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Rudauli Ka Habshi Halwa: यूपी के इस छोटे कस्बे के 'हब्शी हल्वे' की दूर-दूर तक फैली है खुशुबू, अवध के नवाबों से है सम्बन्ध
Rudauli Ka Habshi Halwa: काली गाजर का हलवा हो या खुरमा। लौंगलत्ता हो या अनारसा। यह सब आपको बड़े शहरों के मुकाबले छोटे कस्बों में ज्यादा खाने को मिलेगा। खास कर जाड़ों के मौसम में। इन्ही मिठाइयों में से एक है हब्शी का हलवा।
Rudauli Ka Habshi Halwa: उत्तर प्रदेश अपनी विविध प्रकार की मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की मिठाइयां देश विदेश में भी बहुत पसंद की जाती है। ये मिठाइयाँ न केवल स्वादिष्ट होती हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक और पाक विरासत को भी दर्शाती हैं।यहाँ की मिठाइयों का स्वाद सिर्फ लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी जैसे बड़े शहरों में ही नहीं हैं बल्कि यहाँ के छोटे-छोटे कस्बे भी कुछ अलग तरह का जायका पेश करते हैं।
काली गाजर का हलवा हो या खुरमा। लौंगलत्ता हो या अनारसा। यह सब आपको बड़े शहरों के मुकाबले छोटे कस्बों में ज्यादा खाने को मिलेगा। खास कर जाड़ों के मौसम में। इन्ही मिठाइयों में से एक है हब्शी का हलवा। नाम पर मत जाइये। यह बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई होती है जिसकी जड़ें अवध के शासकों से जुडी हुई हैं। यह मिठाई यूपी में दो जगह सबसे ज्यादा मिलती है। एक लखनऊ से तक़रीबन 100 किलोमीटर दूर रुदौली कस्बे में और दूसरी रामपुर में।
क्या है हब्शी हलवा?
हब्शी हलवा एक पारंपरिक मीठा व्यंजन है जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। यह अक्सर उत्सवों और विशेष अवसरों पर बनाया जाता है। इसको बनाने के लिए आटा (कहीं-कहीं कॉर्नफ्लोर का भी बनाया जाता है), घी, चीनी, कई प्रकार के सूखे मेवे, खोया, केसर (जाड़ों में खास कर), इलायची आदि का प्रयोग होता है। हब्शी हलवा आमतौर पर त्योहारों के मौसम, शादियों और अन्य विशेष अवसरों के दौरान तैयार किया जाता है। यह मेहमानों को परोसने के लिए एक लोकप्रिय विकल्प है और इसे आतिथ्य का प्रतीक माना जाता है। हब्शी हलवा बनाने की परंपरा कई परिवारों में पीढ़ियों से चली आ रही है। यह भारतीय उपमहाद्वीप की पाक विरासत से जुड़ा हुआ है और विभिन्न समुदायों के लोग इसका आनंद लेते हैं।
क्या है रुदौली के हब्शी हलवा का इतिहास
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 1780 के दशक में, 'हबाश' नामक एक जनजाति से संबंधित अफ्रीकियों का एक समूह रुदौली आया और नवाब आसफ उद दौला के लिए सूखे फल और चीनी का उपयोग करके एक मीठा पकवान तैयार किया। नवाब को यह व्यंजन पसंद आया और यह 'हब्शी का हलवा' के नाम से लोकप्रिय हो गया। हलवे का नाम हब्शी अफ्रीकियों की त्वचा के रंग और उनकी ताकत के नाते दिया गया। हब्शी काले रंग के लिए उर्दू शब्द है और यह नाम आमतौर पर कई भारतियों द्वारा अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए उनके रंग और ताकत के कारण इस्तेमाल किया जाता है।आज भी गावों में किसी बड़े ताकतवर आदमी जिसका रंगा काला हो को हब्शी जैसा नाम ही दिया जाता है। चुकि यह हलवा अफ्रीकियों ने बनाया था तो इसका नाम हब्शी हलवा पड़ गया। आमतौर पर इस हल्वे के तासीर गर्म होती है इसलिए इसे अक्सर सर्दियों के दौरान ही बनाया जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों में सामग्री और तैयारी के तरीकों के साथ हब्शी हलवा की अपनी विविधताएं हो सकती हैं। कुछ व्यंजनों में सूखे मेवे, गुलाब जल, या अन्य स्वाद शामिल हो सकते हैं।
कैसे बनाते हैं हब्शी हलवा
सामग्री-हब्शी हलवा की मुख्य सामग्री में आमतौर पर गेंहू का आटा अथवा कॉर्नफ्लोर, चीनी, घी, दूध और विभिन्न प्रकार के सूखे मेवे और मसाले शामिल होते हैं। कहीं कहीं पर इसमें खोया, केसर, इलायची आदि भी मिलायी जाती है।
तैयार करने की विधि
-हब्शी हलवा तैयार करना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है जिसमें वांछित स्थिरता और बनावट प्राप्त करने के लिए लगातार हिलाते रहने की आवश्यकता होती है।
-एक चिकना पेस्ट बनाने के लिए आटे या कॉर्नफ्लोर को पानी के साथ मिलाया जाता है। फिर इस पेस्ट को घी में गाढ़ा होने तक पकाया जाता है।
-गांठ बनने से रोकने के लिए चीनी, दूध और अन्य सामग्री को लगातार हिलाते हुए धीरे-धीरे मिलाया जाता है।
-मिश्रण को तब तक पकाया जाता है जब तक कि यह एक जिलेटिन जैसी स्थिरता तक न पहुंच जाए और मिश्रण से घी अलग न होने लगे।
-स्वाद और बनावट के लिए मेवे और मसाले मिलाए जाते हैं।