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Uttarakhand Popular Temple: उत्तराखंड का ऐसा मंदिर जिसे हटाने की कोशिश में आ गई थी भीषण बाढ़, हजारों लोगों की गई थी जान
Uttarakhand Dhari Devi Mandir: श्रीनगर में एक झील के बीच स्थित इस मंदिर में स्थापित माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर की मान्यता और इतिहास के बारे में।
Uttarakhand Dhari Devi Temple: उत्तराखंड में स्थित एक ऐसा सिद्ध मंदिर (Uttarakhand Ka Siddh Mandir) जिसे हटाने की कोशिश करते ही लोगों को भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा था। चार धाम (Char Dham) की रक्षक धारी देवी नाम से लोकप्रिय यह मंदिर श्रीनगर (Dhari Devi Temple Srinagar) में है। इस मंदिर की विशेषता है कि इस मन्दिर की मूर्ति का स्वरुप दिन में तीन बार बदलता है। धारा देवी मंदिर से दर्शन करने के साथ ही हरिद्वार में गंगा आरती (Ganga Aarti) देखने का भी लाभ उठाया जा सकता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद आगे जोशीमठ (Joshimath) भी पर्यटक घूमने जरूर जाते हैं। आइए जानते हैं धारी देवी मंदिर से जुड़े महत्व के बारे में (Dhari Devi Mandir Ka Mahatva)-
झील से बहती पानी की धारा के बीच स्थापित है यह मंदिर (Protector Of Char Dham In Uttarakhand)
यह मंदिर एक झील के बीच में स्थापित है। इस मंदिर में स्थापित माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि माता इस जगह पर बैठकर चारों धाम (Char Dham) की रक्षा करती हैं। उनका मंदिर भारत में श्रीमद् देवी भागवत द्वारा गिने गए 108 शक्ति स्थलों में से एक है।
इस तरह अलग-अलग रूपों में दिखाई देती है यह प्रतिमा (Dhari Devi Temple Idol)
उत्तराखंड के एक रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों में शामिल यह श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की खूबी है कि यहां कोई भी भक्त आकर हर दिन होने वाले चमत्कार को देख सकता है। इस चमत्कार को देखकर लोग श्रद्धा से भर उठते हैं। दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक वृद्ध महिला के रूप में दर्शन देती हैं। जिसे देखने के बाद लोगों को अपनी आंखों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है।
मंदिर को लेकर है यह मान्यता (Dhari Devi Mandir Ki Manyata)
इस मंदिर के पुजारियों के अनुसार, मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। इस धार्मिक स्थल से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया।
इस मंदिर को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि देवी धारी देवी के दो भाग हैं। उनके शरीर का ऊपरी हिस्सा धारी देवी मंदिर में प्रकट हुआ था, जबकि निचला हिस्सा कालीमठ मंदिर में प्रकट हुआ था, जहाँ उन्हें माँ काली के रूप में पूजा जाता है। किंवदंती के अनुसार, धारी देवी की मूर्ति को किसी भी छत के नीचे नहीं रखा जा सकता है।
मंदिर को हटाने के प्रयास में भुगतना पड़ा था दण्ड
स्थानीय लोगों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार परियोजना कंपनी ने धारी देवी मंदिर से प्रतिमा को अपलिफ्ट करने की ठानी। गढ़वाल के लोगों ने इसका विरोध किया और इसे विनाशकारी भी बताया था। लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने उनकी एक न सुनी और धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून, 2013 को अपलिफ्ट किया गया। उसी दिन केदारनाथ में जल प्रलय आ गया और सैंकड़ों लोग काल के गाल में समा गए। हजारों की संख्या में लोग या तो बेघर हो गए या मारे गए।
माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून, 2013 की शाम को हटाया गया था। उसके कुछ ही घंटों के भीतर ही अचानक बाढ़ रूपी प्राकृतिक आपदा ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरु कर दिया था। जिसके उपरांत देवी से माफी मांगने और मंदिर के पुनः निर्मित किए जाने की मनौती के बाद जब बाढ़ का पानी थमा, तब स्थानीय लोगों के प्रयासों से उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया।