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Lord Rama in Thailand: इस विदेशी धरती पर भी मौजूद है एक अयोध्या, गरुड़ हैं जहां का राष्ट्रीय चिन्ह

Lord Rama in Thailand Ayutthaya: थाईलैंड का अयुत्या यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में संरक्षित किया गया है। इसे थाईलैंड का अयोध्या भी कहा जाता है। आइए जानें इस शहर के बारे में।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 19 Feb 2025 1:05 PM IST
Ayutthaya Ki Kahani: इस विदेशी धरती पर भी मौजूद है एक अयोध्या, गरुड़ हैं जहां का राष्ट्रीय चिन्ह
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Ayutthaya Ki Kahani (Pic- Social Media)

Ayodhya In Thailand: सनातन संस्कृति यूं ही सबसे ज्यादा समृद्ध और विराट परम्परा नहीं मानी जाती है क्योंकि इसकी जड़ें पूरी धरती पर मजबूती से फैली हुईं हैं। इसका एक जीता जागता उदाहरण विदेशी धरती पर मौजूद अयोध्या के रूप में देखने को मिलता है। अयुत्या सिर्फ थाईलैंड के लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के लिए भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। इसका नाम, धार्मिक परंपराएं और वास्तुकला भारतीय सभ्यता के प्रभाव को दर्शाते हैं।

आज भी अयुत्या (Ayutthaya) के खंडहर थाईलैंड के गौरवशाली अतीत की गवाही देते हैं और इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट (UNESCO World Heritage Site) के रूप में संरक्षित किया गया है। यह एक ऐसा बौद्ध देश है, जो हिंदू धर्म में आस्था रखता है। इस देश के राजाओं को राम कहा जाता है। इसके साथ ही इस देश की राष्ट्रीय पुस्तक भी रामायण (Ramayana) है।

बहुत से लोगों को यह लगता है कि केवल भारत में ही भगवान राम की पूजा की जाती है, लेकिन अयुत्या एशिया का एक और ऐसा बौद्ध देश है, जहां राम को आराध्य माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के पास एक शहर जिसे अयुत्या कहा जाता है।

अयुत्या का इतिहास (Ayutthaya History In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अयुत्या थाईलैंड का एक ऐतिहासिक शहर है, जो बैंकॉक से लगभग 80 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह शहर 14वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था और 18वीं शताब्दी तक थाईलैंड की राजधानी रहा।अयुत्या की स्थापना 1350 ईस्वी में राजा रामथिबोड़ी प्रथम ने की थी।

यह शहर लगभग 400 वर्षों तक सियाम (अब थाईलैंड) की राजधानी रहा और इस दौरान यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। 1767 में बर्मा (अब म्यांमार) के आक्रमण के कारण यह शहर नष्ट हो गया, और बाद में बैंकॉक को नई राजधानी बनाया गया

थाईलैंड में अयोध्या के नाम से मशहूर है ये शहर (Thailand's Ayodhya)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अयुत्या को थाईलैंड का अयोध्या (Thailand Ka Ayodhya) माना जाता है। अयुत्या नाम संस्कृत शब्द अयोध्या से लिया गया है, जो भगवान राम की जन्मभूमि, अयोध्या (भारत) से मिलता-जुलता है। यह दर्शाता है कि थाई संस्कृति पर भारतीय धर्म और परंपराओं का गहरा प्रभाव रहा है।

इस शहर में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों के ही मंदिर हैं। वहां लोगों में ऐसी मान्यता है कि यही श्रीराम की राजधानी थी। अयुत्या में कई मंदिर हैं, जिनमें हिंदू और बौद्ध दोनों धार्मिक प्रभाव दिखाई देते हैं। यहां वट महाथात मंदिर से मंदिरों में हिंदू स्थापत्य कला का प्रभाव देखा जा सकता है।

मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अयुत्या में कई मंदिरों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, और गणेश की मूर्तियाँ पाई जाती हैं। वट महाथात मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ मिली हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि यह स्थान केवल बौद्ध धर्म ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म से भी गहराई से जुड़ा था। वट फ्रा सी संफेत मंदिर में हिंदू और बौद्ध स्थापत्य कला का मिश्रण देखा जा सकता है।

अयुत्या में इंद्र और शिव की पूजा

थाईलैंड में इंद्र को “फ्रा इन“ कहा जाता है और उन्हें स्वर्ग का राजा माना जाता है, जो हिंदू मान्यता से मेल खाता है। कई मंदिरों में शिवलिंग और नंदी बैल की मूर्तियाँ भी देखी जा सकती हैं, जो हिंदू धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं।

