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Sandila Ke Laddu: क्या आपने खाएं हैं संडीला के लड्डू? जानिए कैसे हो गए ये इतने प्रसिद्ध
Sandila Ke Laddu: क्या आप जानते हैं कि कैसे ये लड्डू बने संडीला की पहचान और कैसे ये इतने ज़्यादा प्रसिद्ध हो गए आइये जानते हैं यहाँ का इतिहास और इन लड्डुओं की प्रसिद्धि की कहानी।
Sandila Ke Laddu: उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित, संडीला घने जंगल से ढकी भूमि हुआ करती थी। इस स्थान का नाम ऋषि शांडिल्य के नाम पर पड़ा है जो यहां आकर रुके थे। अन्य तथ्यों के अनुसार संडीला नगर भारतीय इतिहास के मध्यकाल में अस्तित्व में आया। वहीँ ये सबसे ज़्यादा तब मशहूर हुआ जब यहाँ का एक ख़ास व्यंजन सभी की नज़र में आया। संडीला अपनी इसी विशेष मिठाई बूंदी के लड्डू के लिए काफी प्रसिद्ध है, जो संडीला आने वाले किसी भी व्यक्ति को अवश्य खाना चाहिए। आइये जानते हैं कैसे बना ये लड्डू संडीला की पहचान।
ऐसे संडीला की पहचान बने ये लड्डू
इस शहर का इतिहास मोहम्मद गोरी द्वारा दिल्ली पर कब्ज़ा करने के बाद शुरू होता है। अरख कबीले के दो भाइयों मलहिया और सल्हिया ने इस शहर की स्थापना की थी जिसे सल्हियापुरा और महियापुरा नाम दिया गया था। कालांतर में सल्हियापुरा का नाम संडीला और मल्हीपुरा का नाम मलिहाबाद पड़ गया। 13वीं शताब्दी ईस्वी में, संडीला अरख शासकों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र और समृद्ध स्थान बन गया। 14वीं शताब्दी ईस्वी में, फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी सेना के एक लेफ्टिनेंट सैयद मखदूम अलाउद्दीन के नेतृत्व में संडीला में सेना भेजी थी और अरखों और फ़िरोज़ शाह तुगलक की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। अरखों की हार के बाद यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गया। संडीला में ऐतिहासिक स्मारकों के अवशेष आज भी अरख शासकों की शक्ति और गौरव को दर्शाते हैं। ये जगहें हैं गढ़ी जिंदौर, सहिंजना टीला, मुसलेवान गढ़ी, समद खेड़ा, दतली, नौरंग गढ़ और मल्हैया गढ़ी।
संडीला तक कैसे पहुंचें
लखनऊ संडीला से लगभग 60 किमी दूर स्थित है और सड़क मार्ग से संडीला से लखनऊ पहुंचने में लगभग 2 घंटे लगते हैं। लखनऊ में अपने आगंतुकों के लिए अनगिनत पर्यटन स्थल हैं और यही कारण है कि कोई भी व्यक्ति इन स्थानों पर जाकर एक रोमांचक दिन का आनंद ले सकता है। लखनऊ नवाबों का शहर होने के बावजूद, यह आज भी अपने ऐतिहासिक स्मारकों में अपने शासकों के अतीत के गौरव और शान को दर्शाता है।
संडीला के लड्डू
संडीला के लड्डू मुख्य रूप से पिसी हुई बूंदी से बने लड्डू हैं। परंपरागत रूप से, इसे हाथ से पीसकर शुद्ध घी और चीनी के साथ मिश्रित ताज़े बेसन (चना दाल का आटा) का उपयोग बनाया जाता है और इससे प्रसिद्धि हासिल की। लेकिन कच्चे माल की बढ़ती लागत और तुलनात्मक रूप से लड्डू की कम कीमत होने के कारण इन्हे बनाना वहां के लोगों के लिए बेहद मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में अब यहाँ पर इस रेसिपी में थोड़ा बदलाव कर दिया गया है।
हालाँकि, मूल रेसिपी वही है। आपको बता दें कि बूंदी बेसन के घोल से बनाई जाती है। फिर इसे चीनी की चाशनी में तब तक पकाया जाता है जब तक कि यह चाशनी को सोख न ले। जब चाशनी से भरी बूंदी ठंडी हो जाए तो उस पर थोड़ी सी पीसी हुई चीनी छिड़क कर अच्छी तरह मिला लिया जाता है। फिर बूंदी को हाथों से कुचलकर गोले का आकार दिया जाता है, जिससे लड्डू को उसका विशिष्ट आकार मिल जाता है। अंतिम चरण नव-निर्मित लड्डू को पाउडर चीनी पर रोल करना है, जिससे इसे पाउडर चीनी-बर्फ का पतला आवरण दिया जा सके।
इसे बेहद शानदार तरीके के कुल्हड़ों में पैक किया जाता है। साथ ही ये उतने ही बड़े होते हैं जो ट्रेन की खिड़की की ग्रिल से लोगों तक आसानी से पहुंच जाएं।
संडीला के लड्डू आपको कहाँ-कहाँ मिलेंगें
यूँ तो संडीला के लड्डू शहर में लगभग हर जगह मिल सकते हैं, लेकिन सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले लड्डू संडीला मुख्य बाजार में बाबूलाल हलवाई और लखनऊ-हरदोई मुख्य मार्ग पर संडीला बस स्टॉप के पास ओम श्री शिव साईं मिष्ठान भंडार जैसी पुरानी दुकानों में पाए जाते हैं।
ऐसे में अगर आपकी किसी भी यात्रा के दौरान आपकी ट्रेन या बस संडीला होकर गुज़रे तो इन लड्डुओं के स्वाद को आप भी ज़रूर चखिए। और अगर आप इस शहर में हैं तो आपको कई जगह लड्डुओं की दुकान आसानी से नज़र आ जाएगी।