TRENDING TAGS :
Vaishno Devi Yatra: वैष्णो देवी यात्रा गर्मियों में सुकून के साथ माता के दर्शन
Vaishno Devi Yatra Travel Guide: कटरा बस स्टैंड से करीब 2 किमी दूर बाणगंगा से यात्रा का प्रारंभ होता है। यहां से यात्रा पर्ची चेक करा कर के भवन जाना होता है। करीब 14 किलोमीटर तक के भवन जाने के रास्ते में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
Vaishno Devi Yatra Travel Guide: ‘चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है।’ वैष्णो देवी जाने से पहले यह प्रसिद्ध गाना शायद हर भक्त गुनगुनाता है। यह सच भी है की जब तक माता का बुलावा नहीं आता कोई लाख कोशिश कर लें वहां पहुंच नहीं पाता। लेकिन हम अगर सच्चे दिल से उस यात्रा पर जाना चाहते हैं तो प्लानिंग कर लीजिए एक दिन दर्शन का बुलावा भी आ जाएगा।
जम्मू-कश्मीर स्थित त्रिकूट पर्वत पर 5200 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों और बादलों के बीच स्थित माता वैष्णो देवी का दरबार एक गुफा में है, जहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को कटरा से करीब 14 किमी की यात्रा करनी पड़ती है। इस गुफा के अंदर मां आदिशक्ति तीन रूपों में विराजमान हैं- महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली। मां वैष्णो देवी की यात्रा के लिए पैदल के अलावा घोड़े, पीठू, पालकी, हेलीकॉप्टर जैसे कई साधन हैं। हेलीकॉप्टर की यात्रा के लिए आपको पहले से बुकिंग करानी होगी जो ऑनलाइन उपलब्ध है। यह सेवा कटरा से सांझीछत हेलीपैड तक उपलब्ध है।
यहां घूमने के लिए गर्मियों का मौसम सबसे अच्छा होता है। वैसे यहां साल भर लोग आते हैं। ज्यादातर गर्मियों के मौसम में लोग रात के समय अपनी यात्रा शुरू करते हैं जिसमें वे रात में ठंड का मज़ा लेते हुए सुबह पहाड़ की चोटियों के बीच से उगते सूरज के अद्भुत नज़ारे को देख सकते हैं। बारिश के दिनों में में तेज बारिश और भूस्खलन का खतरा रहता है। गर्मियों में तापमान मध्यम रहता है, जबकि सर्दियों में इसका तापमान शून्य के नीचे जाता है।दिसंबर, जनवरी और फरवरी के महीने में बर्फबारी होती है, तब गरम कपड़ों के साथ आना जरूरी है।
यात्रा शुरू करने से पहले यात्रियों को कटरा में पंजीकरण कराना होता है। इस यात्रा की पर्ची जारी होने के 6 घंटे के अंदर बाणगंगा में पहली चेक पोस्ट को पार करना होता है। यह यात्रा पर्ची सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक तक मुफ़्त में मिलती है। निम्नलिखित वेबसाइट के जरिए आप इसकी बुकिंग कर सकते हैं: https://www.maavaishnodevi.org
कटरा बस स्टैंड से करीब 2 किमी दूर बाणगंगा से यात्रा का प्रारंभ होता है। यहां से यात्रा पर्ची चेक करा कर के भवन जाना होता है। करीब 14 किलोमीटर तक के भवन जाने के रास्ते में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कटरा से भवन हेलीकॉप्टर, पौनी, घोड़े , पालकी, पैदल आदि के माध्यम से जा सकते हैं। भवन पहुंचने पर आप माता की सुबह या शाम वाली आरती के लिए बुकिंग कर सकते हैं। इस आरती में शामिल होना अपने आप में एक अलग ऊर्जा का संचार कर देती है।
वैष्णो देवी के आसपास और कई दर्शनीय स्थल हैं जिसे आप माता के दर्शन के बाद देख सकते हैं।
पवित्र गुफा
पवित्र गुफा का गर्भगृह एक प्राकृतिक चट्टान से निर्मित है। इसके अंदर शांत वातावरण में देवी का निवास है। गुफा में देवी के दर्शन से भक्तों में एक दिव्यता का संचार होता है जो आत्मा-विभोर कर देता है।
बाणगंगा नदी