गणेश की विशेष मान्यता

अयुत्या में भगवान गणेश की पूजा भी प्रचलित है। व्यापारियों और कलाकारों के बीच गणेश को शुभ माना जाता है, और थाईलैंड में उनकी कई मूर्तियाँ स्थापित हैं।

थाईलैंड का राष्‍ट्रीय ग्रंथ (National Book Of Thailand)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हिन्दू संस्कृति में रचे बसे थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ कोई और नहीं बल्कि रामायण है। थाईलैंड में इसे राम कियेन के नाम से जाना जाता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। वहीं, यहां का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न गरुड़ है। हिंदू पौराणिक कथाओं में गरुड़ को भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है।

थाईलैंड कभी मूल रूप से हिंदू राष्ट्र हुआ करता था। थाई राज परिवारों पर सदियों तक हिंदू धर्म का प्रभाव था। वहां के निवासी थाईलैंड के राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना करते थे। आज भी थाईलैंड का चक्री राजवंश खुद को राम कहता है। बता दें कि चक्री वंश के मौजूदा राजा को राम ‘दशम’ कहकर पुकारा जाता है

इस तरह हुई नाम के साथ राम शब्द जोड़ने की प्रथा की शुरुआत

थाईलैंड में चक्री वंश के सभी राजाओं का नाम “राम“ रखा जाता है, जो भगवान राम से प्रेरित है। कथाओं के अनुसार, राजा वजिरावुध ने खुद को राम ‘सिक्स्थ’ कहा था। इसके साथ ही चक्री वंश के राजाओं में नाम के साथ अंक जुड़ने लगा। ऐसा माना जाता है कि जब राजा रामाथिबोड़ी प्रथम ने अयुत्या की स्थापना की, तो उन्होंने इसे अयोध्या के आदर्शों पर ही बसाया।

थाई संस्कृति में राजा को विष्णु का अवतार माना जाता था, जो हिंदू धर्म की अवधारणा से मेल खाता है। थाईलैंड में चक्री वंश के लोग अपने नाम के साथ लंबे समय से राजा राम की उपाधि का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हालांकि, राजा राम दशम के नाम से इस बात का अंदाजा लगाया जाता है कि चक्री वंश के लोग दस पीढ़ी पहले अपने नाम के साथ राम का इस्तेमाल नहीं करते थे। ऐसा भी माना जाता है कि अपने नाम के साथ राम और एक अंक जोड़ने की ये प्रथा यूरोप की संस्‍कृति से ली गई है।

इस बारे में बताया जाता है इस वंश के छठे राजा वजिरावुध ने इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। पढ़ाई के दौरान उन्हें ब्रिटेन के शासकों के नाम के पीछे पंचम, द्वितीय जैसे अंक लगाने की प्रथा का पता चला। कहा जाता है इसी के बाद से राम के साथ अंक जोड़ने की प्रथा की शुरुआत हुई।

राम दशम हैं थाईलैंड के राजा

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

वर्तमान में थाईलैंड के राजा को ‘राम दशम’ की उपाधि से जाना जाता है। उन्हें थाईलैंड में लोग ‘फुटबॉल प्रिंस’ (Football Prince) भी कहते हैं। 13 अक्टूबर 2016 को अपने पिता, राजा भूमिबोल अदुल्यादेज़ की मृत्यु के बाद थाईलैंड के राजा बने। “राम दशम“ नाम उनके राजवंश के नाम के अनुसार रखा गया है, जो कि चक्री वंश से संबंधित है। यह वंश हिंदू धर्म की रामायण पर आधारित है, और इस परंपरा के अनुसार प्रत्येक नए राजा का नाम भगवान राम के विभिन्न अवतारों पर आधारित होता है।

राजा राम दशम का शासन थाईलैंड के इतिहास में महत्वपूर्ण है और वह अपने शासनकाल में कई सुधारों और परिवर्तन करने का प्रयास कर रहे हैं। अयुत्या न केवल नाम से बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी हिंदू परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह शहर भारतीय और थाई संस्कृति के संगम का प्रतीक है, जहाँ रामायण, विष्णु, शिव, इंद्र और गणेश की मान्यताएँ जीवंत रूप में देखी जा सकती हैं।



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