह उम्मीद की जाती है कि समय के साथ-साथ महिलाओं को उनकी पसंद और अधिकारों के मामले में पूरी आज़ादी मिलेगी, जिससे पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों पर रोक लगेगी।

भारत के इन राज्यों में आज भी पर्दा प्रथा:

भारत में पर्दा प्रथा सबसे ज्यादा उत्तर भारत के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, और बिहार में अपनाई जाती है। ये क्षेत्र पारंपरिक रूप से अधिक सख्त सामाजिक संरचनाओं और पुरानी प्रथाओं से जुड़े हुए हैं, जहां महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से अलग रखा जाता है और घूंघट या पर्दा पहनने की परंपरा प्रचलित है।

Parda Pratha Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

1. राजस्थान:राजस्थान में पर्दा प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है, खासकर राजपूत समाज में। यहां के राजघरानों और शाही परिवारों में पर्दा प्रथा का पालन सख्ती से किया जाता था। रानी पद्मावती की कथा, जहां महिलाओं ने सम्मान की खातिर सती प्रथा अपनाई, इसी क्षेत्र से संबंधित है। यह प्रथा गांवों में भी व्यापक रूप से देखी जाती है। महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर घूंघट या पर्दा पहनकर जाती हैं।

2. उत्तर प्रदेश:उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, खासकर ग्रामीण इलाकों में, पर्दा प्रथा का पालन होता है। यहां की कई ग्रामीण महिलाएं घर से बाहर निकलने पर घूंघट या पर्दा पहनती हैं, खासकर जब वे पुरुषों के बीच होती हैं। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में इस परंपरा में बदलाव आया है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह अब भी प्रचलित है।

3. हरियाणा:हरियाणा में भी पर्दा प्रथा का पालन किया जाता है, खासकर गांवों में। यहां महिलाएं पारंपरिक रूप से सार्वजनिक स्थानों पर घूंघट पहनती हैं। यह प्रथा वहां के समाज में महिलाओं के सम्मान और पारिवारिक स्थिति से जुड़ी हुई है।

4. पंजाब:पंजाब में भी पर्दा प्रथा का पालन खासकर पुराने समय में होता था। हालांकि, शहरीकरण और शिक्षा के कारण अब यह प्रथा कम हो गई है। लेकिन कुछ गांवों और पारंपरिक परिवारों में इसका पालन आज भी किया जाता है।

5. बिहार:बिहार के कुछ इलाकों में, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाएं पर्दा का प्रयोग करती हैं। यहां की कुछ जातीय और सामाजिक समूहों में यह परंपरा आज भी प्रचलित है।

हालांकि, समय के साथ पर्दा प्रथा में बदलाव आया है। अब यह अधिकतर शहरी क्षेत्रों में कम हो गई है। लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में यह अभी भी महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनी हुई है।

आज के समय में, पर्दा प्रथा का मतलब उत्पीड़न, सुरक्षा या सशक्तिकरण के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह भी समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता पर नियंत्रण का प्रतीक बन चुकी है। यह प्रथा न केवल महिलाओं के पहनावे के रूप में बल्कि उनके समाज में स्थान और भूमिका को सीमित करने के रूप में भी महत्वपूर्ण रही है। इसके बावजूद, यह एक विवादास्पद विषय बना हुआ है, जो अभी भी सामाजिक और राजनीतिक चर्चाओं का हिस्सा है।

पर्दा प्रथा एक जटिल सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथा है, जिसका उत्पत्ति समय, स्थान, धर्म, और समाज के विभिन्न तत्वों से जुड़ी हुई है। आज भी यह प्रथा भारत और अन्य देशों में विभिन्न रूपों में प्रचलित है। लेकिन जैसे-जैसे समाज में बदलाव आ रहे हैं, महिलाओं के अधिकारों की बढ़ती मांग और समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं, पर्दा प्रथा का भविष्य धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ सकता है।



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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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