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Uttar Pradesh Famous Temple: जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है प्रायग्राज से 60 किमी दूर बसी ये जगह
Uttar Pradesh Famous Temple: प्रयागराज से 60 किलोमीटर की दूरी पर एक बहुत ही खूबसूरत जगह मौजूद है जिसका संबंध जैन तीर्थ से होने के साथ-साथ भगवान कृष्ण से भी।
Uttar Pradesh Famous Temple: भारत का प्रयागराज एक बहुत ही खूबसूरत जगह है, जो एक धार्मिक नागरिक के तौर पर पहचाना जाता है। आज हम आपको प्रयागराज से 60 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद एक बहुत ही खूबसूरत धार्मिक और प्राचीन जगह के बारे में बताते हैं। हम जिस जगह की बात कर रहे हैं उसे गिरी पर्वत के नाम से पहचाना जाता है और यह एक ऐसा स्थान है जहां पर प्रभास नाम का पहाड़ बना हुआ है।
कौशांबी के बाबोसा गांव में मौजूद यह जगह जैन धर्म के लिए तीर्थ स्थल है। वहीं अन्य लोग यहां पर्यटन के हिसाब से पहुंचते हैं। इस जगह से कई सारी कहानियां सुनी हुई है जो स्थानीय लोगों से सुनने को मिलती है। प्रभास गिरी नामक एक पर्वत है जहां पर जैन मंदिर मौजूद है जिस पर 184 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचना पड़ता है। जब आप यहां पर पहुंचेंगे तो आपको कई सारी प्राचीन मूर्तियां देखने को मिलेगी। इन मूर्तियों को जमीन से खुदाई की तरह निकल गया था।
प्रमुख जैन तीर्थ है ये जगह
जैन धर्म परंपरा के छठवें तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभु ने इसी पहाड़ी पर तब किया था और ज्ञान प्राप्त किया था। प्रभास गिरी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर भगवान पदम प्रभु का जन्म भी हुआ था और इस स्थान पर उनके जीवन की कई कहानियों का चित्रण किया गया है। इस मंदिर में एक स्तंभ भी बनाया गया है और ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति नास्तिकता के साथ मंदिर के अंदर प्रवेश करता है इस स्तंभ के दर्शन मात्र से ही उसके अंदर काम क्रोध कपट जैसे अंधकार दूर हो जाते हैं और वह आस्तिक हो जाता है। यहां आस-पास कहीं सारे पुरातत्व संबंधी सामग्री देखने को मिलती है जो जैन धर्म से जुड़ी हुई है। उत्खनन में मिली अनेक चतुर्मुखी प्रतिमा संयुक्त मान स्तंभ के अवशेष और कई मूर्तियों की खोज यहां पर की गई है।
हिंदुओं के लिए है खास
जैन धर्म के साथ-साथ हिंदुओं के लिए जगह काफी खास है। यमुना तट पर मौजूद इस जगह के जंगलों में भगवान कृष्ण ने अपना देहात याद किया था। जब एक पहेलियां ने श्री कृष्ण को हिरण समझकर उन पर तीर चलाया था तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। यहां पर रोहित गिरी भी मौजूद है जो श्री कृष्ण का एक मंदिर है। इस मंदिर में बहुला गाय की प्रतिमा है जिसकी बहुत पुरानी कहानी है।
ऐसी है कहानी
एक समय में यहां चंद्रवती पुरी थी जहां राजा चंद्रसेन का राज था। इसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था जिसके पास बहुला नाम की एक गाय हुआ करती थी,बहुला रोज इसी पहाड़ पर आकर चरती थी। एक बार गाय को सिंह ने पकड़ लिया, बहुला गाय अपने छोटे से बछड़े को याद करके रोने लगी। वह सिंह से कहने लगी कि बस मुझे एक बार जाने दो मैं अपने बछड़े को दूध पिला कर वापस आ जाऊंगी,वह अभी बहुत छोटा है। सिंह उसकी बात मानने को तैयार नहीं था वह कहने लगा मुझे भूख लगी है, मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकता। बहुला के बहुत समझाने पर सिंह ने उसे जाने दिया लेकिन वह जानता था कि बहुला गाय लौटकर नहीं आएगी। गाय अपने घर पहुंची,अपने बछड़े को पकड़ कर रोने लगी उसे दूध पिलाया और सारी कहानी बता कर वापस आने लगी। उसका बच्चा रोने लगा, गाय के साथ वाले रोने लगे। सिंह ने जब देखा कि बहुला गाय ने अपने वचन का पालन किया,वह कितनी सच्ची है तो उसके अंदर का अंधकार दूर हो गया और सत्य को देख कर उसे ईश्वर के दर्शन हुए, उसने कहा कि मां मुझे माफ कर दो मैंने आज तक बहुत सारे पाप किए है लेकिन तुम्हारे सत्य ने आज मुझे सही रास्ता दिखाया है। मंदिर में स्थित बहुला गाय की प्रतिमा लोगों के लिए पूजनीय है।