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Pavagadh Mata ji Temple: माता काली के इस धाम में उमड़ती है भक्तों की भीड़, जानें पावागढ़ का इतिहास
Pavagadh Kali Mata ji Temple History: वडोदरा के पास माता काली का प्रसिद्ध पावागढ़ धाम मौजूद है। यहां बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। चलिए आज हम आपको यहां का इतिहास बताते हैं।
Pavagadh Kali Mata ji Temple: गुजरात के वडोदरा से 46 किलोमीटर दूर पावागढ़ की चोटी पर मां काली के देवी रूप में दर्शन होते हैं। यह कवन शक्तिपीठों में से एक है और यहां 3500 फीट ऊंचे पहाड़ की चोटी पर माता काली का दरबार सजा हुआ है। पावागढ़ के दर्शन करने के लिए दुनिया भर के भक्त पहुंचते हैं। भक्ति की गंगा यहां सालों से बहती चली रही है। लाख लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और माता से मनोकामना मांगते हैं। जब मन्नत पूरी हो जाती है तो लोग यहां अपनी बोली गई बात पूरी करने भी पहुंचते हैं।
ऐसा है पावागढ़ इतिहास (History Of Pavagadh)
कालिका माता का मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले के पावागढ़ में पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर के शिखर को 15 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारी सुल्तान महमूद बेगडा द्वारा चम्पानेर पर हमले के दौरान ध्वस्त कर दिया गया था। इसके साथ ही वहां पीर सदनशाह की दरगाह बनाई गई। चूंकि मंदिर के शीर्ष पर दरगाह प्रबंधन का कब्जा था। यही कारण है कि इतने वर्षों तक वहां कोई शिखर या स्तंभ स्थापित नहीं किया जा सका, ताकि मंदिर का चिह्न फहराया जा सके। कई दौर की बातचीत के बाद दरगाह कमेटी के अधिकारियों ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए मंदिर के ऊपरी शिखर को खाली करा दिया। जिसके बाद वहां झंडा फहराने के लिए पिलर लगाने का रास्ता साफ हो गया था। इसके साथ ही यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है।
मां कालिका माई मंदिर का इतिहास (History of Maa Kalika Temple)
पावागढ़ और यहां स्थापित मां कालिका माई मंदिर का इतिहास बहुत जहरीला रहा है, क्योंकि 15 वीं सदी में इस क्षेत्र में राज करने वाला क्रूर मुग़लियां सुल्तान मेहमूद बेगड़ा भी जहरीला था। ऐसा कहा जाता है कि मेहमूद बेगड़ा के थूंक में भी इतना जहर था कि मात्र उसके थूंकने से सामने वाले की मौत हो जाती थी. आज हम आपको आक्रांता मेहमूद बेगड़ा और उसके द्वारा नष्ट किए गए मां कालिका मंदिर का इतिहास बताने वाले हैं। मेहमूद बेगड़ा गुजरात का छठा मुग़लिया सुल्तान था, उसका असली नाम अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम था। जब वो सिर्फ 13 साल का था उसने गुजरात की गद्दी संभाल ली थी। सन 1459 से लेकर 1511 तक मतलब 52 साल उसने गुजरात में राज किया और इस दौरान गुजरात की जनता पर हर दिन हर पल कहर बरपाता रहा।
ऐसी है पावागढ़ की पौराणिक कथा (Mythological Story of Pavagadh)
यह बात 11 वीं सदी की है, गुजरात के पावागढ़ में हिन्दू राजाओं ने एक पहाड़ की चोटी पर विशाल महाकाली मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसी कहानियां हैं कि पावागढ़ में ही भगवान श्री राम के पुत्रों लव-कुश को मोक्ष प्राप्त हुआ था और यहीं ऋषि विश्वामित्र ने माता काली की कठोर तपस्या की थी। सन 1472 में जब मेहमूद बेगड़ा की नज़र पावागढ़ कलिका मंदिर पर पड़ी तो उसने तुंरत मंदिर तोड़ यहां इस्लामिक ढांचा तैयार करने का फरमान सुनाया। मतलब आज से 500 साल पहले मेहम्मूद बेगड़ा ने हिन्दू मंदिर को नष्ट कर दिया था। पावागढ़ कालिका मंदिर को तोड़कर उसने मंदिर के शिखर पर इस्लामिक गुंबद बनाकर उसे सदनशाह दरगाह नाम दिया था। मेहमूद बेगड़ा के मरने के बाद 15 वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था लेकिन अबतक उस मंदिर को सदनशाह दरगाह के नाम से ही जाना जाता था।