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यूपी में घूमने की जगहः अगर आपने यूपी की इन जगहों पर नहीं घूमा तो आपने भारत नहीं देखा

उत्तर प्रदेश की राजधानी अमूमन तो राजनीतिक बहस बाजी और सियासी धर पकड़ के लिए प्रख्यात है । लेकिन इनसे भी कहीं आगे और कहीं बड़ी कहानी लखनऊ के इतिहास की है।

Rajat Verma
Written By Rajat VermaPublished By Vidushi Mishra
Published on: 23 Oct 2021 4:05 PM IST
UP Mein Ghumne Ki Jagah
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यूपी में घूमने की जगह (फोटो- कांसेप्ट इमेज)

UP Mein Ghumne Ki Jagah : सभी को घूमने का शौक होता है। जब भी कोई व्यक्ति कहीं घूमने जाता है तो वहां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करता है। जिसे देखने के बाद आपका भी दिल घूमने को जरूर करता होगा। अगर आप भी घूमने के शौकीन हैं तो आज हम आपको उत्तर-प्रदेश की कुछ ऐसी ही जगहों के बारें में बताएंगे,जहां घूमने के बाद आपको विदेश घूमने का मन नहीं होगा।

क्योंकि इनमें से बहुत सी जगह का पौराणिक और ऐतिसाहिक नज़रिये से हमेशा ही एक अलग स्थान रहा है। उत्तर प्रदेश हमेशा से आधुनिक भारत के इतिहास और राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है। यहाँ के निवासियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भी प्रमुखता से अहम भूमिका निभायी थी। तो आइए जानते हैं उत्तर प्रदेश के कुछ ऐसे ही स्थानों (UP Mein Ghumne Ki Jagah) और स्थलों के बारे में जिनका हमेशा से पौराणिक और ऐतहासिक महत्व रहा है-

ताजमहल
(UP Mein Ghumne Ki Jagah Agra Ka Taj Mahal)

उत्तर प्रदेश की आन, बान और शान तथा विश्व का सातवां अजूबा ताजमहल उत्तर प्रदेश के आगरा (UP Mein Ghumne Ki Jagah Agra Ka Taj Mahal) ज़िले में स्थित है। मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी चहेती बेगम दिवंगत मुमताज महल की याद में यमुना नदी के किनारे सन 1632 में ताजमहल के रूप में मकबरे का निर्माण करवाया था।

ताजमहल (फोटो- सोशल मीडिया)

मकबरे का निर्माण परिसर 42 एकड़ में फैला हुआ है। इस मकबरे में एक मस्जिद और एक गेस्ट हाउस शामिल है।

मकबरे का निर्माण पूर्ण रूप से 1643 में पूरा हो गया था । लेकिन ताजमहल की और बेहतरी के लिए परियोजना का कार्य अगले 10 वर्षों तक जारी रहा। अनुमानित तौर पर यह माना जाता है कि 1653 में ताजमहल परिसर के पूर्ण निर्माण में लगभग 32 मिलियन रुपए(3.2 करोड़ रुपए) जिसकी 2020 में कीमत 70 बिलियन रुपये (7000 करोड़ रुपये) की कुल लागत आई थी।

निर्माण परियोजना ने सम्राट उस्ताद अहमद लाहौरी के दरबार के वास्तुकार को ताजमहल निर्माण कार्य का प्रमुख बनाया था। इनके सानिध्य में 20,000 कारीगरों को नियुक्त किया था, जिन्होनें दुनिया के 7वें अजूबे ताजमहल का निर्माण कार्य पूर्ण किया।

ताजमहल को 1983 में "भारत में मुस्लिम कला का गहना और दुनिया की विरासत की सार्वभौमिक रूप से प्रशंसित उत्कृष्ट कृतियों में से एक" (the jewel of Muslim art in India and one of the universally admired masterpieces of the world's heritage) होने के लिए यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Place) के रूप में नामित किया।

कई लोग इसे मुगल शासनकाल में वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण और भारत के समृद्ध इतिहास का प्रतीक मानते हैं। ताजमहल (UP Mein Ghumne Ki Jagah Agra Ka Taj Mahal) प्रत्येक वर्ष 70 से 80 लाख दर्शको को आकर्षित कर उनके ताजमहल आगम को दर्ज करता है। 2000- 2007 के दरमियान हुई खोज के मुताबिक ताजमहल को दुनिया के सातवें अजूबे का खिताब दिया गया।

लखनऊ
(Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah)

