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Shakti Peethas Temples History: पूर्वोत्तर राज्यों के शक्ति पीठ: यंत्र, मंत्र और तंत्र विद्या के केंद्र
Shakti Peethas Temples History: देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है। यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं
Shakti Peethas Temples History: लोगों का मानना है कि शक्ति पीठ वह जगह है जहां लंबे समय तक ध्यान करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। ध्यान करने और गाने से उस स्थान पर ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है और सकारात्मक स्थिति में न केवल आप बल्कि आसपास के खंभे, पेड़ और पत्थर भी इन ऊर्जा के कंपनों को अवशोषित करते हैं। शायद इसी प्रकार इन शक्ति पीठों का निर्माण भी हुआ।देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है। यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। इनमें से ग्यारह शक्ति पीठ अकेले पश्चिम बंगाल राज्य में है। इन 51 शक्तिपीठों में से तीन दिव्य शक्तिपीठ देश के पूर्वोत्तर राज्य में हैं। असम राज्य के नीलांचल पर्वत पर मां कामाख्या देवी का स्थान है, वहीं मेघालय राज्य के पश्चिम में जयंतिया पहाड़ी पर मां जयंतेश्वरी हैं, तो त्रिपुरा राज्य के उदयपुर की पहाड़ी पर मां त्रिपुर सुंदरी विराजमान हैं।इन्हीं पूर्वोत्तर के तीनों शक्तिपीठ की जानकारी हम आपको देंगे। अगर इनके दर्शन का प्लान करते हैं तो एक साथ तीनों मां के दर्शन कर सकते हैं।
1. कामगिरि - कामाख्या मंदिर
असम राज्य के गुवाहाटी जिले में स्थित नीलांचल पर्वत पर कामाख्या नामक स्थान पर माता सती का योनि भाग गिरा था। इस मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में हुई थी और 16वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण कूचबिहार के राजा नारा नारायण द्वारा कराया गया। मां कामाख्या का यह मंदिर देश के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहां मां भगवती कामाख्या योनि रूप में विराजती हैं। दुनिया का यह अकेला शक्तिपीठ है, जहां दसों महाविद्या वाली देवी- भुवनेश्वरी, बगला, छिन्नमस्तिका, काली, तारा, मातंगी, कमला, सरस्वती, धूमावती और भैरवी एक ही स्थान पर विराजमान हैं। इस मंदिर में नवरात्रि के अलावा भक्तों का तांता हर दिन लगा रहता है। इसके अतिरिक्त यहां यंत्र, मंत्र और तंत्र विद्या के साधकों का भी साल भर आना जाना लगा रहता है।
कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए भारत के असम राज्य में उत्तर-पूर्व भारत के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी का हवाई अड्डा लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां से टैक्सी द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।असम की राजधानी गुवाहाटी से यात्रा के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध है।रेलवे मार्ग से ट्रेन द्वारा सीधे मंदिर पहुंचने के लिए नीलांचल स्टेशन निकट है। वहां से पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो मार्ग हैं एक पैदल मार्ग और दूसरा बस मार्ग।
2. दंतेश्वरी शक्तिपीठ
मेघालय राज्य के जयंतिया पहाड़ी पर बसे नर्तियांग में माता सती की बाईं जंघा गिरी थी, जहां दंतेश्वरी शक्तिपीठकी स्थापना हुई। इस मंदिर का निर्माण मेघालय के महाराजा धन माणिक्य ने आज से 600 साल पूर्व कराया था। बाद में ऐसा माना जाता है की देवी माता के स्वप्न आदेश पर जयंतिया राजा ने पास में भैरव मंदिर का भी निर्माण करवाया। इस दंतेश्वरी मंदिर में माता जयंती जयंतेश्वरी के रूप में पूजी जाती हैं, वहीं भैरव कामदीश्वर महादेव के रूप में पूजनीय हैं। पश्चिम जयंतिया पहाड़ी पर बसा यह नर्तियांग शहर कई वर्षों तक जयंतिया राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रहा। जयंतिया राजा के पुराने आयुध और शस्त्र इस महादेव मंदिर में संरक्षित हैं। इस मंदिर की नवरात्रि पूजा बहुत मशहूर है।
इस मंदिर में मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा उत्सव काफी खास है। अपने विशिष्ट पूजा के चलते यह मंदिर देश के अन्य देवी मंदिरों से अलग है। दुर्गा पूजा के दौरान इस मंदिर में केले के पेड़ को गेंदे के फूलों से सजाया जाता है और उसकी मां दुर्गा के रूप में पूजा की जाती है। 4 दिनों के दुर्गोत्सव के आयोजन के बाद मयतांग नदी में केले के पेड़ को विसर्जित कर दिया जाता है। इसके अलावा इस खास पर्व पर माता दुर्गा को गन सैल्यूट भी दिया जाता है।
कैसे पहुंचें?
यहां का नजदीकी एयरपोर्ट शिलांग में स्थित है, जो शहर से लगभग 67 किमी. की दूरी पर स्थित है। शिलांग पहुंचने के लिए सबसे अच्छा विकल्प गुवाहाटी से है । गुवाहाटी से शिलांग की दूरी सिर्फ़ 100 किमी की है । गुवाहाटी हवाई, रेल और सड़क मार्ग द्वारा पूरे देश से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नर्तियांग मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, इस कारण यहां पहुंचने के लिए कोई एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन नहीं है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन मेंदीपाथर है,जहां से मंदिर परिसर करीब 285 किमी दूर है। सड़क मार्ग से मंदिर परिसर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
3. त्रिपुरा - त्रिपुर सुंदरी
त्रिपुरा के उदयपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव में स्थित इस शक्तिपीठ पर माता सती का दाहिना पैर गिरा था। इस मंदिर में मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से पूजा जाता है। माता के इस मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुशैली एकरत्न के हिसाब से 15वीं शताब्दी में त्रिपुरा के महाराजा धन माणिक्य ने कराया था। कछुए की पीठ के समान आकार वाले पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर को ‘कूर्म पीठ‘ भी कहा जाता है। तांत्रिक साधना का इतिहास काफी पुराना है और इस त्रिपुर सुंदरी मंदिर को तंत्र विद्या का केंद्र माना जाता है। माता त्रिपुर सुंदरी को तंत्र के 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है।यहां साल में दो बार आने वाली नवरात्रि त्योहार के अलावा दिवाली पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि और श्रावण महीने में भी श्रद्धालुओं की काफी तादाद में भीड़ देखी जाती है। हिंदुओं के वैष्णव और शाक्त संप्रदाय का यह मंदिर एक जीता जागता उदाहरण है।
कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा अगरतला का महाराजा बीर बिक्रम एयरपोर्ट है, जहां से आसानी से सड़क से मंदिर पहुंच सकते हैं। यहां से मंदिर मात्र 59 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।रेल मार्ग से जाने के लिए निकटतम रेल प्रमुख एन ए ई रेलवे पर अगरतला से 140 किमी की दूरी पर कुमारघाट है। यहां से असम और त्रिपुरा के देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। यहां से बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।इसके अलावा सड़क मार्ग से यहां पहुंचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 8 भी त्रिपुरा के उदयपुर और असम के कई शहरों से जुड़ा हुआ है।