Bihar Dakini Temple : शाम 6 बजे के बाद इस मंदिर में वर्जित है प्रवेश, सुनें यहां के किस्से

Bihar Dakini Temple : भारत में एक से बढ़कर एक धार्मिक और ऐतिहासिक जगह मौजूद है जो पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां 6:00 बजे के बाद किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता है।

Richa Vishwadeepak Tiwari
Published on: 26 Dec 2023 1:45 AM GMT (Updated on: 26 Dec 2023 1:45 AM GMT)
Bihar Dakini Temple
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Bihar Dakini Temple (Photos - Social Media)

Bihar Dakini Temple : भारत एक ऐसा देश है जहां पर एक से बढ़कर एक पर्यटक स्थल मौजूद है। यहां पर प्राकृतिक स्थान से लेकर ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी मौजूद है जो लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। अगर आप भी कहीं घूमने जाने के बारे में सोच रहे हैं और धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थल आपको पसंद आते हैं तो आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां पर शाम की 6:00 बजे के बाद प्रवेश करना वर्जित है। हमारे देश में जितने भी मंदिर हैं उनकी अपनी-अपनी परंपराएं और मान्यताएं हैं। इनके खोलने और बंद होने का समय से लेकर पूजन अर्जुन सभी चीज अलग-अलग तरीके से की जाती है। तो चलिए आज इस खास मंदिर के बारे में जानते हैं जहां 6:00 बजे के बाद किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता है।

कहां हैं मंदिर

हम जी मंदिर की बात कर रहे हैं वह बिहार के मधेपुरा जिले के आलमनगर तालुका गांव में मौजूद है। डाकिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध है प्राचीन जगह लोगों के बीच काफी पहचानी जाती है। यहां पर दिन भर में पांच बार भगवान की आरती की जाती है। दिन भर यहां भक्तों का सैलाब मरता है लेकिन शाम 6:00 बजे के बाद किसी को भी एंट्री नहीं दी जाती है। इस मंदिर के दरवाजे सुबह 6:00 बजे खुलते हैं और शाम 6:00 बजे बंद हो जाते हैं।

Bihar Dakini Temple


क्यों नहीं दिया जाता प्रवेश

स्थानीय लोगों के बीच जो मानता है उसके मुताबिक शाम 6:00 बजे के बाद यहां विराजित डाक कि नहीं माता स्वयं मंदिर के पूरे परिसर का भ्रमण करती हैं। अगर माता तो कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जाएगा क्योंकि यह समय उनके अकेले व्यतीत करने का है। यही कारण है कि इस मंदिर में शाम 6:00 बजे के बाद जाना माना होता है। आखरी आरती की जाने के बाद पुजारी भी इस मंदिर को अकेला छोड़कर चले जाते हैं। आरती के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।

Bihar Dakini Temple


मंदिर का इतिहास

इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो 1348 में इसकी स्थापना की गई थी और इसे दुर्गा माता मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। यहां के लोग इस मंदिर को डाकिनी माता मंदिर, जंगल वाली माता और छिन्नमस्तिका के नाम से बुलाते हैं। स्थानीय लोगों के बीच यहां माता को लड्डू का भोग लगाए जाने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि अगर माता का लड्डू का भोग लगाया जाता है तो वह प्रसन्न होती हैं।

Richa Vishwadeepak Tiwari

Richa Vishwadeepak Tiwari

Content Writer

मैं रिचा विश्वदीपक तिवारी पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हूं। 2011 से मैंने इस क्षेत्र में काम की शुरुआत की और विभिन्न न्यूज चैनल के साथ काम करने के अलावा मैंने पीआर और सेलिब्रिटी मैनेजमेंट का काम भी किया है। साल 2019 से मैंने जर्नलिस्ट के तौर पर अपने सफर को शुरू किया। इतने सालों में मैंने डायमंड पब्लिकेशंस/गृह लक्ष्मी, फर्स्ट इंडिया/भारत 24, UT रील्स, प्रातः काल, ई-खबरी जैसी संस्थाओं के साथ काम किया है। मुझे नई चीजों के बारे में जानना, लिखना बहुत पसंद हैं , साथ ही साथ मुझे गाना गाना, और नए भाषाओं को सीखना बहुत अच्छा लगता हैं, मैं अपने लोकल भाषा से बहुत प्रभावित हु जिसमे , अवधी, इंदौरी, और बुंदेलखंडी आती हैं ।

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