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Varanasi Famous Durga Mandir: बनारस में इस दुर्गा मंदिर का इतिहास आपको चौंका देगा

Varanasi Famous Durga Temple: बनारस में दुर्गा कुंड मंदिर के अलावा एक ऐसा माता का मंदिर है, जिसे मूल रूप से विष्णु जी को समर्पित किया गया था..

Yachana Jaiswal
Written By Yachana Jaiswal
Published on: 11 April 2024 4:24 PM IST
Varanasi Famous Durga Mandir: बनारस में इस दुर्गा मंदिर का इतिहास आपको चौंका देगा
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Varanasi Famous Durga Temple: बनारस जिसे भारत की धार्मिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। यहां पर आपको महादेव के साथ विविध प्रकार के देवी देवताओं के मंदिर आसानी से मिल जायेंगे। यहां पर कई ऐसे मंदिर भी है, जो भारत के इतिहास में योगदान देते है। जो बनारस के इतिहास में घटित कहानियों के बारे में बताते है। यहां हम आपको ऐसे ही एक खूबसूरत और वास्तुकार में समृद्ध मां दुर्गा के मंदिर के बारे में बताने जा रहे है।

रामनगर का अद्भुत मंदिर (Ramnagar Durga Mandir)

उभरे हुए गुंबद और दीवार पर अद्भुत नक्काशी के साथ एक आकर्षक संरचना, रामनगर किले के पास दुर्गा मंदिर भारतीय आध्यात्मिकता का एक रहस्यमय स्थान है। इस मंदिर को सुमेरू मंदिर के नाम से भी मशहूर है, इसका इतिहास 19वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा हुआ है। दीवार की नक्काशी एकदम बारीक विवरण और सुंदर डिजाइन लोगों को लुभाती है। तीर्थयात्रियों की सूची में एक और प्रमुख स्थल छिन्नमस्तिका मंदिर, उसी परिसर में स्थित है। अक्षिर सागर, एक सुंदर तालाब, मंदिर के द्वार के ठीक बगल में स्थित है। शाम के समय मंदिर परिसर में घूमना आपके मन को तरोताजा कर देगा।


लोकेशन: एनएच 7 के पास, आक्षीर सागर झील के पास, रामनगर वाराणसी

समय: सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से रात 8 बजे तक

इस मंदिर में माता के दर्शन आपको सुबह 5 बजे से दोपहर के 12 बजे तक मिलेंगे। उसके बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। फिर दोबारा मंदिर दोपहर 3 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।


दुर्गा मंदिर के पास है कुंड

दुर्गा मंदिर बनारस के रामनगर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 500 साल पहले हुआ था, जो वर्तमान में बनारस राज्य के शाही परिवार के नियंत्रण में है। यह मंदिर हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के साथ एक बड़ा पत्थर से निर्मित तालाब भी है। दुर्गा मंदिर अपने बेहतरीन पत्थर के नक्काशी के लिए भी प्रसिद्ध है, जो उत्तर भारतीय पत्थर की कला का एक शानदार उदाहरण है। इसे 18वीं शताब्दी में एक तालाब के सामने बनाया गया था जिसे दुर्गा कुंड के नाम से जाना जाता है।


मंदिर के निर्माण से जुड़ी कहानी

मंदिर का निर्माण काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह ने 1738-1770 ई. के बीच करवाया था। यह मंदिर उस युग का है जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में विद्यमान थी, और ब्रिटिश भारत के पहले गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने बनारस राज्य में तत्कालीन सत्ता संभाली थी। ब्रिटिश सिपाही कंपनी ने तोपों से मंदिर को तोड़ने की भी कोशिश की। मंदिर पर कई राउंड तोपें चलाई गईं जिससे मंदिर का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया। बनारस की सेना और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए भीषण युद्ध के बाद बनारस की सेना हार गई।


मंदिर पर आक्रमण के निशान आज भी है मौजूद

इसके बाद, बनारस राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया और ब्रिटेन की रानी के नाम से राजा चैत सिंह के उत्तराधिकारी द्वारा शासन किया गया। बनारस राज्य के नए शासक मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से का पुनर्निर्माण बिल्कुल मूल के समान करना चाहते थे। राजा ने मंदिर निर्माण के लिए भारी पुरस्कार की घोषणा की। एक वास्तुकार ने आगे आकर राजा से मंदिर को बिल्कुल मूल जैसा ही बनाने का वादा किया। उन्होंने पूरे मंदिर को बिल्कुल वैसा ही बनाया लेकिन मंदिर के शीर्ष डिजाइन का पुनर्निर्माण करने में असफल रहे। जब उसे एहसास हुआ कि वह अपने वादे से चूक गया है तो उसने मंदिर की चोटी से छलांग लगा दी। उनके प्रतिभाशाली काम की तुलना अब उन मूर्तियों के विस्तृत दृश्य से की जा सकती है जो हमले से बच गईं, जो मूर्तियां उनके द्वारा बनाई गई थीं। मंदिर के शीर्ष पर तोप के गोले से चिह्नित भूरा धब्बा स्पष्ट रूप से हमले की कहानी बताता है।


मंदिर की संरचना

यह मंदिर वर्गाकार आकृति पर आधारित है और इसका परिसर भी वर्गाकार है। मंदिर का मुख्य भवन चौकोर आकार के मंच पर बना हुआ है। मंदिर के मंच में विभिन्न कमरे हैं, जिनका उपयोग मंदिर के कर्मचारियों के लिए और कभी-कभी यज्ञ करने के लिए किया जाता है। परिसर हरा-भरा है जिसमें विभिन्न पेड़ हैं। कोई भी आगंतुक परिसर में मुख्य मंदिर भवन के चारों ओर घूम सकता है। हिंदू धर्म में धार्मिक कारणों से कुछ उपासक मंदिर भवन के चारों ओर घूमते हैं। मंदिर के सामने एक सुंदर, विशाल चौकोर तालाब है। इस तालाब के चारों तरफ पत्थर की सीढ़ियाँ हैं और प्रत्येक कोने पर 4 निगरानी स्तंभ हैं। मंदिर भवन की दीवारों पर किया गया पत्थर का काम भी परिसर के चौकोर डिजाइन पर जोर देता है।


पहले भगवान विष्णु को था समर्पित

इस मंदिर को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि यह मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है। लेकिन मंदिर परिसर में कुछ असाधारण गतिविधियों के कारण, राजा के दरबार के ब्राह्मणों ने मंदिर को देवी मां दुर्गा में बदलने का सुझाव दिया। जिसके बाद से यह मंदिर आज वर्तमान समय में भी मां दुर्गा के मंदिर के रूप में जाना जाता है।



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Yachana Jaiswal

Yachana Jaiswal

Content Writer

I'm a dedicated content writer with a passion for crafting engaging and informative content. With 3 years of experience in the field, I specialize in creating compelling articles, blog posts, website content, and more. I can write on anything with my research skills. I have a keen eye for detail, a knack for research, and a commitment to delivering high-quality content that resonates with the audience. Author Education - I pursued my Bachelor's Degree in Journalism and Mass communication from Sri Ramswaroop Memorial University Lucknow. Presently I am pursuing master's degree in Master of science; Electronic Media from Makhanlal Chaturvedi National University of Journalism and Communication Bhopal.

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