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Shakti Peeth Temples: पश्चिम बंगाल के शक्ति पीठ, आइये जाने इनका इतिहास

West Bengal Shakti Peeth Temple: भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। यही खंडित शरीर के टुकड़े भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे जिसे शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाने लगा।

Sarojini Sriharsha
Published on: 8 April 2024 2:34 PM IST
hakti Peeth Mandir Ke Bare Me Jankari in Hindi
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hakti Peeth Mandir Ke Bare Me Jankari in Hindi

West Bengal Shakti Peeth Temple: भारत के आध्यात्मिक इतिहास में शक्ति पीठों का बहुत महत्व है। ये पावन तीर्थ माने जाते हैं। हिंदू धर्म में देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत, श्रीलंका,पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित हैं। शिव पुराण, देवी भागवत, कल्कि पुराण और अष्टशक्ति के अनुसार चार प्रमुख शक्ति पीठ हैं :

कालीपीठ (कालिका)

कामगिरी-कामख्या

तारा तेरनी

विमला शक्ति पीठ

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव और दक्ष की पुत्री माता सती के विवाह से दक्ष खुश नहीं था। एकबार भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष ने यज्ञ किया। भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने शिव के सामने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव ने माता सती को उस यज्ञ में जाने से रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन माता सती अपनी इच्छा से यज्ञ में चली गईं। वहां पहुंचने पर माता सती का स्वागत नहीं किया गया और दक्ष ने शिव का अपमान भी किया। माता सती अपने पिता के इस अपमान को सह न सकी। अपने शरीर को अग्नि में समर्पित कर दिया। अपमान और सती के न रहने से क्रोधित भगवान शिव ने तांडव किया और दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। उसका सिर काट दिया। दुःख में में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर तांडव नृत्य किया। देवताओं ने इस विनाश को रोकने के लिए भगवान विष्णु से आग्रह किया ।

भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। यही खंडित शरीर के टुकड़े भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे जिसे शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाने लगा। नवरात्रि के दौरान इन शक्ति पीठों में खास पूजा अर्चना की जाती है और काफी तादाद में लोग दर्शन के लिए आते हैं। वैसे तो ये शक्तिपीठ कई अलग अलग राज्यों में स्थित हैं। लेकिन हम आपको एक एक राज्य के अंदर स्थित शक्ति पीठ की जानकारी देंगे जिससे आप एक बार में एक जगह के दर्शन का लाभ उठा सकें। इसकी यात्रा की तैयारी भी अपने समय अनुसार कर सकते हैं। इसी चरण में सबसे पहले पश्चिम बंगाल के शक्ति पीठ स्थलों से शुरू करते हैं। अकेले पश्चिम बंगाल राज्य में कुल 11 ( ग्यारह) शक्ति पीठ है।

1. कालीपीठ (कालिका)


ऐसा माना जाता है की कोलकाता के कालीघाट में माता सती के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इस जगह को कालीपीठ के नाम से पूजा जाने लगा। यह पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है यहां पहुंचने के लिए कोलकाता हवाई अड्डा और निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है और निकटतम मेट्रो स्टेशन कालीघाट है। मंदिर में मां के दर्शन सुबह या दोपहर के समय कर सकते हैं।

2. किरीट - विमला


पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता सती का मुकुट गिरा था। इस मंदिर में शिव शक्ति दोनों की पूजा की जाती है, जिसमें शक्ति को विमला और शिव को संवर्त्त के रूप में पूजा जाता है।यह जगह कोलकाता से 239 किमी दूर मुर्शिदाबाद में है। कोलकाता से यहां पहुंचने में लगभग 6 घंटे लगते हैं।निकटतम हवाई अड्डा नेता जी सुभाष चंद्र बोस अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

3. बहुला - बहुला (चंडिका)


इस शक्तिपीठ में माता सती का बायां हाथ गिरा था। यह स्थान बंगाल के वर्धमान जिले से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित है ।यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा है। कटवा स्टेशन रेल मार्ग से देश के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

4. उज्जयिनी - मांगल्य चंडिका


यह जगह बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जय‍िनी नामक स्थान पर है, जहां माता सती की दायीं कलाई गिरी थी। यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन गसकारा स्टेशन है।यहां से मंदिर की दूरी लगभग 16 किमी है। यहां से कार या बस की सहायता से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

5. युगाद्या - भूतधात्री‌


पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में माता सती के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह स्थान युगाद्या या भूतधात्री के नाम से मशहूर है। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से लगभग 32 किमी की दूरी पर स्थित है। कोलकाता पहुंच कर यहां तक आने के लिए बर्दवान-कटोआ रेलवे मार्ग लेना चाहिए।

6. कांची - देवगर्भा


इस जगह माता सती का श्रोणि यानी पेट का निचला हिस्सा गिरा था। यहां देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती हैं।यह जगह पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में बोलीपुर में स्थित है। यह मंदिर बोलीपुर स्टेशन से 10 किमी की दूरी पर उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर स्थित है।

7. विभाष - कपालिनी


पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के बंगाल की खाड़ी के करीब रून्नारयन नदी के तट पर स्थित विभाष कपालिनी मंदिर में सती माता के बाएं टखने गिरे थे।यह जगह कोलकाता से लगभग 90 किमी की दूरी पर है और यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन तमलुक है। कोलकाता पहुंच कर टैक्सी या बस से इस जगह पहुंचा जा सकता है।

8. रत्नावली - कुमारी


पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली कुमारी मंदिर में माता सती का दायां कंधा गिरा था।यहां पहुंचने के लिए तीर्थयात्रियों को कोलकाता एयरपोर्ट या हावड़ा स्टेशन से टैक्सी सुलभ साधन है । यहां के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। हावड़ा से खानाकुल लगभग 81 किलोमीटर की दूरी पर है।

9. नलहाटी - कालिका


पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में नलहाटी कालिका मंदिर प्रांगण में माता सती के स्वर रज्जु गिरी थी। यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता का सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा है। कोलकाता रेलवे स्टेशन से नलहाटी करीब 37 किमी की दूरी पर है।

10. अट्टहास - फुल्लरा


इस स्थान पर माता सती का निचला ओष्ठ गिरा था।यहां के लिए नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। कोलकाता से यह जगह 115 किमी दूर है।इस मंदिर तक पहुंचने के लिए अहमपुर कटवा रेलवे स्टेशन उतरना पड़ेगा, वहां से मंदिर लगभग 12 किमी दूर है। टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

11. नंदीपूर - नंदिनी


पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित इस जगह सती माता के गले का हार गिरा था। मंदिर में सती देवी नन्दिनी और शिव नन्दिकेश्वर रूप में विराजते हैं। यह शक्तिपीठ नन्दिकेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां देवी, एक कछुआ के आकार की चट्टान के रूप में विराजमान है और इस चट्टान को सिन्दूर से पूरी तरह रंगा जाता है। यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। कोलकाता से यह स्थान 220 किमी दूर बीरभूम जिले के सैंथिया शहर में है।अक्टूबर से अप्रैल तक के महीने में पर्यटक इस जगह का आनंद उठा सकते हैं। इस दौरान नवरात्रि का त्योहार भी दो बार आता है । एक शारदीय नवरात्रि और दूसरा चैत्र नवरात्रि। कई जगह बच्चों के स्कूल की छुट्टियां भी हो जाती है। तो समय निकाल कर माता का आशीर्वाद अपने पूरे परिवार के साथ प्राप्त करने की कोशिश करें।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)



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Shalini singh

Shalini singh

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