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Tirupati Balaji Temple News: दुनिया का सबसे धनी तिरुपति बालाजी मंदिर, जाने इसका इतिहास
Tirupati Balaji Temple History: इस मंदिर में बालाजी के तीन बार दर्शन का महत्व है- पहला दर्शन सुबह के समय विश्वरूप का है, दूसरा दर्शन दोपहर का और तीसरा दर्शन रात का ।
Tirupati Balaji Temple History: तीर्थों का देश कहे जाने वाले भारत देश में हर क्षेत्र में विभिन्न धर्मों के तीर्थ और उनसे जुड़ी कई कथाएं सुनने को मिलेंगी। भारत देश के आंध्र प्रदेश राज्य में चित्तूर जिले का तिरुपति शहर प्रसिद्ध वेंकटेश्वर मंदिर विश्व विख्यात है। हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन कर दान करते हैं, जिसके कारण यह मंदिर दुनिया का सबसे धनी मंदिरों में गिना जाता है। आंध्र प्रदेश में सात पहाड़ियों के ऊपर तिरुमला में बसा भगवान विष्णु का स्वरूप माने जाने वाले भगवान वेंकटेश्वर का भव्य तिरुपति बालाजी एक ऐसा तीर्थस्थल है जहां आप भगवान के दर्शन के साथ प्राकृतिक नजारे का भी आनंद ले सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां दर्शन के लिए आता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में जानकारी (Tirupati Balaji Mandir Information Hindi)
यहां भगवान के दर्शन सुबह से लेकर पूरी रात तक कर सकते हैं। कहते हैं यहां भगवान सिर्फ एक घंटे का ही विश्राम लेते हैं क्योंकि वे अपने हर भक्त को दर्शन देना चाहते हैं। इस मंदिर में बालाजी के तीन बार दर्शन का महत्व है- पहला दर्शन सुबह के समय विश्वरूप का है, दूसरा दर्शन दोपहर का और तीसरा दर्शन रात का । बालाजी के पूरी मूर्ति का दर्शन शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय होते हैं।
वेंकटेश्वर नाम का अर्थ है "वह देवता जो हमारे पापों का नाश करते हैं"। वैसे भी तिरुपति जी के दर्शन के लिए हर कोई मन में इच्छा जरूर रखता है। इस दर्शन का अगर मन बना लिया है तो पहले ऑनलाइन दर्शन की बुकिंग करनी पड़ती है फिर आप अपना आने जाने का टिकट बुक करा सकते हैं। टीटीडी की वेबसाइट पर आपके ठहरने के लिए भी एडवांस बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है।
रात्रि दर्शन में मंदिर प्रांगण से खुले आसमान का अद्भुत नजारा देख सकते हैं, इसके अलावा पहाड़ी रास्ते से मंदिर की ओर जाते समय प्रकृति के संगीत का आनंद ले सकते हैं। मानसून के दौरान सात पहाड़ियों की ऊंचाई पर आपको बादलों के बीच में रहने का एहसास भी होगा।
मंदिर में विराजमान मूर्ति 9 फीट और 9 इंच लंबी है जिसका रंग लाल-काला है। इस मूर्ति पर पुजारी पुणुगु का तेल जैसे लगाते हैं इस मूर्ति का रंग काला दिखाई देने लगता है।
बालाजी मूर्ति के रूप में पद्म पीठम- कमल मंच के ऊपर धोती पहने खड़े विभिन्न आभूषणों , फूल से सजे हैं। उनके छाती और भुजाओं पर सांप की नक्काशी है और चार भुजाओं में ऊपर के दो हाथ खाली और नीचे के हाथ कटि और वरद मुद्रा में हैं। भगवान की छाती पर माता लक्ष्मी विराजमान हैं। इनके बाल लंबे और घुंघराले बालों की तरह बंधे हुए हैं।
पुराणों में उन्हें लक्ष्मी पति नारायण बताया गया है। इनके रूप को कई देवी देवताओं से तुलना की गई है जैसे लंबे बाल और इनकी लंबाई (9″9′) शक्ति की देवी दुर्गा को दर्शाती है। छाती और हाथों पर सांपों की नक्काशी, लंबे बाल भगवान शिव को दर्शाते हैं। वहीं कटि और वरद हस्तम स्कंद को दर्शाते हैं। छाती पर देवी लक्ष्मी, चार भुजा, उर्ध्व पुण्डर तिलक भगवान विष्णु को दर्शाते हैं। इस प्रकार बालाजी में सभी देवताओं के रूप समाहित हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर से कई रहस्य जुड़े हैं। जो इस प्रकार हैं: (Tirupati Balaji Mandir Unknown Facts Hindi)
