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Prayagraj Zero Road History: ब्रिटिश काल की यातायात व्यवस्था का जीता जागती मिसाल हैं प्रयागराज स्थित ये रोड
Prayagraj Zero Road History Wikipedia: आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ज़ीरो रोड से जुड़ी अलग-अलग कहानियां लोगों के बीच चर्चा में बनी हुईं हैं।
Prayagraj Zero Road History: समूचे देश में गलियों और सड़कों के नाम इतने अजूबे हैं साथ ही इन नामों के पीछे इतने किस्से छिपे हैं कि इन पर एक मोटी किताब लिखी जा सकती है। इसी कड़ी में प्रयाग राज की एक सड़क का भी नाम आता है। जीरो रोड नाम से मशहूर इस रोड को ब्रिटिश काल में यातायात व्यवस्था में बहुत बड़े रोल मॉडल के तौर पर माना जाता था। प्रयागराज से दूसरे शहरों की दूरी यहीं से निर्धारित होती थी। इस रोड को लेकर इतिहासकारों के मत के अनुसार आजादी से पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत में दूरी की गणना मील से की जाती थी। प्रयागराज शहर का मध्य भाग होने के कारण उस समय इस सड़क पर जीरो मील का पत्थर लगाया गया था, जिसके कारण इस सड़क को ब्रिटिश हुकूमत में जीरो रोड कहा जाता था। आजाद भारत में इस सड़क का नामकरण इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष रहे केपी कक्कड़ के नाम पर किया गया था। लेकिन आज भी लोग इसे इसके पुराने नाम से ही जानते हैं। किसी भी शहर में सड़क का नाम आमतौर पर किसी बड़ी हस्ती के नाम पर रखे जाने का चलन है । लेकिन प्रयागराज जैसे पुराने शहर में मौजूद जीरो रोड नाम से मशहूर इस सड़क का नाम लोगों के बीच अक्सर जिज्ञासा का विषय बन जाता है। यहां तक कि हिन्दी की प्रख्यात कथा-लेखिका नासिरा शर्मा का नवीनतम उपन्यास भी ’ज़ीरो रोड’ पर आधारित है। इसका कथानक इलाहाबाद के ठहरे और पिछड़े मोहल्ले ’चक’ से शुरू होकर दुबई जैसे अत्याधुनिक व्यापारिक नगर की रफ़्तार की ओर ले जाता है।
आइए जानते हैं प्रयागराज में मौजूद इस मशहूर सड़क से जुड़े रोचक किस्से के बारे में -
इस तरह पड़ा इस सड़क जा नाम जीरो रोड
कुतूहल का विषय है कि आखिर अंकों से जुड़ी संख्या से इस सड़क का नाम क्यों रखा गया?तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ज़ीरो रोड से जुड़ी अलग-अलग कहानियां लोगों के बीच चर्चा में बनी हुईं हैं। जिसके अनुसार अंग्रेज़ों के समय में दूरी ’मील’ में तय की जाती थी। यह शहर का मध्य भाग यानी के बीचोबीच होने के कारण उस समय इस सड़क पर एक मील का पत्थर लगाया गया था, जिस पर ज़ीरो रोड अंकित था।
अंग्रेजों द्वारा यहीं से शहर की परिधि का सीमांकन किया जाता था और तो और प्रयागराज से दूसरे शहर की दूरी इसी ज़ीरो मील पत्थर से निर्धारित की जाती थी। इस सड़क का नाम बाद में बदला भी। पर आज भी यह सड़क अपने पुराने नाम ’जीरो रोड’ से ही जानी जाती है । इस सड़क का नया नाम खाली कागजी कारवाइयों तक ही सीमित है।
जीरो रोड नाम को लेकर दूसरे प्रचलित किस्से
लोगों का मानना था कि 82.5 पूर्वी रेखांश प्रयागराज के इसी स्थान से होकर गुजरती है, जहां से भारतीय मानक के अनुसार समय तय होता है। दरअसल इस रेखा को जीरो की मान्यता दी जाती है।
इसीलिए भी प्रयागराज के बीचोबीच स्थित इस सड़क का नाम जीरो रोड पड़ गया। वहीं इस तर्क के विरोध में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस.आर. सिद्दीकी के अनुसार 82.5 पूर्वी रेखा शहर के पूर्व दिशा में करीब 40 किलोमीटर दूर से गुजरती है।इस तरह से इसका संबंध ज़ीरो रोड बिल्कुल भी माना नहीं जा सकता है।
यहां से शुरू होती है प्रयागराज की ’जीरो रोड’
प्रयागराज में ज़ीरो रोड चौक इलाके में मौजूद है। ब्रिटिश शासन काल में सन् 1905 तक इंटरनेशनल स्टैंडर्ड टाइम जोन को नहीं अपनाया गया था। ऐसे में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (आइएसटी ) का निर्धारण होता था । वर्ष 1972 से पहले माना जाता था कि 82.5 ईस्ट रेखा नैनी से गुजरती है। लेकिन तब आधुनिक उपग्रह और उन्नत जीपीएस नहीं थे।
वर्तमान में यह रेखा मिर्जापुर और प्रयागराज के समीप एक स्थान से गुजरती है। जीरो रोड शहर के घंटाघर के ठीक पहले पुलिस चौकी के पास से शुरु होती है। इसी लंबी चौड़ी सड़क पर ज़ीरो रोड बस अड्डा, अजंता, रूपबानी, चंद्रलोक जैसे पुराने सिनेमा हाल आज भी मौजूद है। मल्टीप्लेक्स के बढ़ते चलन के साथ ये सिनेमा हाल तो अब बंद हो चुके हैं।लेकिन वर्तमान में अब ये एक शॉपिंग काम्प्लेक्स की तरह इस सड़क पर रौनक का सबब बने हुए हैं। ज़ीरो रोड बस अड्डे से मध्य प्रदेश, मिर्जापुर आदि के लिए बसें मिलती हैं।