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Sonbhadra: सोनभद्र का सलखन पार्क, अमेरिका का येलो नेशनल पार्क भी फेल, 150 करोड़ साल पुराना है इतिहास

Sonbhadra Salkhan Fossils Park: सोनभद्र में जटाशंकर फॉसिल्स पार्क के अस्तित्व ने जनपद को ही नहीं बल्कि प्रदेश को अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर ला दिया है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 5 July 2022 3:21 PM IST
Sonbhadra: सोनभद्र का सलखन पार्क, अमेरिका का येलो नेशनल पार्क भी फेल, 150 करोड़ साल पुराना है इतिहास
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Sonbhadra Salkhan Fossils Park: वाराणसी-शक्तिनगर हाईवे पर बनारस से तकरीबन सौ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद अगर आपकी गाड़ी हरी भरी पहाड़ियों में हिचकोले खाने लगे, बादियों के दिलकश नजारे और इको प्वाइंट पर चाय को चुस्की लेते सैलानी नजर आने लगें तथा चंद्रकांता के अमर प्रेम का मौन साथी विजयगढ़ दुर्ग के ठीक दाई ओर आदिमानव के बनाए गए गुफा चित्र सपाटी सड़के और सोन घाटी के बिहंगम दृश्य दिखाई दें तो भ्रम में न पडे़ कि आप माउंटआबू मसूरी आ गए हैं। ये दिलकश नजारे आपसे मिर्जापुर में कैमूर वन्य जीव विहार के फॉसिल्स (जीवाश्म) पार्क की उपस्थिति और इसके प्रति अंतर्राष्ट्रीय सैलानियों के आकर्षण को कहानी कहते हैं।

इस जगह की जानकारी वैज्ञानिक मैकलैलन ने 1821 में दुनिया को दी। लेकिन इसके 112 साल बाद 1933 में जे.वी. ऑर्डन ने सलखन आकर व्यापक अध्ययन से यह साबित किया कि अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क (Yellowstone National Park) को इसने बहुत पीछे छोड़ दिया है। हालांकि राज्य सरकार को इस पार्क की अहमियत स्वीकार करने में इसके बाद भी 69 साल लगे। पश्चिमी देशों की उपलब्धियों को गुनगुनाने की आदत ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की ओर नीति निर्माताओं की नजर हो नहीं पड़ने दी।

जटाशंकर फॉसिल्स पार्क

सोनभद्र में ही एक और जटाशंकर फॉसिल्स पार्क के अस्तित्व ने जनपद को ही नहीं बल्कि प्रदेश को अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर ला दिया है। इसने पृथ्वी पर जीवन प्रारम्भ होने के प्रमाण भी उपलब्ध कराए। विश्वविख्यात भू-वैज्ञानिक और कनाडा में मैकनिस युनिवर्सिटी के प्रो. एच. जे. हॉफमैन दिसंबर, 2002 को जब यहाँ पहुंचे तो 150 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म को देखकर कहा, पूरे विश्व में इससे खूबसूरत एवं स्पष्ट जीवाश्म और कहीं नहीं हैं। सोनभद्र में जगह-जगह फैले स्टेमेटोलाइट सिर्फ लाइमस्टोन के पत्थर मात्र नहीं है बल्कि डेढ़ अरब वर्ष पुराने जीव-जगत की जीती-जागती प्रयोगशाला हैं। अमेरिका से आई दो महिला वैज्ञानिकों- मिस पोर्टर और डॉ. लिंडा ने भी माना, सलखन के जीवाश्म 150 करोड़ वर्ष पुराने एवं परिपक्व हैं। जबकि येलोस्टोन नेशनल पार्क के जीवाश्म अब भी निर्माण प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।


हॉफमैन ही नहीं, बल्कि जियोलाजिकल सर्वे इंडिया के पूर्व निदेशक रविशंकर और लखनऊ स्थित वीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान के डॉ. मुकुंद शर्मा का संयुक्त दल अपने-अपने अध्ययन में यहां के जीवाश्म को डेढ़ अरब वर्ष पुराना बताते हुए दावा कर चुके हैं, इनके अध्ययन से पृथ्वी के घूमने की गति का भी निर्धारण किया जा सकता है। इसी दल की सदस्य प्रो डॉ. पूर्णिमा का दावा है, इन जीवाश्मों में अब भी जीवन है और ये जीवमय हैं। इन जीवाश्मों के बारे में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर दी ओरिजिन ऑफ लाइफ के दक्षिण एशियाई सदस्य प्रो. वी.सी. तिवारी कहते हैं, जीवन की संरचना में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

सोनभद्र में कभी समुद्री लहरें हिलोरे मारा करती थीं

डॉ. मुकुंद शर्मा के अनुसार, वैज्ञानिक परीक्षणों से इन जीवाश्मों की आयु 150 करोड़ वर्ष आंकी गई है। सोनभद्र जिले के सलखन और बरगवां के जीवाश्म शैवाल निर्मित हैं। वैज्ञानिक भाषा में इन्हें स्टेमेटोलाइट कहते हैं। जीवाश्म के अस्तित्व ने इस तथ्य पर भी वैज्ञानिक मुहर लगा दी कि सोनभद्र में कभी समुद्री लहरें हिलोरे मारा करती थीं। क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार सलखन के जीवाश्म का निर्माण समुद्र में हुआ था। बुद्धजीवियों और वैज्ञानिकों ने समुद्र होने की प्रामाणिक व्याख्या कर प्रदेश के सांस्कृतिक इतिहास को फिर से उद्घाटित करने के लिए मजबूर कर दिया है । तो अमेरिका के प्रो. बी. रूनीगर ने यह खुलासा कर अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल के जीवाश्म सलखन की तुलना में नए हैं, फिर भी देश का गौरव बढ़ा चुके, हालांकि कुछ धार्मिक जानकार काष्ठ जीवाश्म को उन दानवों की अस्थियां मानते है , जो भावान विष्णु द्वारा मारे गये थे।