- ऐसा कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर यहां स्वयं विराजमान हैं और इस मूर्ति पर लगे बाल असली हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं।
- ऐसा भी कहते हैं कि भगवान को पसीना आता है और इसकी बूंदें मूर्ति पर दिखाई देती हैं।
- जब गर्भगृह में प्रवेश करते हैं तो मूर्ति मध्य में दिखती और जब गर्भगृह से बाहर आते हैं तब भगवान की मूर्ति दाहिनी तरफ दिखााई देती है।
- जब भगवान का श्रृंगार हटाकर स्नान कर चंदन का लेप लगाया जाता है उस दौरान वेंकेटेश्वर के हृदय में मां लक्ष्मी की आकृति दिखती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं और इसलिए मूर्ति को स्त्री और पुरुष दोनों के कपड़े पहनाए जाते हैं।
- मंदिर में हमेशाा दीया जलता रहता है और इस दीए में कभी तेल या घी नहीं डाला जाता।
- मूर्ति पर कान लगाकर अगर सुना जाए तो समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई पड़ती है।
तिरुपति का प्रबंधन :
मंदिर का स्वामित्व और प्रबंधन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त निकाय तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के पास है, जो मंदिर के प्रशासन और संचालन की देखरेख करता है। टीटीडी के अंतर्गत इसके विशाल संसाधन और वित्त का प्रबंधन भी आता है। तिरुपति बालाजी मंदिर में हर दिन करीब 1 लाख श्रद्धालु आते हैं। कुछ खास मौकों पर जैसे सालाना ब्रह्मोत्सव और त्योहारों पर इनकी संख्या लाखों में हो जाती है।
तिरुपति मंदिर में भक्त दिल खोलकर दान करते हैं। अपने सिर के बालों से लेकर कभी कभी शरीर में पहनकर आए आभूषण भी दान कर देते हैं। श्रद्धालु यहां सोना, चांदी, रुपए, जमीन के कागजों के अलावा डी मैट शेयर भी चढ़ावे में चढ़ाते हैं। कई श्रद्धालु किलो के हिसाब से सोना चांदी दान करते हैं तो कई रुपए का दान करते हैं।
इस मंदिर में हर महीने के चढ़ावा को सुनकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। हर महीने इस मंदिर के हुंडी में या दान से लगभग 100 करोड़ रुपए का दान आता है। यह दान विभिन्न सेवाओं के लिए चढ़ावे और टिकट बिक्री से एकत्र होती है। खासकर कुछ विशेष उत्सव और त्यौहारों के दौरान यह राशि और अधिक बढ़ जाती है।
इस हिसाब से सालाना तिरुपति बालाजी मंदिर में करीब 1,000 से लेकर 1200 करोड़ रुपए से अधिक का धन भक्तों द्वारा दान में आता है। एक रिर्पोट के मुताबिक इस समय मंदिर के पास करीब दस हजार किलो से ज्यादा सोना देश के दो बैंकों और मंदिर के खज़ाने में रखा है, इसके अलावा 12 हजार करोड़ रुपये की एफडी और 1100 से भी ज्यादा की अचल संपत्ति है जो लगभग 8,088.89 एकड़ जमीन पर फैली हुई है। इनमें से 233 कृषि भूमि हैं, जो 2,085.41 एकड़ में फैली हुई हैं और करीब 895 संपत्ति गैर कृषि भूमि है, जो मुख्यत: आवास गृह के रूप में हैं जो 6,003.48 एकड़ में फैली हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर की कुल संपत्ति को लेकर आधिकारिक तौर पर वैसे कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन मंदिर में बालाजी और अन्य मूर्तियां जो हीरों से सुसज्जित हैं उनकी कीमत कई सौ करोड़ में है।
विशिष्ट वार्षिक राजस्व के आंकड़े अलग-अलग हो सकते हैं और आमतौर पर टीटीडी द्वारा सार्वजनिक रूप से यह जानकारी नहीं दिए जाते हैं।