उत्तर प्रदेश की राजधानी अमूमन तो राजनीतिक बहस बाजी और सियासी धर पकड़ के लिए प्रख्यात है । लेकिन इनसे भी कहीं आगे और कहीं बड़ी कहानी लखनऊ के इतिहास की है। इतिहास ऐसा की सुनने और पढ़ने पर रुकने का मन ही ना करे बस एक ही अनुभव होता है कि लखनऊ (Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah) के कालजयी इतिहास अपनी रगों में खून का माफिक उतार लें। देश का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना है लखनऊ का इतिहास।

लखनऊ भारत का 12वाँ सबसे अधिक आबादी वाला शहरी समूह है। लखनऊ (Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah) हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है जो 18वीं और 19वीं शताब्दी में अवध नवाबों के सानिध्य में बखूबी फला फूला।

वर्तमान में लखनऊ शासन, प्रशासन, शिक्षा, वाणिज्य, एयरोस्पेस, वित्त, फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी, डिजाइन, संस्कृति, पर्यटन, संगीत और कविता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। इन क्षेत्रों में हमेशा से अपनी महत्वता ज़ाहिर करते आया है। लखनऊ को आम तौर पर उसके प्राचीन नाम "अवध" से भी पहचान प्राप्त है।

अवध का इतिहास जितना रोचक है उतनी ही रोचक है अवध की संरचना।

लखनऊ शहर समुद्र तल से लगभग 123 मीटर (404 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। दिसंबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ शहर का क्षेत्रफल 402 वर्ग किमी है था। उसके बाद जब 88 अन्य गांवों को लखनऊ नगरपालिका सीमा में जोड़ा गया तो लखनऊ के क्षेत्रफल (Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah) बढ़कर 631 वर्ग किमी हो गया है। गोमती नदी के उत्तर-पश्चिमी तट पर पूर्व में बाराबंकी, पश्चिम में उन्नाव, दक्षिण में रायबरेली और उत्तर में सीतापुर और हरदोई से घिरा ज़िला है।


ऐतिहासिक रूप से बात करें तो लखनऊ (Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah) अवध क्षेत्र की राजधानी थी, जिसे बाद में दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया गया था। अवध के नवाबों को इसे दिल्ली सल्तनत के अधीन रहकर सत्ता चलाए के लिए निर्देशित कर दिया गया था।

1856 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय शासन को समाप्त कर दिया। अवध सहित पूरे शहर पर पूर्ण नियंत्रण करने के बाद 1857 में इसे ब्रिटिश शासन को सौंप दिया। शेष भारत के साथ ही लखनऊ भी 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद हो गया।

लखनऊ को भारत में 17वां सबसे तेजी से बढ़ता शहर और दुनिया में 74वां सबसे तेजी से बढ़ते शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

इसी के साथ लखनऊ में ऐतिहासिक विरासत के रूप में रूमी दरवाज़ा (Lucknow Mein Rumi Darwaza), चारबाग रेलवे स्टेशन(Lucknow Charbagh RAilway Station), हज़रतगंज(Hazratganj), बड़ा इमामबाड़ा(Bada Imambada), गुलाचीन हनुमान मंदिर(Aliganj Ka Gulacheen Mandir), ला मार्टीनियर स्कूल(La Martinière College), काल्विन तालुकेदार स्कूल, आदि इमारतें मौजूद हैं।


लखनऊ स्थित इमामबाड़ा परिसर में 'भूल-भुलैया' (Lucknow Mein Ghumne Ki Jagah bhool bhulaiyaa) है

लखनऊ का इमामबाड़ा (Lucknow Ka Imambara) देश की प्राचीनतम धरोहर में से एक है। दुनिया भर से दर्शक खास तौर पर इमामबाड़ा देखने लखनऊ आते हैं। इमामबाड़ा लखनऊ में सबसे अधिक देखी जाने वाली जगह है। यह खूबसूरत विरासत वास्तुकला अपने आप में रहस्यों और इतिहास को समेटे हुए है। इस स्मारक के निर्माण में लगी हर एक ईंट और हर एक पत्थर अपना अलग महत्व और इतिहास रखता है।

भूल भुलैया (Lucknow bhool bhulaiyaa) का निर्माण अवध प्रांत के चौथे नवाब, नवाब आसफ-उद-दौला (Asaf-ud-Daula) ने करवाया था। इस संरचना को बनाने में चौदह वर्ष का समय लगा। असल में इस इमारत का निर्माण जब अवध रियासत में अकाल पड़ा तब नवाब ने सोचा यह रोजगार पैदा करेगा और साथ ही लोगों को उनकी सेवाओं के बदले में भोजन प्रदान करेगा। भूल भुलैया और इमामबाड़ा के डिज़ाइन को प्रख्यात वास्तुकार हाफिज किफायत उल्लाह ने अंतिम रूप दिया था।

