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Varanasi Tourist Places: बनारस के ये चार जगह, जो अभी भी लोगों की नजरों से है दूर
Varanasi Top 4 Hidden Place: बनारस में आपने बहुत कुछ देखा होगा जो पर्यटक के लिए लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है। लेकिन यहां पर हम आपको 4 ऐसी जगह बताने जा रहे है जिसके बारे में आपने नहीं सुन होगा।
Top 4 Undiscovered Place in Varanasi: वाराणसी नगरी अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्द है। लोगों से पूछेंगे बनारस में घूमने और देखने के लिए क्या है? तब लोग आपको सिर्फ ऐतिहासिक मंदिर और खूबसूरत घाट के बारे में बताते है। लेकिन बनारस बस यही तक ही सीमित नहीं है। अपने आस पास के क्षेत्र में कुछ खूबसूरत और हिडेन गेम को भी वाराणसी अपने में शामिल किए हुए है। यहां पर हम आपको बनारस के प्रसिद्द तो नहीं कुछ छिपे हुए रत्नों के बारे में बताने जा रहे है, जो विश्व प्रसिद्द नहीं लेकिन स्थानीय लोगों के बीच बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। चलिए जानते है बनारस की 4 छिपे हुए सुंदर जगहों के बारे में.....
वाराणसी के टॉप 4 जगह(Varanasi Top 4 Undiscovered Place)
सिद्धेश्वरी माता मंदिर (Siddheshwari Mata Mandir)
लोकेशन: सिद्धेश्वरी गली, गरवासीटोला, गोविंदपुरा, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
समय सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक
नवरात्र के नौ दिन काशी में मान दूर्गा के अलग - अलग स्वरूप को पूजा जाता है। उन्हीं में से एक है माता सिद्धेश्वरी देवी का मंदिर। कहते है कि नवरात्र के नौवें दिन माता सिद्धेश्वरी देवी के दर्शन की मान्यता है। माता के दर्शन कर भक्तगण सभी दुखों से मुक्ति पाकर जीवन में अनन्य सुख भोगकर अंततः मोक्ष प्राप्त करते है।
ऐसे पहुंच सकते है यहां
माता का मंदिर गोदौलिया चौक के पास स्थित है। भक्तगण आसानी से लोकल रिक्शा और पैदल चलकर भी मंदिर तक पहुंच सकते है। माता का मंदिर जहां है उस गली को सिद्धमाता गली कहते है।
दर्शन का समय
पूजा स्थल सुबह 05.00 बजे से 10.00 बजे तक और शाम 04.00 बजे से रात 10.00 बजे तक खुला रहता है। हालाँकि, दिन के हर समय ग्रिल वाले दरवाज़े से भक्तों को दर्शन उपलब्ध कराया जाता है।
बनारस का मिनी गोआ: आबादी (Mini Goa Of Varanasi: Abadi Picnic Spot)
लोकेशन: रॉबर्ट्सगंज, पडारच, सोनभद्र उत्तर प्रदेश
अबाडी पिकनिक मनाने के लिए एक बहुत ही सुंदर जगह है। यहां का प्राकृतिक वातावरण मनमोहक है। यह निश्चित रूप से सोनभद्र जिले का मिनी गोवा है। नदी में पानी दो तीन फिट के लगभग है कहीं कहीं थोडा ज्यादा है साथ हीं पानी की धारा प्रवाह ज्यादा नहीं होने के कारण छोटे छोटे बच्चे भी आराम से जल क्रीडा का आनंद ले सकते हैं। नदी हरे-भरे हरियाली से घिरी हुई है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है।
यह जगह मुख्य राज्यमार्ग से 10 की किलोमीटर की दूरी पर हैं। आप स्थानीय लोगों से पूछते हुए आसानी से यहां पहुंच सकते है।
प्राचीन सालखन फॉसिल पार्क(Salakhan Fossil Park)
सोनभद्र जिले में सोनभद्र जीवाश्म पार्क कम प्रसिद्ध लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण जगह है, जिसे भूवैज्ञानिक खजानों में से एक माना जाता है। यह सलखन गांव के करीब रॉबर्ट्सगंज में स्थित है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार, यहां पेड़ के जीवाश्म हैं जो पेड़ के तने में पाए जाने वाले कार्बनिक पदार्थ का एक ठोस रूप है। पूरा पार्क पत्थरों के ऊपर अनोखी रिंग के गोलाकृति आकार की पथरीली संरचनाओं से भरा हुआ है। यह पार्क कैमूर वन्यजीव अभयारण्य के पास कैमूर रेंज में 2.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ कुछ उल्लेखनीय शैवाल और स्ट्रोमेटोलाइट नमूने पाए जाते हैं। यह स्थान न केवल उत्तर प्रदेश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अमूल्य भूवैज्ञानिक खजाना है।
कैसे पहुँचें
यह पार्क सोनभद्र जिले में राज्य राजमार्ग SH5A पर सलखन गाँव के पास रॉबर्ट्सगंज से 12 किमी दूर स्थित है।
चंद्रकूप(Chandrakoop)
यह कूप एक प्राचीन मंदिर के प्रांगण में स्थित है, जिसके अंदर एक जल से भरा कुआं है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह भूमिगत मार्ग से मणिकर्णिका घाट से जुड़ा हुआ है। अगर आपको ऐतिहासिक विषयों में रुचि है तो इस स्थान पर अवश्य जाएँ। यह कूप सिद्धेश्वर माता के मंदिर के मध्य में स्थित है।
स्थानीय किंवदंती है कि अगर आपको कुएं के अंदर अपना प्रतिबिंब नहीं दिखता है, तो ऐसा माना जाता है कि आपके जिंदगी के कुछ ही दिन शेष हैं आपकी मृत्यु नजदीक है। प्राचीन काल में, जब तीर्थयात्री काशी आते थे, तो वे अपना प्रतिबिंब देखने के लिए इस स्थान पर भी आते थे और अगर वे कुएं में अपना प्रतिबिंब नहीं देख पाते, तो वे अपने शेष दिन काशी में बिताने और मोक्ष क्षेत्र में मृत्यु को गले लगाने का फैसला करते हैं।
पौराणिक महत्व:
काशी खण्ड में चंद्रेश्वर लिंग एवं चंद्रकूप के महात्म्य का उल्लेख है। पौराणिक कथा के अनुसार स्वयं चन्द्रमा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए काशी में अपने नाम के शिवलिंग को स्थापित कर अनेकों वर्षों तक तपस्या करते रहे एवं इसी तपस्या के दौरान भगवान चंद्र ने अमृतोद कूप की स्थापना की। इसके जल को पीने से मनुष्य अज्ञानता से छुटकारा पा जाता है। भगवान चंद्र के तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्रमा को जल बीज औषधि एवं ब्राह्मणों का राजा बनाया एवं चंद्रमा के एक कला (अंश) को अपने मस्तक पर धारण किया। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही आँगन के मध्य में चंद्र कूप स्थित है।