दुनिया का यह एक अनोखा मंदिर है जहां भक्त अपने सिर के बाल दान करवाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तिरुपति बालाजी में जो व्यक्ति अपने जितने बाल दान करता है, भगवान उसे 10 गुना धन उपहार में देते हैं इस तरह बाल दान करने वाले पर मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है।
तिरुपति का प्रसाद (Tirupati Laddu Recipe Hindi)
तिरुपति मंदिर में प्रसाद देने की परंपरा 200 साल से भी अधिक पुरानी है। मंदिर में 18वीं सदी के दौरान प्रसाद के तौर पर बूंदी दिया जाता था। इसके बाद सन् 1940 से यह परंपरा बदल कर बूंदी की जगह लड्डू का प्रसाद कर दिया गया। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने 1950 में प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की मात्रा तय कर दी जिसे 2001 में आखिरी बार दित्तम में बदलाव के बाद अब तक जारी है।
ऐसा कहा जाता है कि तिरुपति मंदिर का दर्शन बिना लड्डू के प्रसाद लिए पूरा नहीं होता। मंदिर में पूरी शुद्धता के साथ अलग तरीके से प्रसाद बनाया जाता है। इन लड्डुओं का निर्माण लड्डू पोटू नामक रसोईघर में होता है। पहले लड्डुओं के निर्माण के लिए रसोई घर में लड़की का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन 1984 के बाद रसोई घर में एलपीजी गैस का इस्तेमाल होने लगा। इस लड्डू पोटू की प्रतिदिन करीब 8 लाख लड्डू तैयार करने की क्षमता है। इस प्रसाद के बनाने में करीब 620 कर्मचारी कार्यरत हैं जिन्हें पोटू कर्मीकुलु कहा जाता है।इस प्रसाद को बनाने के लिए एक खास प्रक्रिया है जिसे दित्तम (Dittam) कहा जाता है। यह लड्डू प्रसाद बेसन, काजू, इलायची, घी, चीनी, मिश्री और किशमिश से बनता है जिसमें ये सामग्री इस अनुपात में ली जाती है : 10 टन बेसन, 10 टन चीनी, 700 किलो काजू, 150 किलो इलायची, 300 से 400 लीटर घी, 500 किलो मिश्री और 540 किलो किशमिश।
इस मंदिर में प्रसाद के तौर पर कई प्रकार के लड्डू प्रसाद के लिए बनाए जाते हैं जिनमें प्रोक्तम लड्डू जिसका वजन 60-70 ग्राम का होता है, मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को नियमित तौर पर दिया जाता है। विशेष त्योहार पर बनाए जाने वाला अस्थानम लड्डू जिसका वजन 750 ग्राम होता है और इसमें काजू, बादाम और केसर अधिक मात्रा में डाला जाता है। वहीं कुछ विशेष भक्तों को कल्याणोत्सवम लड्डू दिया जाता है।
तिरुपति में टीटीडी द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान:
तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने तिरुपति में संस्कृत और अन्य प्राचीन भाषाओं को प्रचारित और लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से कई शिक्षण संस्थान भी चलता है जिसमें प्रमुख हैं:
श्री वेंकटेश्वर ओरिएंटल हाई स्कूल
श्री वेंकटेश्वर ओरिएंटल कॉलेज
हैदराबाद में एसवीवीवीएस कॉलेज
श्री वेंकटेश्वर कॉलेज: दिल्ली विश्वविद्यालय का एक घटक महाविद्यालय, यह महाविद्यालय स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के साथ-साथ व्यावसायिक और अल्पकालिक पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है।
श्री पद्मावती महिला पॉलिटेक्निक: 1975 में स्थापित यह कॉलेज एक अनुदान प्राप्त संस्थान है, जो अपनी 50% धनराशि सरकार से प्राप्त करता है।
संगीत और नृत्य महाविद्यालय: यहां प्राचीन भारतीय कलाओं को सिखाया जाता है।
वेदपाठशाला एवं मूर्तिकला प्रशिक्षण केन्द्र: इन संस्थाओं का रखरखाव टीटीडी द्वारा किया जाता है।
आयुर्वेद महाविद्यालय : यहां छात्रों को भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली का प्रशिक्षण दिया जाता है।