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Rani Kamlapati Railway Station: कौन है रानी कमलापति, जिनको समर्पित है पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन
Rani Kamalapati Railway Station History: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने रानी कमलापति को गोंड समुदाय का गौरव और भोपाल की आखिरी हिंदू रानी बताया।
Rani Kamlapati Railway Station: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 18वीं सदी की भोपाल की गोंड रानी कमलापति के नाम पर रखा गया। यह स्टेशन भारत का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन है। जिसका नाम भोपाल की आखिरी हिंदू रानी के नाम पर रखा गया है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने रानी कमलापति को गोंड समुदाय का गौरव और भोपाल की आखिरी हिंदू रानी बताया। जिनका राज्य अफगान कमांडर दोस्त मोहम्मद ने धोखे से हड़प लिया था। चलिए जानते है क्या है रानी कमलापति से भोपाल का रिश्ता?
सलकनपुर रियासत से जुड़ी है कमलापति
रानी कमलापति सीहोर के सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की बेटी थीं। वह अपनी बुद्धिमत्ता और साहस के लिए जानी जाती हैं। रानी कमलापति एक कुशल घुड़सवार, पहलवान और धनुर्धर थीं। उन्होंने अपने पिता की सेना और अपनी महिला टीम के साथ युद्ध लड़े और आक्रमणकारियों से अपने राज्य की रक्षा की। रानी कमलापति का विवाह गिन्नौरगढ़ राज्य पर शासन करने वाले सूरज सिंह शाह के पुत्र निज़ाम शाह से हुआ था। निज़ामशाह जो बहुत बहादुर, निडर और हर क्षेत्र में कुशल था। गोंड राजा निज़ाम शाह की सात पत्नियाँ थीं।
भव्य था रानी कमलापति महल
राजा निज़ाम शाह ने 1700 ई. में रानी कमलापति के प्रेम के प्रतीक के रूप में भोपाल में एक सात मंजिला महल बनवाया था, जो लखौरी ईंटों और मिट्टी से बनाया गया था। यह सात मंजिला महल अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था। उनकी इच्छानुसार तालाब के किनारे एक महल बनवाया गया, जो 1702 में बनकर तैयार हुआ। जिसे रानी कमलापति महल के नाम से जाना जाता है। आज इसके अवशेष अपर और लोअर लेक के पार्क में देखे जा सकते हैं। यह स्मारक को राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में नामित किया गया है और यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है।
सुखी पारिवारिक जीवन पर लगी बुरी नजर
रानी कमलापति राजा निज़ामशाह के साथ सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही थीं। उन्होंने एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने नवल शाह रखा। सलकनपुर राज्य के बारी किले के जमींदार का पुत्र चैन सिंह, जो राजा निज़ामशाह का भतीजा था। यह जानने के बावजूद कि वह पहले से ही शादीशुदा थी, रानी कमलापति से शादी करना चाहता था। उसने राजा निज़ामशाह को मारने की कई बार कोशिश की जिसमें वह असफल रहा। एक दिन उसने राजा निज़ामशाह को प्रेमपूर्वक भोजन के लिए आमंत्रित किया जहाँ उसने उसके भोजन में ज़हर मिलाकर उसे मार डाला।
गरिमा और सम्मान के लिए छुपती रही कमलापति
राजा निज़ामशाह की मृत्यु की खबर से पूरे गिन्नौरगढ़ में तहलका मच गया। यह जानकर कि रानी कमलापति अकेली हैं, उन्होंने उन्हें पाने के लिए गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया। रानी कमलापति ने अपने कुछ वफादारों और 12 साल के बेटे नवलशाह के साथ भोपाल में बने कमलापति महल में छिपने का फैसला किया। जो उस समय सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण महल माना जाता था। कुछ दिन भोपाल में बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानियों ने शरण ले रखी है। ये वही लोग हैं जिन्होंने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर हमला करके कब्ज़ा कर लिया है। इन अफगानों का नेता दोस्त मोहम्मद खान था जो पैसे के बदले में किसी की भी तरफ से युद्ध लड़ता था। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे के पालन-पोषण की चिंता थी, इसलिए उन्होंने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
लालघाटी का भी है उनके इतिहास से रिश्ता
लेकिन दोस्त मोहम्मद फिर पूरी भोपाल रियासत पर कब्ज़ा करना चाहता था। उन्होंने रानी कमलापति को अपने हरम (धर्म) में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव दिया। जब रानी कमलापति के 14 वर्षीय पुत्र नवल शाह को दोस्त मोहम्मद खान की मंशा पता चली तो वह 100 लड़ाकों के साथ लालघाटी पर लड़ने गया। लेकिन दोस्त मोहम्मद खान ने उसे मार डाला और उस स्थान पर इतना खून-खराबा हुआ कि जमीन लाल हो गई। और इसका नाम लाल घाटी पड़ गया। युद्ध में जीवित बचे दो लड़के मनुआभान पहाड़ी पर पहुंचे और वहां से रानी कमलापति को गाढ़ा काला धुआं उड़ाकर संकेत दिया कि वे हार गए हैं और उनकी जान खतरे में है।
झील में जल समाधि लेकर बचाई इज्जत
विपरीत परिस्थिति में फंसी रानी कमलापति ने अपनी इज्जत और गरिमा बचाने के लिए बड़े तालाब के बांध का संकरा रास्ता खोल दिया। जिससे ऊपरी झील का पानी दूसरी तरफ रिसने लगा और आज इसे लोअर झील के नाम से जाना जाता है। रानी कमलापति ने अपनी सारी संपत्ति और आभूषण झील में डाल दिए। उसी में जल समाधि ले ली। जब दोस्त मोहम्मद खान अपनी सेना के साथ लाल घाटी से इस किले में पहुंचे, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था।
आखिरी हिंदू रानी के बाद भोपाल में नवाबों का शासन
सूत्रों के अनुसार, रानी कमलापति ने 1723 में अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी और उनकी मृत्यु के बाद भोपाल में दोस्त मोहम्मद खान के नेतृत्व में नवाबों का शासन शुरू हुआ। जब तक रानी कमलापति जीवित रहीं तब तक उन्होंने किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति को भोपाल पर शासन नहीं करने दिया।