इमामबाड़े में तीन हॉल हैं । केंद्रीय हॉल में नवाब आसफ-उद-दौला (Asaf-ud-Daula KA Makbara) का मकबरा भी मौजूद है। इमामबाड़ा की खाशियत उसका मुख्य केंद्रीय हॉल है जिसका माप 170 फीट X 55 फीट X 15 फीट है। यह बिना किसी सपोर्टिंग कॉलम के बना है।

रणनीतिक माप के अनुसार बिंदुओं (strategic point) पर खिड़कियां लगाई गई हैं ताकि दिन के समय हवा आने-जाने और प्रकाश की कोई कमी न हो। इसके साथ ही अन्य संरचनाओं का निर्माण इमामबाड़े के केंद्रीय हॉल की संरचना को ध्यान में रखकर किया गया है जिससे केंद्रीय हाल की खूबसूरती में कोई विघ्न ना आने पाए।

कुशीनगर
(Kushinagar Mein Ghumne W
ali Jagah)

उत्तर प्रदेश में कुशीनगर (Kushinagar Mein Ghumne Vali Jagah)एक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है। कुशीनगर की यह पौराणिक मान्यता है कि गौतम बुद्ध ने अपनी मृत्यु के बाद महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। देश की दृष्टि से कुशीनगर एक अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध तीर्थस्थल है जहां दुनिया भर के पर्यटक और बौद्ध अनुयायी वर्ष दर वर्ष आते रहते हैं।

रामायण आधारित पौराणिक कथा के अनुसार कुशीनगर(Kushinagar Mein Ghumne Vali Jagah) कोसल (kosala) साम्राज्य की राजधानी थी। इसका निर्माण प्रभु श्री राम के पुत्र राजा कुश ने करवाया था।

बौद्ध परंपरा के अनुसार, राजा कुश से पहले इसका नाम कुशावती रखा गया था जो कि बाद में रामायण के अनुसार राजा कुश के नाम पर कुशीनगर पड़ गया। बौद्ध परंपरा के अनुसार इस क्षेत्र का नाम कुशावती रखने के पीछे यहां पाई जाने वाली कुश घास की अधिकता मानी जाती है।

फोेटो- सोशल मीडिया

इन तर्कों के आधार पर अमूमन माना जाता है कि वर्तमान कुशीनगर की पहचान कुसावती (पूर्व-बुद्ध काल) और कुशीनारा (बुद्ध के बाद के काल में) से की जाती है। कुशीनारा मल्लों (mallas) की राजधानी थी । जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के 16 महाजनपदों में से एक थी । तभी से यह यह मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्ता, हर्ष और पाल वंशों के साम्राज्य का एक अभिन्न अंग हुआ करता था।

12वीं शताब्दी तक तो कुशीनारा एक चर्चित और अपने काम के लिए जाना माना शहर बना रहा । लेकिन उसके बाद अचानक से गुमनामी के अंधेरे में डूब गया, विशेषज्ञों द्वारा इसके गुमनामी में डूबने के पीछे का कारण तत्कालीन खराब शासन व्यवस्था बताया जाता है।

वहीं आधुनिक कुशीनगर (Kushinagar Mein Ghumne Vali Jagah)का अस्तित्व 19वीं शताब्दी में भारत के पहले पुरातत्व सर्वेक्षणकर्ता (archaeological surveyor) अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) द्वारा किए गए पुरातात्विक उत्खनन (archaeological excavations) में प्रमुखता से सामने आया।

इसी के साथ आगे जारी रखे गए पुरातात्विक उत्खनन अभियान के द्वारा कुशीनगर में बौद्ध सामग्री और उनके धन का भी खुलासा हुआ था। जिसके चकते गौतम बुद्ध से जुड़े कई साक्ष्य भी प्राप्त किये गए थे।

बनारस
(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah)

बनारस अर्थात भगवान शिव की नगरी काशी, जिसका हिन्दू परंपरा में पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत अहम स्थान है। शिव नगरी काशी में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं । सच्चे तथा निस्वार्थ भाव से काशी विश्वनाथ भगवान शिव के दर्शन प्राप्त करते हैं।

देश की सर्वोच्च पवित्र नदी गंगा नदी भी बनारस(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah) से होकर बहती है, इसके चलते देश दुनिया से तमाम लोग गंगा नदी में स्नान की इच्छा लेकर बनारस आते रहते हैं।

बनारस हिंदू धर्म और जैन धर्म के सात पवित्र शहरों में से एक सबसे पवित्र स्थल है। बनारस को लिखित भाषा में वाराणसी कहते हैं । लेकिन आम बोलचाल की भाषा में इसे बनारस ही कहते हैं। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से ही सांसद निर्वाचित हैं।

