Varanasi Famous Places: काशी विश्वनाथ, गंगा घाट, लजीज व्यंजन और बनारसी ठसक के लिए दुनिया में मशहूर है काशी

Famous Places in Varanasi: बनारस के जानल चाहत हउव त बनारस आवे के पड़ी... यहां बाबा विश्वनाथ के अलावा किसी और की नहीं चलती। मोक्षनगरी के नाम से पहचानी जानेवाली काशी के हाट, बाट और ठाठ निराले हैं।

Hariom Dwivedi
Published on: 25 July 2023 4:34 AM GMT
Varanasi Famous Places: काशी विश्वनाथ, गंगा घाट, लजीज व्यंजन और बनारसी ठसक के लिए दुनिया में मशहूर है काशी
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Varanasi Famous Places (photo: social media )

Famous Places in Varanasi: बनारस की आबोहवा में गजब सा सम्मोहन है, लेकिन यहां बाबा विश्वनाथ के अलावा किसी और की नहीं चलती। मोक्षनगरी के नाम से पहचानी जानेवाली काशी के हाट, बाट और ठाठ निराले हैं। यहां भगवान भोलेनाथ की भक्ति और गंगा की कलकल में खो जाने को दिल करता है। काशी की गलियां शिवकृपा सी अथाह हैं और घाटों की छटा अद्भुत व निराली है। रोजाना शाम को होने वाली गंगा आरती देखकर आपका मन मयूरा झूम उठेगा। अल-भोर से लेकर आधी रात तक कोई भी ऐसा वक्त नहीं होगा, जब शिव नाम का उच्चारण आपके कानों में न पड़े और न ही कोई ऐसा स्थान दिखेगा जहां आपको महाकाल के दर्शन न हो जाएं। यहां हर तरफ आध्यात्म दिखेगा। बशर्ते जरूरी है कि आप उसे समझने को कितना तैयार हैं।

महाकाल के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगकर जो आनंद मिलता है, उसे वर्णन करना ठीक उसी तरह है जैसे गूंगे द्वारा छप्पन भोग का स्वाद बता पाना। वह भी अगर दिन सावन का सोमवार हो तो फिर कहना ही क्या। आप कितना भी थके हों, गंगा मैया के किनारे सीढ़ियों पर बैठ जाइए, थकान छू-मंतर और तबियत हरी हो जाएगी। उस पर अगर आपने गंगा स्नान कर लिया तो सोने पर सुहागा। तन व मन दोनों ही सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएंगे। कमर तक पानी में जब आंखें बंद करके आप गंगा में डुबकी लगाएंगे तो तेज धारा आपका स्थान बदलकर यह संदेश जरूर देगी कि जड़ मत बनो बल्कि पानी सा निर्मल बहते रहिए।

बनारस के रस में डूब जाइये

बनारस, जिसके नाम में ही रस है। इसमें डूबते ही आप परमानंद को प्राप्त हो जाएंगे। लेकिन, जरूरी यह है कि आप उस रस में कितना डूबना चाहते हो। आप कौन हैं और क्या हैं? यह सब भूलकर शिव के चरणों में खो जाइए। माथे पर कोई चंदन का त्रिपुंड लगाये तो मना मत करिए, उल्टे खुद ही लगवाइये। स्टेटस भूलकर दर्शन को लाइन में लगिये। इस दौरान शिव का स्मरण करते जाइए। मंदिर प्रांगण में बैठिये और महाकाल की दिव्यता का अनुभव कीजिए। क्योंकि उनकी कृपा से ही आप आज यहां आ पाये हैं। काशी में महाकाल के दर्शन से पहले उन बाबा काल भैरव के दर्शन को जरूरी बताया जाता है जिन्हें काशी का कोतवाल कहा गया है। अगर आपने शिव दर्शन के लिए वहां हाजिरी लगा दी तो फिर महाकाल के दर्शन सुलभ हो जाएंगे।

बनारस के जानल चाहत हउव त बनारस आवे के पड़ी...

वाराणसी को भारत की धार्मिक राजधानी कहा जाता है। यह शहर अपनी धार्मिक वास्तुकला, ढेर सारे मंदिरों, अपनी गलियों, घाटों बनारसी साड़ी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां रोजाना देसी-विदेशी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। अगर आप यहां आना चाहते हैं तो इत्मीनान से आइये। ताकि, अच्छे बनारस का रस पी सकें। किसी बनारसी से बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी के बारे में पूछिये तो वह फट से कहेगा कि बनारस के जानल चाहत हउव त बनारस आवे के पड़ी।

मलाइयो और कचौरी-जलेबी खाकर कहेंगे वाह

सुबह-ए-बनारस में जब स्वाद का जादू घुलता है तो दुकानों पर लाइनें लग जाती हैं। दुनिया जब बेड टी ले रही होती है तब खांटी बनारसी गरमा-गरम कचौड़ी और जलेबी लेकर टंच हो चुका रहता है। आप भी आये हैं तो यहां के लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाना न भूलिये। सुबह-सुबह चासनी में लिपटी जलेबी और कचौड़ी का स्वाद आपका दिन बना देता है। मलाइयो, लवंग लता, तिरंगा बर्फी, मलाई पूड़ी, चूड़ा मटर और चटपटी चाट जहां आपके मुंह में पानी ला देगी वहीं, लस्सी और ठंडाई की वैराइटी आपके मन-मस्तिष्क को सुकून पहुंचाएगी। ध्यान रहे कि खाने के बाद बनारसी पान की गिलौरी लेना मत भूलिएगा वरना स्वाद अधूरा ही रह जाएगा।

'रांड- सांड़, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे वो सेवे काशी'

बनारस के बारे में बड़ी पुरानी कहावत है 'रांड- सांड़, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे वो सेवे काशी।" मतलब काशी में विधवा आश्रम बहुत हैं तो आप काशी में आप किसी विधवा के चक्कर में पड़ सकते हैं। दूसरा ये कि काशी में सांड बहुत हैं, जिनका तेवर चढ़ा तो सींगों पर चढ़कर आप देवलोक गमन कर सकते हैं। तीसरा ये कि काशी में घाटों पर सीढ़ियां बहुत हैं, जिनसे फिसलकर आपकी इस मृत्युलोक से मुक्तिलाभ हो सकता है। चौथा या कि किसी सन्यासी के फेर में पड़ कर अपना माल लुटा सकते हैं। अब इन सबसे बच पाने वाला व्यक्ति ही काशी सेवन का लाभ उठा सकता है।

मौत का उत्सव मनाते हैं बनारसी

होली के अवसर पर बनारस में एक तरफ चिता जलती है तो दूसरी तरफ होली खेली जाती है। मौत के प्रति ऐसी बेपरवाही सिर्फ यहीं दिखेगी। बनारसी मौत का उत्सव मनाते हैं। इनकी उत्सवधर्मिता बताती है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं बल्कि उत्थान है। जीवन का चरम है। अगर आपने जीवन अच्छे से जिया है तो मौत भी परम सुखकारी होगी। शिव भी तो यहां के मशान में होली खेलते हैं। काशी के किसी एक श्मशान की पौराणिकता नहीं मिलती क्योंकि यह पूरा शहर 'महाश्मशान' कहा गया है।

Hariom Dwivedi

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