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Rahasyamayi Shiv Mandir: खुदाई में मिला 355 साल पुराना शिव मंदिर व मठ, यहां आज भी दबे हैं ऐतिहासिक धरोहर के साक्ष्य
Rahasyamayi Old Shiv Mandir: भारत में यहाँ 355 साल पुराना शिव मंदिर व मठ खुदाई में मिला है आइये जानते हैं कहाँ स्थित है ये जगह और कौन से ऐतिहासिक धरोहर के साक्ष्य यहाँ से प्राप्त हुए हैं।
355 Years Old Shiva Temple Found: अनगिनत ऐतिहासिक विरासतों को गर्भ में संजोए नवरत्न गढ़ किला डुमरांव स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इस किले के आस-पास 3 -4 सदियों में नया गांव बस गया इसका नाम भोजपुर रखा गया। यह गढ़ चारों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ों व जंगलों से घिरा है। किले से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है, जिसे बाबा कपिलनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस नवरत्न गढ़ किले को 27 सितंबर, 2019 को राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया गया है। गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित नगर गांव में नागवंशी राजाओं के इतिहास की गाथा बयां करता नवरत्नगढ़ का किला राष्ट्रीय धरोहर में शामिल है। यह किला नागवंशी राजाओं की राजधानी हुआ करता था और आज भी यहां उनके राजमहल, रानी का महल, शिव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, दुर्गा मंदिर, कपीलनाथ मंदिर, तालाब, निगरानी टावर जैसे कई महत्वपूर्ण धरोहर मौजूद हैं।
खुदाई में मिला 355 साल पुराना शिव मंदिर व मठ (355 Years Old Shiva Temple Found During Excavation)
पिछले वर्ष गुमला से 32 किलोमीटर दूर सिसई प्रखंड के नगर गांव स्थित ऐतिहासिक धरोहर नवरत्नगढ़ की खुदाई से 355 साल पुराना शिव मंदिर व मठ मिला है। शिव मंदिर के बीच में प्राचीन शिवलिंग मिला है, जिसकी बनावट अद्भुत है। इस प्राचीन मंदिर को बनाने में सिर्फ पत्थरों का उपयोग किया गया है। सुभद्रा व बलभद्र मंदिर के समीप देवी-देवताओं का वासस्थल भी खुदाई में मिला है। जिसे लोग रास्ता समझ कर हर दिन आना-जाना करते थे। उस रास्ते की खुदाई से कई प्राचीन भवन व नक्काशीदार पत्थर मिले हैं। दो खुफिया दरवाजे भी दिखे हैं, जिसकी खुदाई अभी बाकी है। बताया जा रहा है कि दरवाजे की खुदाई से और मंदिर मिलने की संभावना है या फिर मंदिर के अंदर कोई प्राचीन खुफिया कमरा हो सकता है। खुदाई में नक्काशीदार पत्थर मिला है, जो सुंदर दिखता है। वहीं शिव मंदिर के अंदर जाने के लिए पत्थर से बना मात्र डेढ़ फीट चौड़ा व चार फीट ऊंचा दरवाजा मिला है। बता दें कि पुरातत्व विभाग द्वारा नवरत्नगढ़ की खुदाई की जा रही है। एक साल पहले भी यहां हुई खुदाई में राजा रानी का खुफिया भवन मिला था।
नवरत्नगढ़ का इतिहास (History of Navratnagarh)
ऐतिहासिक तथ्यों से इस बात का साक्ष्य मिलता है कि छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं के सर्वोत्तम कृतियों में से एक नवरत्नगढ़ का किला है। नगर जनश्रुतियों और ऐतिहासिक तथ्यों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि सोलवहीं-सत्रहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार हो रहा था। नागवंशियों के ऊपर आक्रमण की नीतियां बनायी जा रही थी। तब नागवंशी राजा ने अपने धर्म-संस्कृति और साम्राज्य की रक्षा के लिए जंगलों से आच्छादित और पहाड़ों से घिरे नवरत्न गढ़ की स्थापना की। इस नगर के संस्थापक की मृत्यु के बाद समय ने करवट लिया। परिस्थितियों में बदलाव आया और बाद में यहां वीरानगी छाने लगी। नवरत्नगढ़ के इतिहास से पता चलता कि 1633 ई. में राजा रूद्र प्रताप नारायण सिंह ने इसका निर्माण किया इस किले के अंदर 52 गलियां और 56 बराज थे , इस किले पर मुगल शासक की नजर थी और 3 साल के अंदर बिहार का मुगल सूबेदार अब्दुल्ला खान ने इसे ध्वस्त करा दिया। बाद में मुगल शासन काल में सईद खान का पुत्र बेमतखान शाही अमलदार के रूप में भोजपुर आया। इसने भोजपुर का नाम शाहाबाद रखा। 1764 ई. के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इस इलाके पर कब्जा किया।
इसके आज चार हिस्से हैं - आरा , बक्सर , सासाराम और भभुआ। शाहबाद जब विभाजित हुआ उससे पहले तक शाहाबाद -भोजपुर और अब भोजपुर जिला आरा नाम से जाना जाता है। नवरत्नगढ़ का किला पांच मंजिला था, जिसमें प्रत्येक मंजिल पर नौ कमरे बने थे। किले की एक मंजिल जमीन में दब गई है, इसलिए आज यह चार मंजिला दिखाई पड़ता है। यह किला मुगल स्थापत्य कला का पहला उदाहरण माना जाता है, जिसे नागवंशियों ने चूना-सुर्खी, पत्थरों और लाहौरी ईंटों से बनाया था। यह किला 17वीं शताब्दी के आसपास निर्मित हुआ था और भारतीय पुरातत्व संरक्षण के तहत संरक्षित किया गया है।