फोेटो- सोशल मीडिया

वाराणसी अपने मलमल और रेशमी कपड़ों के साथ बनारसी साड़ियों के लिए महत्वपूर्ण प्रख्यात स्थान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने यहां 528 ईसा पूर्व के आसपास बौद्ध धर्म की स्थापना की थी, जब उन्होंने अपना पहला धर्मोपदेश बनारस के पास स्थित सारनाथ में दिया था।

इसके बाद 8वीं शताब्दी में जब आदि शंकराचार्य ने वाराणसी(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah) के एक आधिकारिक संप्रदाय के रूप में शिव पूजा की शुरुआत की । तो इसके बाद शहर का धार्मिक मूल्य और अधिक मात्रा में बढ़ गया। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस नामक महाकाव्य वाराणसी में लिखा था।

कबीर दास और रविदास के रूप में अन्य महाकवियों का जन्म भी बनारस(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah) में हुआ था।

एक ऐसी भी मान्यता है कि 1507 में गुरु नानक देव जी महाशिवरात्रि में प्रतिभाग करने के उद्देश्य से बनारस आए थे। उनके इसी आगमन के चलते बाद में सिख धर्म की स्थापना हुई।

16वीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट अकबर के कार्यकाल में बनारस(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah) में भगवान शिव और भगवान विष्णु के दो मंदिरों का निर्माण कराया गया, जो आगे चलकर बनारस के धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरोद्धार का कारण बना।

वाराणसी(Varanasi Mein Ghumne Ki Jagah) कई हज़ार वर्षों से उत्तर भारत का सांस्कृतिक केंद्र बना हुआ है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि मृत व्यक्ति की अस्थियों को पवित्र गंगा नदी में विसर्जित करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। जो इसे तीर्थयात्रा का एक प्रमुख केंद्र बनाता है।

विशेष रूप बनारस (Varanasi Ke Ghat) अपने गंगा घाट की वजह से भी अधिक जाना जाता है, जिसमें दशाश्वमेध घाट, पंचगंगा घाट, मणिकर्णिका घाट वा हरिश्चंद्र घाट आदि शामिल हैं।

अनुमानित तौर पर वाराणसी में कुल 23,000 मंदिर हैं । जिसमें प्रमुख रूप से भगवान शिव का काशी विश्वनाथ मंदिर (Varanasi Mein Kashi Vishwanath Mandir), संकट मोचन हनुमान मंदिर (Sankat Mochan Mandir Varanasi) और दुर्गा मंदिर (Durga Mandir) शामिल हैं। एशिया के सबसे बड़े और देश के सबसे प्रख्यात शिक्षण संस्थानों में से एक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) (बीएचयू) भी यहीं है।


कइयों साहित्यिक ग्रंथ, किताबें और कविताओं की रचना बनारस को ध्यान में रखकर की जा चुकी हैं । जिसमें वर्तमान के प्रख्यात लेखक सत्य व्यास का उपन्यास बनारस टॉकीज, डायना एल. इक (Diana L. Eck) की बनारस: सिटी ऑफ लाइट्स, लेखक सौरभ राजपूत की किताब बनारस के 3 साल, आदि शामिल हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं में बनारस

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वाराणसी की स्थापना (Bhagvan Shiv Ne Ki Varanasi Ki Esthapana) भगवान शिव ने की थी।

ऐसा माना जाता है कि हिंदू महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने शिव की तलाश में बनारस शहर का दौरा किया था ताकि वे अपने भाईचारे और ब्राह्मण हत्या के पाप का प्रायश्चित कर सकें जो उन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान किए थे

काशी विश्वनाथ मंदिर (फोटो- सोशल मीडिया)

अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, कांची, अवंती और द्वारका सहित काशी शहर को मुक्तिदाता के रूप में जाना जाता है।

महाभारत काल में भी काशी का जिक्र इस प्रकार है कि काशी की राजकुमारियों अंबिका और अंबालिका का विवाह हस्तिनापुर के शासक विचित्रवीर्य से हुआ था तथा बाद में उन्होंने पांडु और धृतराष्ट्र को जन्म दिया। पांडु के पुत्र भीम ने एक काशी राजकुमारी वलंधरा से शादी की और उनके मिलन के परिणामस्वरूप सर्वग का जन्म हुआ जिसने बाद में काशी पर शासन भी किया।

बनारस के बारे में पुरातात्विक साक्ष्य (archaeological evidence)

बनारस में 2014 में हुए एक पुरातात्विक उत्खनन (excavation ) के द्वारा 800 ईसा पूर्व की मूर्तियों और कलाकृतियों की खोज हुई थी। 1800 ईसा पूर्व के साक्ष्य मिलने के साथ ही इस बात की भी पुष्टि हो गयी थी कि बनारस शहर उस समय तक बस चुका था।

(साथ में श्वेता पांडेय)

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