बाणगंगा नदी एक पवित्र जल कुंड है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर माता रानी ने अपने बाल धोएं थे और अपनी प्यास बुझाई थी।
अर्धकुमारी
इस स्थान पर माता रानी ने 9 महीने तक भगवान शिव की तपस्या की थी जिस दौरान भैरवनाथ ने उन्हें देख लिया था। उस गुफा से निकल कर फिर माता भवन तक जा पहुंची।
भैरों मंदिर
यह मंदिर पवित्र गुफा के पास एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर से आप मनोरम दृश्य और शांत वातावरण का अनुभव कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है की माता वैष्णो देवी के दर्शन का फल तबतक नहीं माना जाता जबतक भैरोनाथ के दर्शन नहीं किया। यहां तक जाने के लिए रोप वे की सुविधा उपलब्ध है।
मां वैष्णो देवी की पौराणिक कथा
मां वैष्णो देवी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जो शायद बहुत लोगों को नहीं पता। पुराण के अनुसार प्राचीन काल में भैरवनाथ नाम का एक तांत्रित था, जो अपनी तंत्र विद्या से प्रभावशाली बन कर देवी देवता के भक्तों पर अत्याचार करता था जिससे देवी देवता के उपासक दुःखी थे।
हंसाली नामक गांव में माता वैष्णो देवी का श्रीधर नामक एक परम भक्त रहता था। माता की श्रीधर पर विशेष कृपा दृष्टी थी। इस बात की भनक भैरवनाथ को लग गई और वह अपने करीब 400 शिष्यों के साथ श्रीधर के घर पहुंच गया और सबके लिए भोजन बनाने का आग्रह किया। साथ ही पूरे गांव वालों को भी आमंत्रित करने को कहा।
श्रीधर एक गरीब ब्राह्मण था। कैसे इतने लोगों को भोजन कराऊं। सोचकर चिंतित हो गया। तभी माता वैष्णो देवी ने वहां प्रगट होकर श्रीधर के समस्या का समाधान किया। सभी को आमंत्रित करने का आदेश दिया। वहां गांव वाले सहित भैरवनाथ भी अपने शिष्यों के साथ आये। माता वैष्णो देवी एक कन्या का रूप धारण कर अपनी शक्ति से सोने चांदी के बर्तन में अनेक प्रकार के पकवान स्वयं परोसने लगी। भैरवनाथ को जब माता भोजन परोसने गई तब उसने सात्विक खाने से इंकार कर दिया और मांस मंदिरा की मांग की। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को बहुत समझाने कोशिश की लेकिन वह नहीं माने। भैरवनाथ ने अपनी शक्ति से माता को पहचान लिया और उस कन्या को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन कन्या रूपी वैष्णो देवी वहां से त्रिकूट पर्वत पर जाकर एक गुफा में प्रवेश कर हनुमानजी को रक्षक बनाकर नौ महीने तक गुफा में तपस्या की।
इसी गुफा को आज अर्धकुमारी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि रक्षा करने के लिए तैनात हनुमानजी को लगी प्यास को बुझाने के लिए वैष्णो देवी ने धनुष से बाण चला कर जलधारा का निर्माण किया जिसे आज बाणगंगा के नाम से जाना जाता है।
भैरवनाथ जब माता को खोजते हुए अर्धकुंवारी गुफा तक पंहुचे तो देवी वहां से त्रिकूट पर्वत वाली गुफा में विराजमान हो गई। भैरवनाथ देवी का पीछा करते हुए गुफा में पहुंच गये , जहां देवी ने उसके सिर पर ऐसा प्रहार किया कि उसका सिर शरीर से अलग होकर गुफा से 8 किमी दूर जा गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से आज जाना जाता है। जिस स्थान पर माता ने उसका वध किया, उसे भवन के नाम से जानते हैं। भैरवनाथ ने देवी से अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की। वैष्णोदेवी समझ गई थी की भैरवनाथ ने उन पर हमला मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया था। देवी ने उसे यह वरदान दिया कि मेरे दर्शन के बाद जब तक कोई भक्त तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसे मेरे दर्शन का फल नहीं प्राप्त होगा।