जीवाश्म की सर्वप्रथम खोज 1721 में यूरोपीय प्रकृति प्रेमी एम. सोनेरत ने की। अपने समय में बच्चों ही नहीं बड़ों के लिए भी बेहद आकर्षक का केन्द्र बनी फिल्म जुरासिक पार्क ने आमजन को फॉसिल्स (जीवाश्म) से परिचित कराया। फॉसिल्स अर्थात जीव की अश्मिकी यानी वनस्पति, जानवर इत्यादि का चट्टानों में प्रतिरूप। जीवाश्म का मिलना एक दुर्लभ घटना माना जाता है। डार्विन के सिद्धान्त विकासवाद की पुष्टि भी जीवाश्मों द्वारा संभव हुई।

प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा यह ऐतिहासिक स्थल

तकरीबन 25-25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले दी जीवाश्म पार्कों के चलते सोनभद्र अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति प्रेमियों के जिज्ञासा का केन्द्र बन रहा है। इन दिनों यह ऐतिहासिक स्थल प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा है। इसके विकास की तरफ़ कोई ध्यान नहीं है। तभी तो अमेरिका के येलोस्टोन पार्क में आठ सौ रूपये प्रवेश शुल्क होने के बाद भी वर्ष 2003 में तीस लाख लोगों ने इस पार्क का लुत्फ उठाया और इससे प्रशासन की 240 करोड़ रूपये की आमदनी हुई । जबकि सोनभद्र के इन जीवाश्म पार्कों में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। इसके बावजूद वर्ष 2003 में महज तीन लाख लोगों ने पार्क तक जाने की जहमत उठाई।


इतना ही नहीं, येलोस्टोन नेशनल पार्क की खोज 1830 में हुई और महज 40 साल बाद 1870 में सरकार ने इसे अपनी धरोहर घोषित कर दिया जबकि राज्य सरकार को तकरीबन 200 साल लगे और वर्ष 2002 में सोनभद्र के जीवाश्म पार्कों को धरोहर का दर्जा प्रदान किया जा सका। इसके बाद भी स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के चलते मूर्ति तस्कर और पत्थर माफिया जीवाश्म को तोड़कर उनकी तस्करी कर रहे हैं। लोग इन बेशकीमती टुकड़ों को ड्राइंगरूप की शोभा बढ़ाने के लिए ले जा रहे हैं । कैमूर वन्य जीवन प्रभाग इस तोड़-फोड़ से बेखबर है। विंध्य क्षेत्र के पर्यावरणविद विजय शंकर चतुर्वेदी ने राज्यपाल से मिलकर पत्थर माफियाओं की भेंट चढ़ रहे जीवाश्म पार्क को बचाने की मांग की।


महामहिम ने प्रदेश के प्रमुख सचिव, उद्योग एवं प्रमुख सचिव, संस्कृति को तत्काल कार्रवाई करने की उम्मीद की है। पर, चतुर्वेदी की मांग ठंडे बस्ते के हवाले कर दी गई। बाद में राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर ने इसको भू-वैज्ञानिक धरोहर घोषित करने के लिए केन्द्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री को भी खत भेजा, पर वहाँ भी सलखन की अहमियत को न तो तवज्जों दी गई और न ही राज्यपाल के खत पर कार्रवाई करना उचित समझा गया।

गुफा चित्र भी हो रहे खनन माफियाओं के शिकार

उपेक्षा की यह मार सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय सलखन पार्क ही नहीं झेल रहा है बल्कि इसी इलाके में स्थित हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव द्वारा बनाए गए गुफा चित्र जो पहाड़ियों में बिखरे पड़े हैं, भी खनन माफियाओं के शिकार हो नष्ट हो रहे हैं। इसे गिट्टी बनाकर कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। मुख्यमंत्री की टास्कफोर्स में पहुंचे खाद्य एवं रसद आयुक्त देवेश चतुर्वेदी ने वहाँ हो रहे उत्खनन को तत्काल रोकने के निर्देश दिये पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला। पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ.अर्जुनदास केसरी का कहना है कि यदि विदेशों में एक भी गुफा चित्र मिल जाए तो उसके संरक्षण के लिए सरकारें करोड़ों रूपये खर्च करती हैं। लेकिन यहाँ जब पूरी चनाइमान पहाड़ी गुफाचित्रों से भरी है तो प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर के चित्रकार डॉ. यशोधर मठपाल ने चनाइमान और पंचमुखी के गुफा चित्रों की सूची भी तैयार की है परन्तु नष्ट होते गुफा चित्रों से वे भी मर्माहत हैं। सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और जाने-माने पर्यावरण विद एम.सी. मेहता के अनुसार सोनभद्र में हो रहे अवैध खनन और वनों की कटान ने परिस्थितिकी संतुलन को ध्वस्त कर दिया है। सलखन का सोनभद्र जीवाश्म पार्क और बरगवां का जटाशंकर जीवाश्म पार्क ही नहीं, चनाइमान की गुफा चित्रों के हालात से धरोहरों और सम्पत्तियों के बारे में हमारी असली चिंता उजागर हो जाती है। वाकई नेताओं और प्रशासन ने उन्हें गर्त में ढ़केलने की तैयारी कर रखी है।

( मूल रूप से 06,Nov,2006 को प्रकाशित।)



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Shreya

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