कटरा में कई दर्शनीय स्थल हैं
शिव खोरी (शिव खोड़ी)
यह स्थान कटरा से 70 किलोमीटर की दूरी पर है। कटरा से शिव खोरी बस या टैक्सी से पहुंचकर आगे 4 किमी की यात्रा पैदल चलकर या घोड़े से तय करना पड़ता है। ऊंची पहाड़ियों से घिरे इस मनोरम दृश्य को देखते हुए शिव खोरी गुफा तक पहुंच सकते हैं। करीब 150 मीटर लंबी गुफा के अंदर प्रवेश करने का रास्ता बड़ा ही संकीर्ण है, जहां श्रद्धालु एक एक कर जाते हैं या कभी कभी घुटनों के बल भी चल कर जाते हैं । गुफा के अंदर लगभग एक मीटर ऊंचा प्राकृतिक शिव लिंग बना है। शिव लिंग के ऊपर गाय के स्तन जैसे बने आकृति से दूध के रंग का पानी शिवलिंग पर टपक कर गिरता रहता है। गुफा से आसानी से बाहर निकलने के लिए अलग दूसरा बड़ा रास्ता बनाया गया है।
बाबा जित्तो मंदिर
यह मंदिर कटरा से 7 किमी की दूरी पर शिव खोड़ी रास्ते पर पड़ता है। बाबा जित्तो माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे। ऐसा मानना है कि माता वैष्णो देवी कन्या रूप में उनके घर आया करती थीं।
नौ देवी मंदिर
यह प्राचीन मंदिर कटरा से 8 किमी की दूरी पर शिव खोड़ी रास्ते पर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां नीचे उतरकर जाना होता है जहां एक छोटी गुफा बनी है। गुफा के भीतर श्रद्धालु लेटकर प्रवेश करते हैं। इस गुफा के अंदर नौ देवियां- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता , कात्यायनी , महाकाली, महा गौरी और सिद्धिदात्री पिंड के रूप में विराजमान हैं।
भूमिका मंदिर
कटरा रेलवे स्टेशन से करीब 700 मीटर की दूरी पर यह मंदिर है। ऐसा कहा जाता है की यहां माता वैष्णो देवी की मुलाकात पंडित श्रीधर से हुई थी। इसी स्थान से देवी ने त्रिकूट पर्वत के लिए प्रस्थान किया था।
देवा माई मंदिर
कटरा से 4 किलोमीटर दूर जम्मू रोड पर यह मंदिर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर माता वैष्णो देवी ने कन्या रूप में निवास किया था और अपनी तपस्या यहीं से पूरी की थी।
बाबा धनसर
यह स्थान कटरा से करीब 15 किमी की दूरी पर स्थित है जहां एक छोटी सी गुफा में शिवजी का प्राकृतिक शिवलिंग है। इस शिवलिंग पर निरंतर पानी की बूंदें गिरती रहती है। दरअसल गुफा के उपर चट्टानों में से प्राकृतिक झरनों का पानी शिवलिंग पर गिरता है। यहां का नज़ारा बहुत खूबसूरत लगता है।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से जम्मू का रानीबाग एयरपोर्ट वैष्णो देवी पहुंचने का नजदीकी हवाई अड्डा है। जम्मू से करीब 50 किमी दूर कटरा सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। जम्मू से कटरा के बीच ट्रेन, बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
रेल मार्ग से पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू और कटरा हैं। कटरा देशभर के मुख्य शहरों से जम्मू रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। कटरा पहुंचकर फिर यहां से श्रद्धालु माता के दरबार तक यात्रा शुरू कर सकते हैं।
सड़क मार्ग से भीं कटरा आसानी से पहुंचा जा सकता है। देश के विभिन्न हिस्सों से जम्मू सड़क मार्ग के जरिए आकर कटरा तक पहुंचा जा सकता है। बहुत से पर्यटक अपनी निजी वाहनों से भी कटरा पहुंचते हैं।
मंदिर ट्रस्ट ने गरिमा के अनुसार स्त्री पुरुषों के लिए मंदिर में प्रवेश के लिए शालीन वस्त्र पहनना अनिवार्य कर दिया है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)